सुप्रीम कोर्ट ने MBBS प्रवेश के लिए 'दोनों हाथ सही होना चाहिए' शर्त को असंवैधानिक करार दिया

By Shivam Y. • February 21, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने MBBS प्रवेश के लिए 'दोनों हाथ सही होने चाहिए' शर्त को असंवैधानिक करार दिया। यह फैसला विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और चिकित्सा शिक्षा को समावेशी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

21 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) द्वारा MBBS प्रवेश के लिए लागू की गई उस शर्त को असंवैधानिक घोषित कर दिया, जिसमें उम्मीदवारों के लिए "दोनों हाथ सही, संवेदनशील और मजबूत होने चाहिए" की अनिवार्यता रखी गई थी। अदालत ने इसे मनमाना, भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 41 और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (RPwD) 2016 का उल्लंघन करने वाला करार दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक याचिकाकर्ता से जुड़ा था, जिसे 58% विकलांगता होने के कारण राजस्थान के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, सिरोही में MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश देने से मना कर दिया गया था। याचिकाकर्ता को 50% गतिशीलता विकलांगता (Locomotor Disability) के साथ 20% भाषा और भाषण विकलांगता थी। NMC की इस कठोर शर्त के कारण, अन्य सभी योग्यताओं को पूरा करने के बावजूद उसे प्रवेश नहीं मिल सका।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने NMC की इस गाइडलाइन को पूरी तरह असंवैधानिक ठहराया। न्यायमूर्ति विश्वनाथन द्वारा लिखे गए फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि किसी व्यक्ति की शारीरिक स्थिति के बजाय उसकी कार्यात्मक क्षमता (Functional Ability) पर जोर दिया जाना चाहिए।

"एक ही नियम सभी पर लागू नहीं हो सकता"

अदालत ने इस कठोर नियम की आलोचना करते हुए कहा कि उम्मीदवारों का मूल्यांकन उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं के आधार पर किया जाना चाहिए।

"व्यक्तिगत जरूरतों को समझना और उनके अनुसार समाधान निकालना बहुत ज़रूरी है। 'वन साइज फिट्स ऑल' दृष्टिकोण गलत और अनुचित है।"

अदालत ने माना कि यह शर्त संविधान के अनुच्छेद 41 के विपरीत है, जो विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुनिश्चित करता है। इसके अलावा, यह संयुक्त राष्ट्र विकलांग अधिकार संधि (UNCRPD) का भी उल्लंघन करती है।

"‘दोनों हाथ सही होना चाहिए’ जैसी शर्त स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण है और इसका कोई संवैधानिक आधार नहीं है। यह संविधान और RPwD अधिनियम द्वारा दिए गए अधिकारों को कमजोर करता है।"

MBBS प्रवेश प्रक्रिया पर प्रभाव

इस फैसले से मेडिकल शिक्षा में विकलांग उम्मीदवारों के लिए प्रवेश प्रक्रिया में बड़ा बदलाव होगा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि:

  1. अब उम्मीदवारों की कार्यात्मक क्षमता का मूल्यांकन किया जाएगा, न कि केवल उनके शारीरिक अंगों की स्थिति देखी जाएगी।
  2. सहायक उपकरण और तकनीक के उपयोग को ध्यान में रखकर मूल्यांकन किया जाएगा।
  3. NMC को अपने दिशानिर्देशों में संशोधन करने के लिए कहा गया है ताकि चिकित्सा शिक्षा समावेशी हो सके।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दो महत्वपूर्ण मामलों का उल्लेख किया:

  • ओंकार रामचंद्र गोंड बनाम भारत सरकार – इसमें कहा गया था कि सिर्फ विकलांगता के प्रतिशत के आधार पर उम्मीदवार को अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता, बल्कि उसकी कार्यक्षमता का मूल्यांकन होना चाहिए।
  • ओम राठौड़ बनाम स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक – इसमें चिकित्सा शिक्षा में विकलांग उम्मीदवारों के लिए समावेशी अवसर सुनिश्चित करने पर जोर दिया गया था।

अदालत ने पाया कि विकलांगता मूल्यांकन बोर्ड (Disability Assessment Board) ने याचिकाकर्ता को प्रवेश से वंचित करने के लिए उचित कारण नहीं बताए, जो कि इन मामलों में स्थापित मानकों के खिलाफ था।

सुप्रीम कोर्ट ने NMC को निर्देश दिया कि वह अपने दिशानिर्देशों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार संशोधित करे। अदालत ने कहा:

"हम निर्देश देते हैं कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग 3 मार्च 2025 तक एक शपथ पत्र दायर करे, जिसमें यह बताया जाए कि उसने अपने दिशानिर्देशों में आवश्यक बदलाव किए हैं या नहीं।"

अदालत ने यह भी कहा कि नई समिति में विकलांगता अधिकारों से जुड़े विशेषज्ञों को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि नीतियों में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनी रहे।

मामला: ANMOL बनाम भारत संघ और अन्य | सिविल अपील संख्या 14333/2024

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