सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उन रिट याचिकाओं पर आदेश सुनाया जिनमें एक तेलंगाना स्थित फर्म के प्रबंधन और सहयोगियों के खिलाफ दर्ज कई एफआईआर को लेकर राहत मांगी गई थी। ओडेला सत्यं व अन्य बनाम तेलंगाना राज्य व अन्य शीर्षक वाले इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि अलग-अलग राज्यों में दर्ज सभी मामलों को एक ही जांच में समाहित किया जाए।
पृष्ठभूमि
आरोपियों में कंपनी के निदेशक, साझेदार और उनके रिश्तेदार शामिल हैं। इनके खिलाफ तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में मामले दर्ज हुए। आरोप लगभग एक जैसे हैं-छोटे निवेशकों से पैसा इकट्ठा करना और योजनाओं के नाम पर उसे हड़प लेना। तेलंगाना की इकॉनॉमिक ऑफेन्सेज विंग (EOW), साइबराबाद ने चार एफआईआर दर्ज कीं, महाराष्ट्र में दो और अन्य राज्यों में एक-एक शिकायत सामने आई।
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याचिकाकर्ताओं का कहना था कि सभी आरोप “एक ही कारण” से जुड़े हैं और कई एफआईआर होना बेवजह की उत्पीड़नकारी कार्रवाई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से न सिर्फ मौजूदा मामलों को क्लब करने बल्कि भविष्य में दर्ज होने वाली एफआईआर को भी रोकने की मांग की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ इस व्यापक मांग से सहमत नहीं हुई। न्यायाधीशों ने कहा, “विभिन्न राज्यों की एफआईआर को क्लब करने और भविष्य की एफआईआर रोकने की प्रार्थना अतिशयोक्तिपूर्ण और प्रत्यक्षतः अवैध है।” उन्होंने अमनदीप सिंह और अमिश देवगन जैसे पुराने फैसलों का हवाला दिया।
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अदालत ने स्पष्ट किया कि टीवी बहस या बयान जैसी घटनाओं में एक ही कार्य से कई शिकायतें दर्ज हो सकती हैं, लेकिन यहां हर एफआईआर अलग-अलग निवेशकों, अलग-अलग राज्यों और कभी-कभी अलग-अलग कानूनों (जैसे तेलंगाना डिपॉजिटर्स प्रोटेक्शन एक्ट या बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड डिपॉजिट स्कीम्स एक्ट) से जुड़ी है।
पीठ ने कहा, “अमिश देवगन मामले में अपराध एक ही था-टीवी शो में दिया गया आपत्तिजनक बयान। लेकिन मौजूदा मामले में शिकायतें उन निवेशकों की हैं जिन्हें फर्म ने कथित रूप से गुमराह कर उनकी जमा पूंजी हड़प ली। यह दोनों स्थितियां बिल्कुल अलग हैं।”
फैसला
व्यावहारिकता और न्याय के बीच संतुलन बनाते हुए अदालत ने आंशिक रूप से एफआईआर ट्रांसफर करने का आदेश दिया। तेलंगाना में माधापुर की एफआईआर को साइबराबाद की EOW में ट्रांसफर किया गया। महाराष्ट्र में ठाणे की एफआईआर को नागपुर के अंबाझरी पुलिस स्टेशन भेजा गया। लेकिन देशभर की सभी एफआईआर को क्लब करने की याचिका खारिज कर दी गई।
अदालत ने महत्वपूर्ण अंतरिम राहत भी दी। कई आरोपी जो जेल में महीनों से बंद थे, उन्हें सशर्त जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया। जिनके खिलाफ वारंट लंबित हैं, उन्हें फिलहाल गिरफ्तार न करने का निर्देश दिया गया, बशर्ते वे छह महीने के भीतर संबंधित ट्रायल कोर्ट में नियमित जमानत के लिए पेश हों। अदालत ने यह भी साफ किया कि गवाहों को यदि यात्रा करनी पड़े तो उनके खर्च का वहन आरोपी करेंगे।
आदेश में यह भी कहा गया कि गिरफ्तारी और जबरन कार्रवाई से मिली यह सुरक्षा केवल छह महीने तक ही रहेगी। इसके बाद आरोपियों को संबंधित अदालतों में नियमित जमानत लेनी होगी, अन्यथा पुलिस कानून के अनुसार कार्रवाई कर सकेगी।
Case Title: Odela Satyam & Anr. v. State of Telangana & Ors. (2025, Supreme Court of India)
Date of Judgment: September 26, 2025