नौकरशाही लालफीताशाही पर सख्त टिप्पणी करते हुए ओडिशा हाईकोर्ट ने राज्य सूचना आयोग के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें हेमंता नायक, भद्रक जिले के निवासी की आरटीआई अपील को खारिज कर दिया गया था। न्यायमूर्ति वी. नरसिंह ने 9 अक्टूबर 2025 को सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि आयोग मामले को दोबारा खोले और merits पर निर्णय दे। उन्होंने पुराने आदेश को “यांत्रिक” और “मस्तिष्क का प्रयोग न करने वाला” बताया।
पृष्ठभूमि
यह मामला 2017 में शुरू हुआ, जब भद्रक जिले के कुआंश गाँव के ग्रामीणों ने सरकार की जमीन - प्लॉट नंबर 1765 (जलाशय भूमि) - पर अवैध कब्जे की शिकायत मुख्य सचिव, ओडिशा सरकार को भेजी। उन्होंने जमीन को सरकारी रिकार्ड में दर्ज करने और कब्जाधारियों को बेदखल करने की मांग की।
हालाँकि, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग, राजस्व मंडल, और राजस्व आयुक्त, केंद्रीय प्रभाग की ओर से कई पत्राचार के बावजूद प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। निराश होकर नायक ने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (RTI Act) के तहत यह जानने के लिए आवेदन किया कि उनकी याचिका पर क्या कार्रवाई हुई।
लेकिन भद्रक तहसील कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी (PIO) ने जवाब दिया कि “ऐसा कोई आवेदन उपलब्ध नहीं है।” हली अपील में भी कोई राहत नहीं मिली। और जब उन्होंने राज्य सूचना आयोग में दूसरी अपील दाखिल की, तो फरवरी 2024 में आयोग ने बस यह कहकर मामला बंद कर दिया कि “सूचना पहले ही दी जा चुकी है।”
न्यायालय के अवलोकन
न्यायमूर्ति नरसिंह ने अपने निर्णय में अधिकारियों के रवैये पर तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि कई सरकारी कार्यालयों ने स्वयं 2017 की शिकायत को स्वीकार किया था, इसलिए तहसीलदार का यह कहना कि आवेदन उपलब्ध नहीं है, “चौंकाने वाला और विरोधाभासी” है।
“यह वास्तव में चौंकाने वाला है,” न्यायालय ने कहा, “कि अधिकारी एक ओर कहते हैं कि याचिका उपलब्ध नहीं है और दूसरी ओर दावा करते हैं कि बिंदुवार उत्तर दिया गया है।”
न्यायालय ने इसे “सबसे ऊँचे स्तर की उदासीनता” बताया और कहा कि यह नागरिकों के अधिकारों को नौकरशाही के जाल में फँसाने जैसा है। न्यायमूर्ति ने याद दिलाया कि आरटीआई कानून सरकार में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिए बनाया गया था, न कि नागरिकों को निराश करने के लिए।
उन्होंने कहा,
“यदि राज्य प्राधिकरणों के ऐसे विरोधाभासी दावे यूँ ही स्वीकार कर लिए जाएँ, तो नागरिकों का सूचना पाने का अधिकार कागज़ी साबित होगा।”
न्यायालय ने यहाँ तक कहा कि याचिकाकर्ता की पीड़ा फ्रांज़ काफ्का के प्रसिद्ध उपन्यास “द ट्रायल” के नायक “जोसेफ” की तरह है, जो एक उलझी हुई नौकरशाही के भंवर में फँस जाता है।
निर्णय
न्यायालय ने यह पाते हुए कि सूचना आयोग का आदेश “विचारहीन” था, 26 फरवरी 2024 का आदेश रद्द कर दिया और मामला दोबारा सुनवाई के लिए आयोग को भेज दिया।
दोनों पक्षों को 27 अक्टूबर 2025 को आयोग के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है और आयोग को आदेश दिया गया कि वह 45 दिनों के भीतर मामले का निपटारा करे।
इसके अलावा, न्यायालय ने भद्रक तहसीलदार पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया, जो उन्हें याचिकाकर्ता को 9 दिसंबर 2025 तक भुगतान करना होगा।
राज्य सरकार को यह राशि जिम्मेदार अधिकारियों से वसूलने की स्वतंत्रता दी गई है।
इसके साथ ही, याचिका का निपटारा कर दिया गया, और इस तरह कुआंश गाँव के ग्रामीणों की सात साल लंबी सूचना संघर्ष की एक बड़ी जीत अदालत से मिली।
Case Title: Hemanta Nayak v. State of Odisha & Others
Case Number: W.P.(C) No. 12399 of 2024