पटना हाईकोर्ट ने सुनिला देवी और पंकज कुमार के तलाक को दी मंजूरी, 22 साल की जुदाई और मानसिक क्रूरता को माना आधार

By Shivam Y. • October 15, 2025

पटना उच्च न्यायालय ने 22 साल के अलगाव के बाद सुनीला देवी और पंकज कुमार के तलाक को बरकरार रखा, मानसिक क्रूरता का हवाला देते हुए और 10 लाख रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। - सुनीला देवी बनाम पंकज कुमार

14 अक्टूबर 2025 - पटना हाईकोर्ट ने चीफ जस्टिस पी. बी. बजंथरी और जस्टिस एस. बी. पी. डी. सिंह की खंडपीठ के माध्यम से सुनिला देवी और पंकज कुमार के बीच 2013 के फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें तलाक को मंजूरी दी गई थी। अदालत ने माना कि दोनों के बीच बीस से अधिक वर्षों से अलगाव है और वैवाहिक संबंध "अपूरणीय रूप से टूट चुके" हैं, इसलिए अब सुलह की कोई संभावना नहीं बची।

पृष्ठभूमि

दोनों की शादी 9 मई 1997 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार रोहतास जिले में हुई थी। लेकिन यह विवाह जल्दी ही टूटने लगा। पंकज कुमार के अनुसार, उनकी पत्नी “झगड़ालू” स्वभाव की थीं और विवाह के बाद मुश्किल से कुछ ही हफ्ते अपने ससुराल में रहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि सुनिला देवी आत्महत्या की धमकी देती थीं और झूठे मुकदमे दायर करती थीं, जिनमें से एक भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत था, जिसके कारण उन्हें और उनके परिवार को जेल भी जाना पड़ा।

वहीं सुनिला देवी का कहना था कि अत्याचार और दहेज की मांग का शिकार वही हुई थीं। उन्होंने कहा कि उनके पति ने उन्हें बिना कारण छोड़ दिया और उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक संबंध बहाल करने के लिए याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और पंकज कुमार को धारा 13(1)(i-a) के तहत मानसिक क्रूरता के आधार पर तलाक का हकदार माना।

अदालत की टिप्पणियाँ

दोनों अपीलों की संयुक्त सुनवाई करते हुए जस्टिस सिंह ने सामान्य निर्णय सुनाया और दो दशकों के असफल सुलह प्रयासों की समीक्षा की।

खंडपीठ ने टिप्पणी की-

"2003 से दोनों पक्षों के बीच कोई संबंध स्थापित नहीं हुआ। वे बीस साल से अधिक समय से अलग रह रहे हैं। अब व्यावहारिक रूप से दोबारा मिलना असंभव है।"

अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों - जॉयदीप मजूमदार बनाम भारती जायसवाल मजूमदार (2021) और समर घोष बनाम जया घोष (2007) - का हवाला देते हुए कहा कि क्रूरता केवल शारीरिक नहीं, बल्कि निरंतर भावनात्मक उपेक्षा, वैवाहिक संबंध से इनकार, या मानसिक पीड़ा देने से भी हो सकती है।

“बिना किसी वैध कारण के लंबे समय तक वैवाहिक संबंध से इनकार मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है,” फैसले में कहा गया।

अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह का विवाह जीवित रखना दोनों पक्षों के प्रति अन्याय होगा। जस्टिस सिंह ने लिखा -

"इस टूटे हुए विवाह का मुखौटा बनाए रखना अन्याय होगा और दोनों के लिए क्रूरता के समान है।"

निर्णय और भरण-पोषण

फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को बरकरार रखते हुए, हाईकोर्ट ने वित्तीय निपटान के मुद्दे पर ध्यान दिया। अदालत ने कहा कि निचली अदालत ने स्थायी भरण-पोषण पर कोई निर्णय नहीं दिया था, हालांकि दोनों पक्ष कार्यरत हैं - पंकज एक प्राइवेट स्कूल शिक्षक हैं और सुनिला एक सरकारी पंचायत शिक्षिका हैं, जिनका वेतन ₹28,232 प्रति माह है।

उनकी आय, सामाजिक स्थिति और संपत्ति को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने आदेश दिया कि पंकज कुमार अपनी पत्नी को ₹10 लाख स्थायी भरण-पोषण के रूप में तीन महीने के भीतर अदा करें। यदि राशि समय पर नहीं दी गई तो उस पर प्रति वर्ष 6% ब्याज लगेगा।

फैसले में स्पष्ट किया गया कि सुनिला देवी चाहें तो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत आगे अलग से अतिरिक्त भरण-पोषण के लिए याचिका दायर कर सकती हैं।

अदालत ने कहा -

"यह अदालत का दायित्व है कि पत्नी सम्मानपूर्वक और गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करे, न कि दरिद्रता में। जीवन विलासिता का न हो, परंतु कष्टपूर्ण भी नहीं होना चाहिए।"

इसके साथ ही दोनों अपीलें (नं. 639 और 640/2013) समाप्त कर दी गईं।

Case Title: Sunila Devi vs Pankaj Kumar

Case Numbers:

  • Miscellaneous Appeal No. 639 of 2013
  • Miscellaneous Appeal No. 640 of 2013

Advocates Appeared:

  • For the Appellant: Mr. Ajay Kumar Tiwari, Advocate
  • For the Respondent: Mr. Dharmendra Kumar Singh, Advocate

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