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दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध निर्माण विवाद में बिल्डर की याचिका खारिज की, मामला "तुच्छ" बताते हुए ₹10,000 का जुर्माना लगाया

Shivam Y.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पड़ोसी के साथ अनधिकृत निर्माण विवाद पर दिनेश सिंघल की याचिका खारिज कर दी, मामले को तुच्छ पाया; देरी की रणनीति के लिए ₹10,000 का जुर्माना लगाया। - श्री दिनेश सिंघल @ सिंधल बनाम दीपक जैन और अन्य।

दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध निर्माण विवाद में बिल्डर की याचिका खारिज की, मामला "तुच्छ" बताते हुए ₹10,000 का जुर्माना लगाया

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को दिनेश सिंघल उर्फ सिंधल द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए इसे "पूरी तरह तुच्छ" करार दिया। अदालत ने कहा कि सिंघल द्वारा अपने पड़ोसी की अवैध निर्माण संबंधी सिविल वाद को रोकने का प्रयास न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। न्यायमूर्ति गिरिश कथपालिया ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न केवल राहत देने से इनकार किया बल्कि सिंघल को एक सप्ताह के भीतर ₹10,000 की राशि दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी (DHCLSC) में जमा करने का निर्देश दिया।

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पृष्ठभूमि

यह मामला पूर्वी दिल्ली के दुर्गापुरी एक्सटेंशन इलाके का है, जहाँ दीपक जैन, शिकायतकर्ता, और उनके पड़ोसी दिनेश सिंघल के बीच अवैध निर्माण को लेकर लम्बा विवाद चल रहा है।

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जैन ने एक स्थायी और अनिवार्य निषेधाज्ञा (permanent and mandatory injunction) के लिए सिविल वाद दायर किया था, जिसमें उन्होंने सिंघल को किसी भी आगे की संरचनात्मक गतिविधि से रोकने और नगर निगम (MCD) तथा स्थानीय पुलिस को अवैध निर्माण हटाने के आदेश देने की मांग की थी। उनका आरोप था कि सिंघल के निर्माण कार्य से उनके मकान में दरारें पड़ गई हैं।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सिंघल ने निचली अदालत में ऑर्डर VII रूल 11 सीपीसी (CPC) के तहत एक आवेदन दायर किया - यह वह प्रावधान है जिसके अंतर्गत अदालत कोई वाद कानूनी रूप से अस्वीकार्य होने पर खारिज कर सकती है। सिंघल का कहना था कि वाद दिल्ली नगर निगम अधिनियम (DMC Act) की धारा 347B और 347E के अंतर्गत वर्जित है, क्योंकि ऐसे मामलों का अधिकार क्षेत्र केवल अपील न्यायाधिकरण, MCD (ATMCD) को है।

हालाँकि, निचली अदालत और उसके बाद जिला न्यायाधीश ने भी यह दलील अस्वीकार कर दी। इसके बावजूद, सिंघल ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि चूँकि MCD पहले ही उनकी संपत्ति को बुक कर चुकी है और सीलिंग आदेश जारी कर चुकी है, इसलिए सिविल वाद स्वीकार नहीं किया जा सकता।

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अदालत के अवलोकन

न्यायमूर्ति कथपालिया ने सुनवाई की शुरुआत में एक स्थापित कानूनी सिद्धांत को दोहराया कि ऑर्डर VII रूल 11 सीपीसी के तहत किसी आवेदन पर विचार करते समय अदालत को केवल वादपत्र (plaint) को ही देखना चाहिए, न कि प्रतिवादी की दलीलों को।

“यह दलील कि प्रतिवादी ने कोई अवैध निर्माण नहीं किया है, एक रक्षा-पक्ष की दलील है, जिसकी जांच मुकदमे के दौरान ही हो सकती है,” अदालत ने कहा और स्पष्ट किया कि ऐसी बातें वाद खारिज करने के आधार नहीं हो सकतीं।

जज ने आगे स्पष्ट किया कि DMC अधिनियम की धारा 347B और 347E किसी प्रभावित पड़ोसी द्वारा दायर किए गए सिविल वाद को नहीं रोकती। ये प्रावधान केवल उस व्यक्ति को रोकते हैं जिसके खिलाफ MCD ने सीलिंग या विध्वंस नोटिस जारी किया है, ताकि वह उसी आदेश को चुनौती देने के लिए अलग सिविल वाद न दायर करे।

“धारा 347E के तहत जो निषेध है, वह MCD के नोटिस या आदेश को चुनौती देने से संबंधित है - न कि उस व्यक्ति से जो अवैध निर्माण के कारण नुकसान झेल रहा है,” पीठ ने कहा।

अदालत ने यह भी कहा कि ATMCD में लंबित कार्यवाही का दायरा - जो MCD द्वारा जारी नोटिस से संबंधित है - जैन के सिविल वाद से पूरी तरह अलग है, क्योंकि वह वाद नुकसान की भरपाई और रोकथाम के लिए है।

न्यायमूर्ति कथपालिया ने कड़े शब्दों में टिप्पणी करते हुए कहा कि सिंघल मुकदमे की कार्यवाही को जानबूझकर खींच रहे हैं ताकि शिकायतकर्ता मुकदमा छोड़ दे।

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“ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता जानबूझकर वाद की कार्यवाही में देरी कर रहे हैं ताकि वादी को थका कर मुकदमे से पीछे हटाया जा सके,” जज ने कहा, यह बताते हुए कि सिंघल ने पहले भी ऑर्डर VII रूल 10 सीपीसी और सिविल रिवीजन जैसी कई निरर्थक याचिकाएँ दायर की थीं, जिन्हें अस्वीकार कर दिया गया था।

अदालत का निर्णय

हाईकोर्ट ने पाया कि निचली अदालत के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है और याचिका को बिना नोटिस जारी किए ही खारिज कर दिया। जज ने इसे “पूर्णत: निरर्थक और तुच्छ” बताया।

इस प्रकार, अदालत ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा, साथ ही सिंघल पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया और निर्देश दिया कि यह राशि DHCLSC में एक सप्ताह के भीतर जमा की जाए।

“वर्तमान याचिका निरर्थक और तुच्छ है, अतः इसे ₹10,000 की लागत के साथ खारिज किया जाता है, जो याचिकाकर्ता को एक सप्ताह के भीतर जमा करनी होगी,” न्यायमूर्ति कथपालिया ने आदेश दिया।

मुख्य याचिका के साथ दायर अन्य सभी आवेदन भी खारिज कर दिए गए, और इस प्रकार दिल्ली के अवैध निर्माण और पड़ोसी विवादों से जुड़ा यह एक और अध्याय समाप्त हुआ।

Case Title: Sh. Dinesh Singhal @ Sindhal vs. Deepak Jain & Anr.

Case Number: CM(M) 1975/2025

Counsel for the Petitioner: Mr. Rakesh Chander Agrawal, Advocate

Counsel for the Respondents: Mr. Bhavishya Makhija, Advocate

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