बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ में गुरुवार सुबह माहौल कुछ शांत लेकिन गंभीर था। जैसे ही जस्टिस निवेदिता पी. मेहता ने एक संवेदनशील POCSO अपील का फैसला सुनाना शुरू किया, अदालत में मौजूद हर व्यक्ति ध्यान से सुनने लगा। मामला यवतमाल की एक 13 वर्षीय बच्ची का था-सरल-सा दिखने वाला आरोप, मगर असहज करने वाला। फैसला जैसे ही पढ़ा गया, तस्वीर साफ हो गई: सजा बरकरार रहेगी।
पृष्ठभूमि (Background)
अपीलकर्ता शेख रफ़ीक़ स्क. गुलाब ने 2019 के अपने दोषसिद्धि आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें IPC की Sections 354, 354-A और POCSO अधिनियम की धारा 8 के तहत उसे दोषी ठहराया गया था। अभियोजन के अनुसार, अक्टूबर 2015 में दो बार वह तब बच्ची के घर गया जब उसके माता-पिता काम पर थे। दोनों बार उसने पानी मांगा और फिर ₹50 देकर ऐसा “काम” करने का प्रस्ताव रखा जिसे बच्ची ने बाद में यौन गतिविधि से जोड़ा।
दूसरी बार आरोपी ने उसका हाथ पकड़ा, जिससे घबराई बच्ची तुरंत अपने मामा के पास भागी और FIR दर्ज हो गई। बचाव पक्ष का कहना था कि समय संबंधी अंतर और बस्ती की भीड़भाड़ यह साबित करती है कि घटना संभव नहीं थी। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने POCSO की अनिवार्य सजा के तहत तीन साल की कठोर कैद सुना दी थी।
अदालत के अवलोकन (Court’s Observations)
अपील की सुनवाई के दौरान, जस्टिस मेहता ने सबूतों की समीक्षा धीरे और बेहद साफ भाषा में की। उन्होंने कहा कि पीड़िता का बयान “स्पष्ट, सुसंगत और स्वाभाविक” था और जिरह के बावजूद कायम रहा। छोटे-छोटे अंतर, जैसे समय में मामूली बदलाव, अदालत को परेशान नहीं करते। “पीठ ने कहा, ‘ये परिधीय अंतर हैं, जो बच्ची के बयान की मुख्य सच्चाई को प्रभावित नहीं करते।’”
बचाव पक्ष की यह दलील कि इतनी भीड़ वाली बस्ती में घटना बिना ध्यान दिए नहीं हो सकती, अदालत ने खारिज कर दी। जज ने स्पष्ट किया कि बच्ची दोनों बार घर के अंदर अकेली थी, इसलिए बाहरी माहौल मायने नहीं रखता।
पंच गवाह के मुकर जाने से भी अदालत ने अभियोजन के मामले को प्रभावित नहीं माना। जज ने कहा कि POCSO मामलों में अक्सर मुख्य आधार स्वयं बच्ची का बयान होता है, न कि हर दस्तावेज़ का पूरी तरह सही होना।
उन्होंने यह भी माना कि नाबालिग को पैसे का लालच देकर यौन गतिविधि के लिए कहना और उसके साथ शारीरिक संपर्क-यह दोनों तत्व POCSO की धारा 7 के तहत यौन हमले की कानूनी परिभाषा पूरी करते हैं। चूँकि धारा 8 में सज़ा अधिक कठोर है, इसलिए धारा 42 के अंतर्गत वही लागू करनी पड़ेगी।
प्रोबेशन पर भी संक्षिप्त चर्चा हुई, जिसे अदालत ने तुरंत खारिज कर दिया। जस्टिस मेहता ने कहा कि इस तरह के अपराधों में नरमी “नाबालिग पीड़ितों से जुड़े अपराधों में सज़ा के उद्देश्य को कमजोर कर देती है।”
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निर्णय (Decision)
अंत में, हाई कोर्ट ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई तीन साल की कठोर कैद और जुर्माना भी जस का तस रखा। अपील पूरी तरह से खारिज कर दी गई। जज ने निर्देश दिया कि फैसले की सूचना आरोपी को जेल प्रशासन के माध्यम से दी जाए, और इसी के साथ कार्यवाही समाप्त हो गई।
Case Title: Sheikh Rafique Sk. Gulab v. State of Maharashtra
Case No.: Criminal Appeal No. 772/2019
Case Type: Criminal Appeal (POCSO conviction challenge)
Decision Date: 04 December 2025










