हरियाणा पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वकील विक्रम सिंह की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, जिन्हें 2023 के गुरुग्राम हत्याकांड से जुड़े एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। इस गिरफ्तारी को कानूनी समुदाय ने “पेशेवर स्वतंत्रता पर हमला” बताया है, जिसके बाद दिल्ली और हरियाणा की कई बार एसोसिएशनों ने नाराज़गी जताई।
पृष्ठभूमि
सिंह की गिरफ्तारी सुरज भान की हत्या से जुड़ी है, जो कथित तौर पर कापिल संगवान उर्फ़ नंदू के गिरोह द्वारा की गई थी। गुरुग्राम स्पेशल टास्क फोर्स ने 31 अक्तूबर को सिंह को हिरासत में लिया, जबकि वे पहले से ही जांच में सहयोग कर रहे थे। बाद में उन्हें फरीदाबाद की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
याचिका के अनुसार, सिंह ने आरोपियों में से एक, ज्योति प्रकाश उर्फ़ बाबू, की ओर से अदालत में कई आवेदन दायर किए थे, जिनमें पुलिस द्वारा हिरासत में मारपीट और दुराचार के आरोप लगाए गए थे। उनके वकील सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि गिरफ्तारी “लिखित कारण बताए बिना की गई,” जो सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले मिहिर शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य का उल्लंघन है, जिसमें गिरफ्तारी के दौरान पारदर्शिता अनिवार्य की गई थी।
अदालत के अवलोकन
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने सिंह की गिरफ्तारी के तरीके पर कड़ी आपत्ति जताई। संक्षिप्त लेकिन तीखी सुनवाई के दौरान,
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि “किसी वकील को केवल इसलिए अपराधी नहीं माना जा सकता क्योंकि वह अपने मुवक्किल का बचाव कर रहा है।”
पीठ ने कहा,
“प्रस्तुत दलीलों और याचिकाकर्ता के पेशेवर दर्जे को देखते हुए, हम अंतरिम संरक्षण देने के इच्छुक हैं। याचिकाकर्ता फरार होने की संभावना नहीं है। अतः एक अस्थायी आदेश के रूप में, हम उसके तत्काल रिहाई का निर्देश देते हैं।”
अदालत ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को भी निर्देश दिया कि आदेश की प्रति तुरंत गुरुग्राम पुलिस आयुक्त को भेजी जाए, ताकि सिंह की रिहाई में कोई देरी न हो।
निर्णय
संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने ₹10,000 के मुचलके पर उनकी रिहाई का आदेश दिया, जब तक कि आगे की सुनवाई न हो। इस आदेश ने पुलिस की रिमांड को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया और स्पष्ट संकेत दिया कि अदालत इस गिरफ्तारी को वकीलों की स्वतंत्रता के खिलाफ पुलिस की अतिरेक कार्रवाई के रूप में देखती है।
सुनवाई समाप्त करते हुए, पीठ ने यह भी कहा कि किसी वकील को अपने मुवक्किल की जानकारी उजागर करने के लिए मजबूर करना संविधान और पेशेवर गोपनीयता दोनों का उल्लंघन है। आदेश का अंत एक सख्त चेतावनी के साथ हुआ:
“यदि ऐसी प्रथाएं जारी रहीं, तो यह न्याय व्यवस्था की नींव को हिला देंगी।”
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वकील विक्रम सिंह शाम तक रिहा हो गए इसे कई लोगों ने बार की स्वायत्तता और गरिमा की एक बड़ी पुनर्पुष्टि के रूप में देखा।
Case Title:- Vikram Singh v. State of Haryana & Ors.
Case Number:- W.P. (Crl.) No. 471/2025