30 सितम्बर 2025 को सुनाए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम्स लिमिटेड की अपील खारिज करते हुए पुणे स्थित माइक्रो एंटरप्राइज रंजन इंडस्ट्रीज़ के पक्ष में मध्यस्थता पुरस्कार को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरासन ने जुलाई में आरक्षित आदेश सुनाते हुए न केवल पुरस्कार की पुष्टि की बल्कि महिन्द्रा को अतिरिक्त लागत चुकाने का भी निर्देश दिया और यह रेखांकित किया कि बड़े कॉरपोरेट्स को छोटे आपूर्तिकर्ताओं के खिलाफ आक्रामक मुकदमेबाज़ी पर पुनर्विचार करना चाहिए।
पृष्ठभूमि
विवाद की जड़ जनवरी 2017 में महिन्द्रा द्वारा रंजन इंडस्ट्रीज़ को जारी तीन परचेज़ ऑर्डर से जुड़ी है। यह परचेज़ ऑर्डर क्यूटीटीएम असेंबली कंपोनेंट्स की सप्लाई के लिए थे। श्री सुनील पाळवे द्वारा संचालित रंजन इंडस्ट्रीज़ को आंशिक भुगतान तो हुआ, लेकिन लगभग ₹16.16 लाख बकाया रह गया। इसके बाद रंजन ने MSME विकास अधिनियम के तहत फेसीलिटेशन काउंसिल का दरवाज़ा खटखटाया और बकाया रकम के साथ वैधानिक ब्याज की मांग की।
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महिन्द्रा ने बचाव में कहा कि माल देर से और गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं मिला। उसने लगभग ₹61 लाख का प्रतिदावा भी किया, जिसमें कथित नुकसान, लिक्विडेटेड डैमेजेज़ और वैकल्पिक सप्लायर लगाने की लागत शामिल थी। लेकिन रंजन ने दावा किया कि सामान कभी लौटाया ही नहीं गया। उसने महिन्द्रा के इनपुट टैक्स क्रेडिट और डेबिट नोट न होने को वास्तविक स्वीकृति का प्रमाण बताया।
अदालत की टिप्पणियां
हाईकोर्ट के फैसले में दोनों पक्षों के पत्राचार का ब्योरा है। जज ने नोट किया कि महिन्द्रा के अपने रिकॉर्ड – जो उसने सेल्स टैक्स अधिकारियों को दिए थे – दिखाते हैं कि माल “अस्वीकृत” 30 दिसम्बर 2017 को हुआ, डिलीवरी के कई महीने बाद। “इस रुख की तुलना याचिका से की गई… सामान को समय पर अस्वीकार करने का दावा अस्थिर पाया गया,” अदालत ने दर्ज किया।
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एक अहम मुद्दा MSME अधिनियम के तहत डिलीवरी के 15 दिन के भीतर आपत्ति उठाने की समयसीमा थी। अदालत ने माना कि महिन्द्रा के क्वालिटी विभाग की तथाकथित “ऑब्ज़र्वेशंस” को औपचारिक आपत्ति नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति सुंदरासन ने लिखा, “जहाँ खरीदार सामान स्वीकार करता है और उस पर आगे काम की मांग करता है, उसे डिलीवरी के इनकार के रूप में नहीं माना जा सकता।”
पीठ ने यह भी बताया कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण के सामने न तो किसी पक्ष ने मौखिक साक्ष्य दिए और न ही महिन्द्रा ने जुर्माना या वैकल्पिक सप्लायर को भुगतान का कोई सबूत दिया।
महिन्द्रा के इस तर्क को – कि ये “वर्क्स कॉन्ट्रैक्ट” थे और फेसीलिटेशन काउंसिल के अधिकार क्षेत्र से बाहर – अदालत ने “भटकाने वाला मुद्दा” बताते हुए खारिज किया और कहा कि यह साफ़-साफ़ परचेज़ ऑर्डर ही थे।
फैसला
अंततः हाईकोर्ट ने माना कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने “सुबूतों का यथोचित और वाजिब आकलन” किया है और आर्बिट्रेशन ऐक्ट की धारा 34 व 37 के तहत समान निष्कर्षों में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है। अपील खारिज कर दी गई और ₹16.16 लाख के साथ वैधानिक ब्याज का पुरस्कार रंजन इंडस्ट्रीज़ के पक्ष में बरकरार रखा गया।
इसके अलावा, महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम्स को चार हफ्तों के भीतर ₹1.5 लाख बतौर लागत चुकाने का निर्देश दिया गया और मुकदमे के दौरान जमा की गई राशि भी रंजन को लौटाई जाएगी। एक उल्लेखनीय एंड-नोट में न्यायमूर्ति सुंदरासन ने कहा कि बड़े कॉरपोरेट्स को “उचित मुकदमेबाज़ी नीति अपनाकर उदाहरण पेश करना चाहिए” बजाय छोटे उद्यमों को लम्बे कानूनी झगड़ों में उलझाने के।
Case: Mahindra Defence Systems Limited v. Ranjana Industries (through Sole Proprietor Mr. Sunil Palve)
Case Numbers: Arbitration Appeal No. 47 of 2023 with Interim Application No. 17383 of 2023
Reserved On: 23 July 2025
Pronounced On: 30 September 2025