जयपुर स्थित राजस्थान हाई कोर्ट में बुधवार को एक संक्षिप्त लेकिन तीखी सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अनूप कुमार धान्द ने धोलपुर के एक दुकानदार के खिलाफ तीन साल पुरानी एफआईआर को रद्द करते हुए कहा कि पुलिस ने अपने कानूनी अधिकारों से आगे बढ़कर कार्रवाई की थी। उस सुबह कोर्टरूम का माहौल कुछ ज़्यादा ही सतर्क था-शायद इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट के 2024 के फैसलों के बाद ऐसे मामले बार-बार सामने आ रहे हैं, जिनमें खाद्य सुरक्षा से जुड़े अपराधों की जांच पर सख्त सीमाएं तय की गई हैं।
पृष्ठभूमि (Background)
यह मामला रवि से जुड़ा था, जो धोलपुर के डूंगरपुर इलाके का 29 वर्षीय निवासी है। 2022 में पुलिस ने उसकी दुकान से पैकेज्ड खाद्य सामग्री जब्त की थी। एफआईआर के अनुसार, ये नमूने कथित रूप से मिलावटी और “गलत तरीके से ब्रांडेड” पाए गए।
हालाँकि खाद्य सुरक्षा विभाग को पहले कार्रवाई करनी होती है-जैसा कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 में अनिवार्य है-लेकिन पुलिस ने सीधे ही आईपीसी की धाराओं के तहत मिलावट और धोखाधड़ी के आरोपों में एफआईआर दर्ज कर ली और बाद में चार्जशीट भी दाखिल कर दी।
यह भी पढ़ें: मद्रास हाईकोर्ट ने थिरुप्परनकुंदरम दीपथून पर कार्तिगई दीपम जलाने का निर्देश दिया, सौ साल पुराने संपत्ति
रवि के वकील का कहना था कि कानून ऐसा करने की अनुमति देता ही नहीं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण फैसलों-राम नाथ (2024) और सुशील कुमार गुप्ता (2024)-का हवाला दिया, जिनमें स्पष्ट किया गया है कि खाद्य से जुड़े अपराधों में खाद्य सुरक्षा अधिनियम की धाराएं आईपीसी पर हावी होती हैं।
कोर्ट का अवलोकन (Court’s Observations)
न्यायमूर्ति धान्द ने शुरुआत में ही कहा कि यह कानूनी मुद्दा “अब कोई नई बात नहीं है,” यानी सुप्रीम कोर्ट पहले ही इसे पूरी तरह स्पष्ट कर चुका है।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अंश पढ़ते हुए बताया कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम में पूरी जांच और अभियोजन की खुद की व्यवस्था है, इसलिए पुलिस स्वतंत्र रूप से ऐसे मामलों की जांच नहीं कर सकती।
यह भी पढ़ें: लगभग पांच दशक पुराने सेवा विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने PSEB कर्मचारी के वरिष्ठता अधिकार बहाल किए, हाई कोर्ट
सुनवाई के दौरान एक जगह अदालत ने टिप्पणी की, “सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि 2006 के अधिनियम की धारा 89 को अधिमान्य प्रभाव प्राप्त है, जिससे आईपीसी की धारा 272 और 273 के तहत कार्रवाई की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती।”
जज ने यह भी उल्लेख किया कि एफआईआर में न तो बेइमानी से बिक्री का कोई आरोप था और न ही धोखा देने की मंशा का ज़िक्र, इसलिए आईपीसी की धारा 420 (धोखाधड़ी) का अपराध बनता ही नहीं।
फैसला (Decision)
अपने अंतिम आदेश में अदालत ने एफआईआर तथा उससे संबंधित सभी आपराधिक कार्यवाहियों को रद्द कर दिया और कहा कि पुलिस द्वारा की गई जांच कानून के अनुरूप नहीं थी। हालांकि, अदालत ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी भी जोड़ी-कि खाद्य सुरक्षा अधिकारी चाहें तो खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत उचित कार्रवाई शुरू कर सकते हैं, यदि पहले से न की गई हो।
इसके साथ ही मामला निपटा दिया गया और आदेश की प्रति संबंधित अधिकारी को अनुपालन के लिए भेजने को कहा गया।
Case Title: Ravi S/o Subhash Chand vs. State of Rajasthan
Case No.: S.B. Criminal Miscellaneous (Petition) No. 1945/2024
Case Type: Criminal Miscellaneous Petition (Quashing of FIR)
Decision Date: 19 November 2025