8 अक्टूबर 2025 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, इंदौर ने एक अहम आदेश में स्पष्ट किया कि चेक बाउंस मामलों (धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम) में शिकायतकर्ता को अब अपील करने के लिए हाईकोर्ट से विशेष अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। यह फैसला Smt. फिरोजा बनाम Smt. मुमताज (CRA-8693-2023) मामले में न्यायमूर्ति गजेन्द्र सिंह की पीठ ने सुनाया।
यह निर्णय मेसर्स सेलेस्टियम फाइनेंशियल बनाम ए. ज्ञानशेखरन (2025 आईएनएससी 804) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि ऐसे मामलों में शिकायतकर्ताओं को पीड़ितों के रूप में माना जाना चाहिए और इसलिए उन्हें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के तहत किसी भी अन्य पीड़ित पक्ष के समान अपील करने का अधिकार प्राप्त है।
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता स्म्ट. फिरोजा ने धारा 138, परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी कि प्रतिवादी स्म्ट. मुमताज ने चेक भुगतान में डिफॉल्ट किया, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ। मंडसौर की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी अदालत ने मई 2023 में आरोपी को बरी कर दिया। इस निर्णय से असंतुष्ट होकर फिरोजा ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 419(4) (पूर्व में दं.प्र.सं. की धारा 378(4)) के तहत अपील करने की अनुमति मांगी।
हालांकि, इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सेलेस्टियम फाइनेंशियल फैसले ने इस मुद्दे को नया कानूनी मोड़ दे दिया।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति गजेन्द्र सिंह ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए उस सिद्धांत का विस्तार से उल्लेख किया जिसमें 'पीड़ित' की परिभाषा (BNSS की धारा 2(y) / पूर्व CrPC की धारा 2(wa)) को समझाया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि -
“चेक बाउंस के मामलों में शिकायतकर्ता वह पक्ष है जिसे आर्थिक क्षति और चोट हुई है, इसलिए उसे स्पष्ट रूप से पीड़ित माना जाना चाहिए।”
हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की इस व्याख्या से यह सिद्ध होता है कि शिकायतकर्ता को अब पीड़ित के रूप में मान्यता मिलती है, जिससे उसे दं.प्र.सं. की धारा 372 (अब BNSS की धारा 413) के तहत स्वतंत्र रूप से अपील करने का अधिकार प्राप्त है।
न्यायमूर्ति सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से उद्धृत करते हुए कहा-
“कानून की भावना के अनुरूप यह न्यायसंगत और उचित होगा कि एन.आई. एक्ट के अंतर्गत शिकायतकर्ता को भी पीड़ित माना जाए... फलस्वरूप, उसे धारा 372 के प्रावधान का लाभ मिलना चाहिए ताकि वह अपने अधिकार से बरी आदेश के खिलाफ अपील कर सके।”
यह अवलोकन चेक बाउंस मामलों में अपील की प्रक्रिया को नया स्वरूप देता है - जिससे अब शिकायतकर्ता को हाईकोर्ट की अनुमति के बजाय सीधे सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील करने का अवसर मिलेगा।
कानूनी परिवर्तन की व्याख्या
पहले, पुराने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 378(4) के तहत, चेक बाउंस मामलों में शिकायतकर्ता को आरोपी की बरी होने के खिलाफ अपील करने के लिए हाईकोर्ट से विशेष अनुमति (लीव टू अपील) लेनी पड़ती थी। यह प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली थी।
अब BNSS के तहत और इस फैसले के आलोक में, शिकायतकर्ता सीधे सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील दाखिल कर सकता है - बिना किसी विशेष अनुमति के।
न्यायमूर्ति सिंह ने टिप्पणी की कि यह परिवर्तन न्याय तक समान पहुंच के सिद्धांत के अनुरूप है, जहां पीड़ित का अपील करने का अधिकार किसी दोषी के अपील के अधिकार से कमजोर नहीं होना चाहिए।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट के सेलेस्टियम फाइनेंशियल फैसले का हवाला देते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि -
“परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत शिकायतकर्ता को अब BNSS की धारा 419(4) के अंतर्गत हाईकोर्ट से अपील की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। वह दं.प्र.सं. की धारा 372 के प्रावधान के तहत अपील दायर कर सकता है।”
अदालत ने अपील का निपटारा करते हुए अपीलकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि वह 60 दिनों के भीतर सत्र न्यायाधीश के समक्ष नई अपील दायर करे। साथ ही, यह भी निर्देश दिया कि यदि अपील समयसीमा के भीतर दायर की जाती है, तो सत्र न्यायालय सीमाबद्धता (limitation) का प्रश्न नहीं उठाएगा और मामले का निपटारा विधि के अनुसार करेगा।
अंत में, न्यायमूर्ति सिंह ने निर्देश दिया कि प्रमाणित निर्णय प्रति की सत्यापित प्रति रखते हुए मूल प्रति अपीलकर्ता को लौटाई जाए।
Case Title: Smt. Firoja vs. Smt. Mumtaj
Case Number: Criminal Appeal No. 8693 of 2023
Date of Judgment: 8 October, 2025
Advocate for Appellant: Shri Anshul Shrivastava
Advocate for Respondent: (Not mentioned in the order)