सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण आदेश सुनाया, जो देशभर की जेलों में दिव्यांग कैदियों की जीवन स्थितियों को बदल सकता है। संक्षिप्त लेकिन गंभीर सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने स्पष्ट संकेत दिया कि अदालत अब टुकड़ों-टुकड़ों में सुधारों से संतुष्ट नहीं है। इसके बजाय, उसने पहले जारी किए गए दिव्यांग-अनुकूल निर्देशों को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू कर दिया, यह कहते हुए कि “गरिमा का अधिकार भूगोल पर निर्भर नहीं कर सकता।”
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता सत्यन नारावूर ने अनुच्छेद 32 के तहत जनहित याचिका दायर कर कहा था कि दिव्यांग कैदियों के प्रति जेलों में “लगातार और गहरी उपेक्षा” देखी जाती है। उनके वकील ने बताया कि कई जेल मैनुअल अब भी अनिवार्य पहुँच सुविधाएँ-जैसे रैम्प, सहायक उपकरण, सुलभ शौचालय-शामिल नहीं करते, जबकि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में यह सब स्पष्ट रूप से प्रावधानित है।
सुनवाई के दौरान अदालत ने एल. मुरुगनाथम फैसले का उल्लेख किया, जिसमें तमिलनाडु की जेलों में दिव्यांग कैदियों के लिए बड़े पैमाने पर सुधार के निर्देश दिए गए थे। पीठ ने कहा कि यहां उठाए गए अधिकांश मुद्दे उस निर्णय में पहले ही संबोधित किए जा चुके हैं।
लेकिन याचिकाकर्ता का तर्क था कि “यह समस्या क्षेत्रीय नहीं, राष्ट्रीय है,” और उन्होंने प्रार्थना की कि उन निर्देशों को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर समान रूप से लागू किया जाए। उन्होंने अतिरिक्त उपायों की भी मांग की-जैसे दिव्यांग कैदियों के लिए शिकायत तंत्र, समावेशी शिक्षा और अधिनियम की धारा 89 की स्पष्टता, जो उल्लंघन पर जुर्माने का प्रावधान करती है।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ इस बात से काफी हद तक सहमत दिखाई दी कि तंत्रगत सुधार अब अनिवार्य हो चुके हैं। एक समय जस्टिस मेहता ने कहा, “अगर कानून समान व्यवहार का वादा करता है, तो जेलें ऐसे द्वीप नहीं बन सकतीं जहाँ अधिकार गायब हो जाएँ।”
न्यायालय ने मुरुगनाथम फ्रेमवर्क का बार-बार उल्लेख किया, जिसमें सुलभ शौचालय, रैम्प, फिजियोथेरेपी की जगह, दिव्यांग-अनुकूल सूचना प्रारूप और प्रशिक्षित जेल स्टाफ की आवश्यकता पर जोर दिया गया था। अदालत ने माना कि ये निर्देश केवल एक राज्य तक सीमित नहीं रह सकते।
दिव्यांग कैदियों के लिए शिकायत प्रणाली नहीं होने पर भी अदालत ने चिंता जताई। “पीठ ने टिप्पणी की, ‘अगर शिकायत दर्ज करने का असली तरीका न हो, तो अधिकार सिर्फ शोपीस बन जाते हैं।’”
सहायक उपकरणों-व्हीलचेयर, हियरिंग एड, चलने में मदद देने वाले उपकरण-पर अदालत ने सुरक्षा पहलुओं का संतुलन जरूरी बताया। तत्काल आदेश देने की बजाय न्यायालय ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे विस्तृत योजना बताएं कि ऐसे उपकरण सुरक्षित और नियमित रूप से कैसे उपलब्ध कराए जाएंगे।
बेंच ने यह भी माना कि दिव्यांग कैदियों के लिए अतिरिक्त मुलाकात अधिकार जरूरी हैं। जस्टिस नाथ ने कहा, “अलगाव दिव्यांगता को और बढ़ाता है; संपर्क गरिमा को बनाए रखता है।”
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निर्णय
व्यापक निर्देश जारी करते हुए अदालत ने कहा कि:
- मुरुगनाथम के सभी निर्देश स्वतः ही सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होंगे।
- दिव्यांग कैदियों के लिए एक अलग, सुगम और प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र बनाया जाए।
- समावेशी शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ और आवश्यक सुविधाएँ दी जाएँ।
- RPwD अधिनियम की धारा 89 जेल प्रतिष्ठानों पर भी mutatis mutandis लागू होगी और सभी संबंधित अधिकारियों को इस बारे में जागरूक किया जाए।
- राज्यों को सहायक उपकरणों की उपलब्धता, रखरखाव और सुरक्षा के लिए विस्तृत तंत्र प्रस्तुत करना होगा।
- “बेंचमार्क” दिव्यांगता वाले कैदियों को अधिक मुलाकात अधिकार दिए जाएँ और इसकी प्रक्रिया प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश तय करेगा।
अदालत ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को चार महीने के भीतर विस्तृत अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई के लिए 7 अप्रैल 2026 की तारीख निर्धारित की। आदेश संक्षिप्त लेकिन दृढ़ता के साथ समाप्त होता है-यह स्पष्ट करते हुए कि अब वादों से ज्यादा क्रियान्वयन मायने रखता है।
Case Title: Sathyan Naravoor vs. Union of India & Others
Case No.: Writ Petition (Civil) No. 182 of 2025
Case Type: Public Interest Litigation (PIL) under Article 32
Decision Date: 02 December 2025










