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बॉम्बे हाई कोर्ट ने 'लापरवाही से की गई गिरफ्तारी' पर उठाए सवाल, डीपफेक मामले में गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया

Vivek G.

चंद्रशेखर भीमसेन नाइक बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य। बॉम्बे हाई कोर्ट ने डीपफेक मामले में गिरफ्तारी को अवैध बताया, पुलिस की लापरवाही और कमजोर न्यायिक जांच की आलोचना की। अहम फैसला।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 'लापरवाही से की गई गिरफ्तारी' पर उठाए सवाल, डीपफेक मामले में गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया

बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने मानो भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली के सामने एक आईना रख दिया हो। जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस श्याम चंदक की पीठ ने चंद्रशेखर भीमसेन नाइक की याचिका पर सुनवाई के दौरान अपने शब्दों में कोई नरमी नहीं बरती। नाइक एक डिजिटल विज्ञापन कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी हैं, जिन्हें एक हाई-प्रोफाइल डीपफेक फ्रॉड केस में गिरफ्तार किया गया था।

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कोर्ट ने बार-बार पुलिस की “कॉपी-पेस्ट शैली” पर सवाल उठाए और मजिस्ट्रेट को भी बिना पर्याप्त जांच-पड़ताल के रिमांड देने के लिए फटकार लगाई। पीठ ने टिप्पणी की, “गिरफ्तारी का कदम कभी भी एक रोजमर्रा की प्रक्रिया नहीं बन सकता।”

Background (पृष्ठभूमि)

मुंबई साइबर पुलिस ने सितंबर 2025 में एक FIR दर्ज की थी, जब टीवी स्टॉक-मार्केट विश्लेषक प्रकाश गाबा को पता चला कि उनके डीपफेक वीडियो महीनों से सोशल मीडिया पर घूम रहे थे, जो संदिग्ध निवेश योजनाओं को प्रमोट कर रहे थे। शिकायत के अनुसार कई लोगों ने इन वीडियो को देखकर पैसा लगाया।

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नाइक, जो बेंगलुरु में एक डिजिटल टेक्नोलॉजी कंपनी में सीनियर वाइस प्रेसीडेंट हैं, FIR में पहले नामित नहीं थे। लेकिन 15 अक्टूबर की शाम पुलिस अचानक उनके घर पहुँची, देर रात तक पूछताछ की, उनका फ़ोन और लैपटॉप बिना किसी औपचारिक पंचनामा के ले लिया और आधी रात के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

उनकी कानूनी टीम ने दलील दी कि गिरफ्तारी से पहले BNSS (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) की धारा 35(3) के तहत अनिवार्य नोटिस जारी नहीं किया गया-जो ऐसे अपराधों में गिरफ्तारी रोकने के लिए बनाया गया है जिनमें अधिकतम सज़ा सात साल तक है। उनका कहना था कि पुलिस ने “गिरफ्तारी के कारण” वाले चेकलिस्ट में कानून की भाषा को ज्यों का त्यों कॉपी-पेस्ट कर दिया, बिना यह बताए कि नाइक को व्यक्तिगत रूप से गिरफ्तार करने की क्या आवश्यकता थी।

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Court’s Observations (कोर्ट की टिप्पणियाँ)

सुनवाई के दौरान पीठ केस डायरी से सामने आ रही बातों को लेकर स्पष्ट रूप से चिंतित दिखी। जस्टिस डांगरे ने कहा कि मजिस्ट्रेट को दिए गए चेकलिस्ट में टेम्पलेट वाले कारण थे—जो अन्य सह-अभियुक्तों के लिए भी एक जैसे थे। कोर्ट ने कहा, “गिरफ्तारी एक व्यक्तिगत कार्रवाई है। कारणों की नकल नहीं की जा सकती।”

अर्नेश कुमार और सतेंद्र कुमार अंतिल जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए, पीठ ने चेतावनी दी कि पुलिस अधिकारियों को “बॉक्स टिक करने के लिए गिरफ्तारी” करने की अनुमति नहीं है। हर आरोपी के संदर्भ में विशिष्ट तथ्य होने चाहिए-जैसे सबूत नष्ट करने की क्षमता, गवाहों को प्रभावित करने का खतरा या फरार होने की संभावना।

कोर्ट ने कहा, “पीठ ने टिप्पणी की, ‘जब कारण व्यक्तिगत नहीं होते, तो गिरफ्तारी अवैध हो जाती है। यह न केवल पुलिस बल्कि मजिस्ट्रेट द्वारा भी मन के उपयोग की कमी दर्शाता है।’”

कोर्ट ने यह भी नोट किया कि नाइक पूरी तरह सहयोग कर रहे थे, उन्होंने अपने डिवाइस तुरंत सौंप दिए थे और वे खुद डीपफेक वीडियो बनाने के आरोपी नहीं थे। जांच अधिकारी ने न तो उपस्थिति नोटिस जारी किया, न ही यह बताया कि ऐसा नोटिस अप्रभावी क्यों रहता।

एक समय पर जस्टिस चंदक ने लगभग खिन्न होकर कहा-“गिरफ्तारी की शक्ति, गिरफ्तारी का लाइसेंस नहीं है।” कोर्टरूम कुछ पल के लिए बिल्कुल शांत हो गया-जैसे सभी को यह याद दिलाया गया हो कि न्यायालय की नाराज़गी अपने-आप में वजन रखती है।

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Decision (निर्णय)

अंत में कोर्ट ने कहा कि नाइक की गिरफ्तारी संवैधानिक सुरक्षा और BNSS की धारा 35 की अनिवार्य प्रक्रियाओं का उल्लंघन करती है, इसलिए यह अवैध है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि नाइक को तुरंत रिहा किया जाए, ₹50,000 के निजी मुचलके और ज़मानतदारों के साथ।

इसके साथ ही सुनवाई समाप्त हुई-लेकिन यह फैसला भविष्य में गिरफ्तारी-संबंधी मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल बनने जा रहा है।

Case Title: Chandrashekhar Bhimsen Naik vs. State of Maharashtra & Ors.
Case Type: Criminal Writ Petition
Case No.: Writ Petition No. 5764 of 2025
Date of Judgment: 3 December 2025

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