इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हमीरपुर जिले के अचल यादव के खिलाफ उत्तर प्रदेश गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 के तहत जारी नोटिस को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति प्रशांत मिश्रा- I की खंडपीठ ने 10 अक्टूबर 2025 को कहा कि अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (वित्त/राजस्व) की कार्रवाई “यांत्रिक” और “बिना दिमाग लगाए” की गई थी। कोर्ट ने कहा कि केवल कुछ लंबित मुकदमों के आधार पर किसी व्यक्ति को “गुंडा” घोषित नहीं किया जा सकता।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता अचल यादव ने 3 जुलाई 2025 को अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (वित्त/राजस्व), हमीरपुर द्वारा केस नंबर D-20250732000379 में धारा 3 के तहत जारी नोटिस को चुनौती दी थी।
नोटिस के अनुसार, यादव के खिलाफ चार मामले दर्ज थे - जिनमें भारतीय दंड संहिता की धारा 504 और 506 के तहत अपराध और कुरारा थाने की दो बीट रिपोर्टें शामिल थीं। यादव की ओर से अधिवक्ता शोभित यादव ने तर्क दिया कि ये मामूली आरोप हैं, जो किसी “आदतन अपराधी” का संकेत नहीं देते।
खंडपीठ ने माना कि गुंडा एक्ट का उद्देश्य उन व्यक्तियों को नियंत्रित करना है जो समाज की शांति के लिए वास्तविक खतरा हों, लेकिन अब इसे सामान्य और तुच्छ मामलों में भी लागू किया जा रहा है। अदालत ने कहा, “हम गुंडा एक्ट के प्रावधानों के व्यापक दुरुपयोग को देख रहे हैं।”
अदालत के अवलोकन
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने गोवर्धन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) मामले का उल्लेख किया, जिसमें अदालत ने चेताया था कि गुंडा एक्ट का प्रयोग केवल संदेह या एकल मामले के आधार पर नहीं किया जा सकता।
खंडपीठ ने दोहराया कि कुछ छिटपुट मामलों में नामजद होना किसी को “आदतन अपराधी” नहीं बनाता।
अदालत ने टिप्पणी की - “शब्द ‘गुंडा’ अपने आप में एक कलंक लिए हुए है, इसे हल्के में नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए।”
न्यायालय ने प्रिंटेड प्रोफार्मा पर बिना उचित मूल्यांकन के नोटिस जारी करने की प्रवृत्ति पर नाराज़गी जताई। जजों ने कहा कि अधिकारियों को व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा, पारिवारिक पृष्ठभूमि और वास्तविक उपद्रवी प्रवृत्ति को ध्यान में रखना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि कार्यपालिका अक्सर बिना उचित विवेक के कार्रवाई करती है। “एकल या छोटे मामलों में नोटिस जारी करना अत्यंत परेशान करने वाला है,” पीठ ने कहा, यह जोड़ते हुए कि इस तरह का दुरुपयोग न केवल अदालतों पर बोझ डालता है, बल्कि निर्दोष लोगों की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुँचाता है।
निर्णय
अदालत ने पाया कि एडीएम की कार्रवाई “स्वभाव से ही दोषपूर्ण” थी और अचल यादव के खिलाफ 3 जुलाई 2025 का नोटिस रद्द कर दिया। खंडपीठ ने कहा कि केवल चार मामलों के लंबित होने के आधार पर गुंडा एक्ट लागू नहीं किया जा सकता, जब तक यह साबित न हो कि व्यक्ति में लगातार अपराध करने की प्रवृत्ति है।
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अदालत ने राज्य सरकार को यह भी याद दिलाया कि उसने पहले ही सभी जिलों में गुंडा एक्ट के समान और नियंत्रित प्रयोग के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का आदेश दिया था, ताकि जिला अधिकारी मनमानी न कर सकें।
इन टिप्पणियों के साथ, याचिका स्वीकार की गई और विवादित नोटिस को निरस्त कर दिया गया।
Case Title: Achal Yadav vs State of Uttar Pradesh & 2 Others
Case Type: Criminal Misc. Writ Petition No. 22137 of 2025
Date of Judgment: 10 October 2025
Petitioner’s Counsel: Adv. Shobhit Yadav, Adv. Akhand Pratap Singh
Respondent’s Counsel: Learned A.G.A. (Government Advocate)