नई दिल्ली - गुरुवार सुबह कोर्टरूम 29 के बाहर माहौल कुछ असामान्य रूप से तनावपूर्ण लगा, जब जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने अपनी सीट संभाली और संगीता बनाम हितेश कुमार अपील की सुनवाई शुरू की। वर्षों पहले matrimonial विवाद के रूप में शुरू हुआ मामला आखिरकार दिल्ली हाई कोर्ट में उस 65 वर्ग गज के उत्तम नगर स्थित मकान पर निर्णायक आदेश के लिए पहुंचा। दलीलें कई बार भावनात्मक हो गईं, लेकिन न्यायाधीश ने चर्चा को दस्तावेजों और कानून की सीमाओं में ही केंद्रित रखा।
Background
दोनों पक्षों का विवाह वर्ष 2000 में हुआ था, वे कई साल साथ रहे और अंततः बढ़ते मतभेदों के चलते अलग हो गए। वर्ष 2010 में तलाक हो गया, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट तक ने बरकरार रखा। तब से संगिता उसी संपत्ति में रहती रहीं, यह कहते हुए कि खरीद में उनका योगदान था और उन्हें आसानी से हटाया नहीं जा सकता।
दूसरी ओर, हितेश कुमार ने 2014 में कब्ज़े का मुकदमा दायर किया, यह कहते हुए कि मकान केवल उनके नाम पर है और उन्होंने कई बार खाली कराने की मांग की है। ट्रायल कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया था, कब्ज़ा देने और ₹3,000 प्रति माह का damages तय करते हुए। इसी फैसले के खिलाफ संगिता ने हाई कोर्ट में अपील की थी।
Court’s Observations
कोर्ट के अंदर जस्टिस पुष्कर्णा ने दोनों पक्षों की बात ध्यान से सुनी, विशेष रूप से 2005 का रजिस्टर्ड सेल डीड बार-बार चर्चा में आया जो इस विवाद की मुख्य कड़ी थी। दस्तावेज़ सिर्फ हितेश कुमार के नाम का था, और संगिता ने कभी इसकी वैधता को चुनौती नहीं दी।
“बेंच ने टिप्पणी की, ‘एक रजिस्टर्ड दस्तावेज़ को सही माना जाता है, जब तक उसकी वैधता को सिद्ध रूप से खंडित न किया जाए। यहां ऐसा नहीं हुआ।’”
संगीता की तरफ से कहा गया कि भले ही काग़ज़ात पति के नाम थे, परंतु घरेलू खर्चों में योगदान और कुछ लोन की किस्तें भरने से उन्हें मालिकाना हक़ मिलना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने साफ कर दिया कि ऐसे छोटे भुगतान से तब तक स्वामित्व नहीं बनता जब तक खरीद में ठोस और महत्वपूर्ण आर्थिक योगदान साबित न हो।
जस्टिस पुष्कर्णा ने Mania Ghai v. Nishant Chander के फैसले का ज़िक्र करते हुए कहा कि घरेलू योगदान तभी स्वामित्व का आधार बनता है जब वह खरीद में “वास्तविक और महत्वपूर्ण” आर्थिक योगदान में दिखाई दे।
न्यायाधीश ने सरल शब्दों में कहा: “रोजमर्रा के खर्च चलाना या कुछ किश्तें भर देना अपने-आप में सह-स्वामित्व नहीं बनाता।”
एक बड़ा मुद्दा shared household का था। संगिता के वकील का कहना था कि शादी के दौरान यह matrimonial home था, इसलिए Domestic Violence Act के तहत shared household माना जाना चाहिए। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार “सुरक्षात्मक” होता है, स्वामित्व पैदा नहीं करता, और तलाक के बाद यह स्वतः स्थायी नहीं रहता।
“बेंच ने कहा, ‘तलाक के बाद domestic relationship समाप्त हो जाती है। shared household का आधार भी खत्म हो जाता है, जब तक कोई विशेष वैधानिक अधिकार मौजूद न हो।’”
Decision
करीब दो घंटे की दलीलों के बाद जस्टिस पुष्कर्णा ने स्पष्ट और संतुलित फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की यह finding बरकरार रखी कि उत्तम नगर की संपत्ति के एकमात्र मालिक हितेश कुमार ही हैं। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं था जो संगिता को किसी भी तरह का कानूनी स्वामित्व देता।
इसी कारण, हितेश के पक्ष में दिया गया कब्ज़े का आदेश यथावत रखा गया।
हालांकि, मेस्न प्रॉफिट और damages को लेकर कोर्ट का दृष्टिकोण बदल गया। जस्टिस पुष्कर्णा ने माना कि संगिता ने विवाह के दौरान कुछ किश्तें अपने खाते से भरी थीं और घर में उनका रहना “permissive” यानी वैवाहिक सहमति के कारण था, न कि किसी अवैध कब्ज़े के कारण।
“बेंच ने कहा, ‘पक्षकारों के पूर्व संबंध और आंशिक ऋण-भुगतान की स्वीकृत स्थिति को देखते हुए, mesne profits का award टिक नहीं सकता।’”
इन्हीं कारणों से हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाए गए damages और mesne profits को रद्द कर दिया। इस तरह अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई लेकिन केवल इस सीमित मुद्दे पर।
संपत्ति फिर भी हितेश कुमार को ही लौटानी होगी, जैसा कि पहले के आदेश में कहा गया था।
और इसके साथ ही कार्यवाही समाप्त हो गई। वकील अपने कागज़ समेटते दिखाई दिए, कुछ धीमी आवाज़ों में प्रतिक्रियाएँ दी गईं, और courtroom उतनी ही शांति से खाली हो गया मानो दोनों पक्षों के जीवन का एक लंबा अध्याय आखिरकार मुकाम पर पहुँच गया।
Case Details:- Sangeeta vs Hitesh Kumar
Case Number: RFA 589/2015
Advocates
- For Appellant: Mr. Manish Kapoor
- For Respondent: Mr. Aman Dhyani, Ms. Kanchan Semwal, Ms. Somya Gupta
Date of Judgment: 13 November 2025