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गुजरात हाईकोर्ट ने IIM अहमदाबाद द्वारा डॉक्टोरल छात्रों को निकाले जाने का फैसला रद्द किया, कहा- पहले वर्ष की शैक्षणिक कमी पर DPM नियम निष्कासन की अनुमति नहीं देते

Vivek G.

गुजरात हाईकोर्ट ने IIM अहमदाबाद द्वारा डॉक्टोरल छात्रों को निकाले जाने का फैसला रद्द किया, कहा- पहले वर्ष की शैक्षणिक कमी पर DPM नियम निष्कासन की अनुमति नहीं देते

सोमवार को भरे हुए कोर्टरूम में गुजरात हाईकोर्ट ने भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उसके डॉक्टोरल प्रोग्राम इन मैनेजमेंट (DPM) के तीन शोध छात्रों को कार्यक्रम से बाहर कर दिया गया था। अदालत ने कहा कि संस्थान ने अपने ही अकादमिक नियमों के दायरे से बाहर जाकर यह कार्रवाई की। यह मामला उन छात्रों से जुड़ा था जिन्हें पहले वर्ष के शैक्षणिक मानकों पर खरे न उतरने के आधार पर हटाया गया था-जिसे अदालत ने DPM मैनुअल के तहत असंगत पाया।

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पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं में अभिलाषा अशोक कुमार भी शामिल थीं, जिन्होंने IIM अहमदाबाद के प्रतिष्ठित DPM कार्यक्रम में प्रवेश लिया था और पहला वर्ष पूरा किया था। जून 2025 में संस्थान ने उन्हें सूचित किया कि वे दूसरे वर्ष में पदोन्नति के लिए आवश्यक शर्तें पूरी नहीं कर पाए हैं और परिणामस्वरूप उनकी उम्मीदवारी समाप्त की जा रही है।

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हर छात्र ने DPM मैनुअल में दी गई आंतरिक अपील प्रक्रिया के तहत निदेशक के समक्ष अपील दायर की। हालांकि, इन अपीलों को खारिज कर दिया गया, जिसके बाद छात्रों ने हाईकोर्ट का रुख किया। छात्रों का तर्क था कि DPM मैनुअल शैक्षणिक कमी को दूर करने के लिए अतिरिक्त समय और सुधारात्मक अवसर देता है, न कि पहले ही वर्ष के बाद सीधे निष्कासन की अनुमति।

अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति निखिल एस. करिएल ने DPM मैनुअल के प्रावधानों का विस्तार से अध्ययन किया और कहा कि कार्यक्रम की संरचना “स्टेज” यानी चरणों में है, न कि सख्त रूप से वर्ष-आधारित ढांचे में। अदालत ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि कोर्सवर्क चरण स्वयं दो वर्षों का होता है और असफलता या कम ग्रेड की स्थिति में पाठ्यक्रम दोहराकर उसे पूरा करने के लिए एक अतिरिक्त वर्ष भी उपलब्ध है।

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पीठ ने टिप्पणी की, “मैनुअल को समग्र रूप से पढ़ने पर यह स्पष्ट होता है कि छात्रों को कोर्सवर्क पूरा करने के लिए पर्याप्त अवसर देने का उद्देश्य रखा गया है।” अदालत ने यह भी कहा कि निष्कासन की व्यवस्था तभी है जब कोई छात्र निर्धारित और विस्तारित समय में पूरे चरण को ही पार न कर पाए।

संस्थान की इस दलील को अदालत ने स्वीकार नहीं किया कि पहले वर्ष के बाद पदोन्नति न मिलने पर स्वतः कार्यक्रम से हटाया जा सकता है। न्यायालय ने कहा, “यदि इस तरह की व्याख्या को मान लिया जाए, तो कोर्स दोहराने और कार्यक्रम की अवधि बढ़ाने से जुड़े प्रावधान निरर्थक हो जाएंगे।”

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि नियमों में पहले या दूसरे वर्ष को दोहराने वाले छात्रों को फेलोशिप न दिए जाने का स्पष्ट उल्लेख है, जो अपने आप में यह संकेत देता है कि पहली ही शैक्षणिक चूक पर छात्रों को बाहर करना मैनुअल की मंशा नहीं थी।

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निर्णय

हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि DPM मैनुअल केवल पहले वर्ष के कोर्सवर्क को पूरा न कर पाने के आधार पर छात्रों को कार्यक्रम से हटाने की अनुमति नहीं देता। इसके साथ ही अदालत ने निष्कासन के आदेश और निदेशक द्वारा पारित अपीलीय आदेश-दोनों को रद्द कर दिया। अदालत ने संस्थान की कार्रवाई को “कानून के अधिकार के बिना” बताते हुए शून्य घोषित किया, जिससे याचिकाकर्ताओं को तत्काल राहत मिली और DPM कार्यक्रम में उनकी स्थिति बहाल हो गई।

Case Title: Abhilasha Ashok Kumar v. Indian Institute of Management & Ors.

Case No.: R/Special Civil Application No. 8459 of 2025 (with SCA Nos. 8513 of 2025 and 9642 of 2025)

Case Type: Special Civil Application (Education / Academic Dispute)

Decision Date: 13 October 2025

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