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सुप्रीम कोर्ट ने राजम्मा सड़क हादसा दावा खारिज किया, गवाह की गवाही और FIR में देरी पर उठाए सवाल

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने राजम्मा परिवार का 16 लाख का सड़क हादसा दावा खारिज किया, एफआईआर में देरी और गवाह की अविश्वसनीयता बताई।

सुप्रीम कोर्ट ने राजम्मा सड़क हादसा दावा खारिज किया, गवाह की गवाही और FIR में देरी पर उठाए सवाल

मुआवज़ा पाने की कोशिश कर रहे एक परिवार को शुक्रवार को झटका लगा जब सुप्रीम कोर्ट ने राजम्मा और अन्य द्वारा रिलायंस जनरल इंश्योरेंस के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया। मामला 2014 में राजम्मा के पति की कथित सड़क दुर्घटना में मौत से जुड़ा था, जिसे बीमा कंपनी ने मनगढ़ंत बताया था।

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पृष्ठभूमि

परिवार को पहले मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) से 16.02 लाख रुपये का मुआवज़ा मिला था। उन्होंने कहा कि मृतक, जो परिवार का इकलौता कमाने वाला था, सिंगसंद्रा क्रॉसरोड पर हिट-एंड-रन का शिकार हुआ। न्यायाधिकरण ने उनकी पड़ोसी की गवाही पर भरोसा किया, जिसने खुद को प्रत्यक्षदर्शी बताया था, और बीमा कंपनी की आपत्तियों को दरकिनार कर दिया।

लेकिन हाईकोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया। उसने एफआईआर दर्ज होने में भारी देरी और गवाह की कहानी में विरोधाभास देखते हुए गंभीर संदेह जताए। इसके बाद राजम्मा का परिवार सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और ट्रिब्यूनल का फैसला बहाल करने की मांग की।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और एन. वी. अंजारिया की पीठ ने मामले की बारीकी से जांच की। उन्होंने नोट किया कि एफआईआर पहले हेब्बोगोड़ी थाने में दर्ज की गई थी, जिसके पास अधिकार-क्षेत्र ही नहीं था, और इसे सही थाने (इलेक्ट्रॉनिक सिटी ट्रैफिक पुलिस स्टेशन) में पहुंचने में 117 दिन लगे।

“अगर दुर्घटना की जगह पहले से मालूम थी तो सही थाने में शुरू से ही एफआईआर क्यों दर्ज नहीं हुई?” न्यायाधीशों ने टिप्पणी की। इस अकारण देरी ने दावे की सच्चाई पर संदेह खड़ा कर दिया।

अदालत ने कथित गवाह (PW2) की गवाही को भी परखा। उसने दावा किया कि वह पास में फल की दुकान चला रही थी, दुर्घटना देखी, तुरंत पीड़ित की बेटी को बुलाने गई, और लौटने पर पाया कि वाहन और मृतक दोनों गायब हैं। लेकिन उसी बयान में उसने कहा कि उसने और बच्ची ने वाहन का नंबर नोट कर लिया था। “ऐसे विरोधाभास उसकी गवाही को अविश्वसनीय बनाते हैं,” पीठ ने कहा।

शंका को और पुख्ता करते हुए अदालत को बताया गया कि संबंधित आपराधिक मुकदमे में चालक पहले ही बरी हो चुका है और वही गवाह अदालत में चालक को पहचान भी नहीं पाई।

फैसला

निष्कर्ष निकालते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का दावा खारिज करना सही था। अदालत ने कहा, “हम अपील में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाते।” इस तरह सिविल अपील खारिज कर दी गई और परिवार मुआवज़े से वंचित रह गया।

Case: Rajamma & Others v. M/s. Reliance General Insurance Co. Ltd. & Another

Case Number: Civil Appeal No. 5172 of 2025

Judgment Date: 26 September 2025

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