मदुरै बेंच के भीड़ भरे कोर्टरूम में, जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने थिरुप्परनकुंदरम पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम कहां जलाया जाना चाहिए, इस लंबे खिंचे विवाद पर एक विस्तृत और भावनात्मक आदेश सुनाया। सुनवाई कई दिनों तक चली, जिसमें मंदिर भक्तों, एचआर एंड सीई अधिकारियों, दरगाह प्रतिनिधियों और सरकारी वकीलों ने अपनी-अपनी “परंपरा” वाली दलीलों को जोर-शोर से रखा।
Background (पृष्ठभूमि)
यह विवाद एक सदी से भी अधिक पुराना है, जिसका संबंध सुब्रमणिया स्वामी मंदिर और सिकंदर बादूशा दरगाह के overlapping दावों से है। मूल मुद्दा यह था कि वार्षिक त्यौहार का दीपक पहाड़ी के निचले शिखर पर स्थित पत्थर के दीप स्तंभ दीपथून पर जलाया जाए या फिर पहले की तरह पहाड़ी के बीच स्थित उचि पिल्लैयार स्थान पर ही।
पहले के दीवानी मुकदमों-जैसे O.S No.4 of 1920 और प्रिवी काउंसिल तक पहुँची अपील-पहाड़ी की संपत्ति पर अधिकार पहले ही तय कर चुके थे। जज ने इन निर्णयों को बेहद रुचिकर अंदाज़ में याद किया, यह बताते हुए कि ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से लेकर संगम-कालीन कविता तक को साक्ष्य के रूप में पेश किया गया था।
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Court’s Observations (कोर्ट की टिप्पणियाँ)
सुनवाई का स्वर मानो थोड़ा अलग था। एक समय तो जस्टिस स्वामीनाथन ने-कुछ झुंझलाहट और कुछ स्पष्टता के साथ-कहा कि “यह मामला सिर्फ परंपरा का नहीं, बल्कि अधिकार का है।” उन्होंने तमिल महाकाव्यों और स्थानीय कहावतों का हवाला देकर समझाया कि तमिलनाडु में पहाड़ी शिखर पर दीप जलाना कितना गहरे पैठा सांस्कृतिक प्रतीक है।
“पीठ ने टिप्पणी की, ‘दीपथून दीप जलाने के लिए ही है। Res ipsa loquitur - वस्तु स्वयं अपने उद्देश्य को दर्शाती है।’”
जज ने यह भी बताया कि उन्होंने खुली अदालत में घोषणा करके खुद उस स्थान का दौरा किया। चढ़ाई, अलग-अलग रास्ते, चट्टानों और दरगाह से दीपथून की दूरी का उनका विवरण निर्णय में मानवीय भाव जोड़ता है। कोर्ट ने पाया कि दीपथून दरगाह की संरक्षित सीमा से काफी बाहर है और 1923 से ही कानूनन मंदिर की संपत्ति घोषित है।
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उन्होंने मंदिर प्रशासन की “अत्यधिक निष्क्रियता” की भी आलोचना की, यह कहते हुए कि संपत्ति की रक्षा में भक्त-न कि ट्रस्टी-आगे आ रहे हैं। अदालत ने यह भी कहा कि परंपराओं को बहाल रखना मंदिर का कानूनी दायित्व है।
Decision (निर्णय)
अंतिम आदेश में, अदालत ने मंदिर के कार्यकारी अधिकारी के इंकार को रद्द करते हुए निर्देश दिया कि मंदिर प्रशासन दीपथून पर भी कार्तिगई दीपम जलाए, और साथ ही पहले की तरह उचि पिल्लैयार स्थान पर दीपम जलाना जारी रखे।
जज ने यह साफ कहा कि दीपथून पर दीप जलाने से दरगाह के अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे मंदिर की संस्कृति, परंपरा और संपत्ति के सीमा-अधिकार की रक्षा मजबूत होगी।
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इसके साथ ही पीठ ने याचिकाएँ निपटाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि यह फैसला इतिहास, कानून और सांस्कृतिक निरंतरता पर आधारित है-न कि किसी वर्तमान साम्प्रदायिक तनाव पर। आदेश अदालत के निर्देश पर ही समाप्त होता है।
Case Title: Rama Ravikumar vs The District Collector, Madurai & Others (Clubbed with connected petitions)
Case Numbers: W.P.(MD) Nos. 32317, 33112, 33197, 33724, 34051 of 2025
Case Type: Writ Petitions filed under Article 226 (Mandamus / Certiorarified Mandamus)
Decision Date: 01 December 2025










