दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को सरकार समर्थित एक तकनीकी निकाय और एक निजी इंजीनियरिंग कंपनी के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद में हस्तक्षेप करते हुए उस मध्यस्थता पुरस्कार को रद्द कर दिया, जिसने बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की थी। भरे हुए कोर्टरूम में बैठते हुए न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह ने साफ शब्दों में कहा कि कोई भी मध्यस्थ अनुबंध में लिखी शर्तों से आगे नहीं जा सकता, भले ही ज़मीनी हालात कितने ही उलझे हुए क्यों न हों।
पृष्ठभूमि
यह मामला 1999 में हुए एक प्रौद्योगिकी विकास समझौते से जुड़ा है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन टेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन फोरकास्टिंग एंड असेसमेंट काउंसिल (TIFAC) ने कंपोज़िट CNG सिलेंडर विकसित करने के लिए स्ट्रैटेजिक इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड को वित्तीय सहायता दी थी। कागज़ों पर योजना सीधी थी-TIFAC विकास के लिए धन देगा और जैसे ही विशेषज्ञ समिति तकनीक को सफल घोषित करेगी, स्ट्रैटेजिक इंजीनियरिंग किश्तों में राशि लौटाएगी।
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लेकिन व्यवहार में सब कुछ सुचारु नहीं रहा। सलाहकार एवं निगरानी समिति (AMC) द्वारा परियोजना को “सफल” घोषित किए जाने के बावजूद, व्यावसायिक उत्पादन में दिक्कतें आईं, खासकर अमेरिका से एक अहम मशीन के आयात में देरी और प्रतिबंधों के कारण। भुगतान को लेकर विवाद बढ़ा, चेक बाउंस हुए और अंततः मामला मध्यस्थता तक पहुंच गया।
2019 में मध्यस्थ ने दोनों पक्षों के कुछ-कुछ दावों को स्वीकार करते हुए पुरस्कार पारित किया। इससे संतुष्ट न होकर, TIFAC और स्ट्रैटेजिक इंजीनियरिंग-दोनों ने ही मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत हाईकोर्ट का रुख किया।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति सिंह ने समझौते की शर्तों और AMC की कार्यवाही का विस्तार से विश्लेषण किया। अदालत ने कहा कि अनुबंध के अनुसार भुगतान की शर्त व्यावसायिक सफलता नहीं, बल्कि तकनीक के सफल विकास से जुड़ी थी, जिसे AMC द्वारा प्रमाणित किया जाना था।
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पीठ ने टिप्पणी की, “मध्यस्थ ने वहां व्यावसायिक व्यवहार्यता को शर्त बना दिया, जहां अनुबंध में ऐसी कोई शर्त थी ही नहीं।” अदालत के अनुसार, यह सीधे-सीधे समझौते को दोबारा लिखने जैसा था।
न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि AMC ने अपनी पांचवीं बैठक में परियोजना को सफल घोषित किया था और उस समय स्ट्रैटेजिक इंजीनियरिंग ने कोई आपत्ति नहीं जताई। बल्कि, भुगतान दायित्व को स्वीकार करते हुए पोस्ट-डेटेड चेक भी सौंपे गए थे। अदालत ने कहा, “जब अनुबंध के तहत सक्षम प्राधिकारी सफलता का प्रमाण देता है, तो भुगतान की शर्त स्वतः लागू हो जाती है।” ऐसे में मध्यस्थ उस प्रमाणन के खिलाफ अपील की तरह बैठ नहीं सकता।
हाईकोर्ट ने अपने आकलन में साफ कहा कि पुरस्कार “स्पष्ट अवैधता” से ग्रस्त है, क्योंकि उसने अनुबंध की साफ शर्तों को नज़रअंदाज़ कर मध्यस्थ की अपनी सोच को उन पर थोप दिया।
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निर्णय
अंततः, अदालत ने दोनों याचिकाएं स्वीकार करते हुए 14 दिसंबर 2019 के मध्यस्थता पुरस्कार को पूरी तरह से रद्द कर दिया। पुरस्कार के निरस्त होने के साथ ही, स्ट्रैटेजिक इंजीनियरिंग की ओर से दायर अलग चुनौती भी निरर्थक हो गई। सभी लंबित आवेदन भी निस्तारित कर दिए गए, और इस विवाद का यह अध्याय-कम से कम फिलहाल-यहीं समाप्त हुआ।
Case Title: Technology Information Forecasting and Assessment Council (TIFAC) vs Strategic Engineering Pvt. Ltd. & Anr.
Case No.: O.M.P. (COMM) 548/2020 and O.M.P. (COMM) 128/2021
Case Type: Commercial Arbitration – Petition under Section 34, Arbitration and Conciliation Act, 1996
Decision Date: 20 December 2025














