गौहाटी हाईकोर्ट ने यह कहते हुए चल रही मध्यस्थता कार्यवाही में हस्तक्षेप से मना कर दिया कि MSME अधिनियम के तहत उपलब्ध वैधानिक उपाय, पक्षों के बीच अनुबंध में लिखी गई विवाद निपटान शर्तों पर प्राथमिकता रखते हैं। यह निर्णय न्यायमूर्ति मनीष चौधरी द्वारा 18 नवंबर 2025 को सुनाया गया।
मामला लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई क्षेत्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (LGBRIMH), तेजपुर से संबंधित था, जिसने दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (DIAC) की कार्यवाही का अधिकार क्षेत्र चुनौती देते हुए उसे रोकने की मांग की थी।
पृष्ठभूमि
LGBRIMH - जो केंद्र स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का एक स्वायत्त मानसिक स्वास्थ्य संस्थान है - ने Green Alliance Engineering Services Pvt. Ltd. के साथ GeM अनुबंध (नवंबर 2021 से नवंबर 2022) के तहत मैनपावर सेवा ली थी।
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बाद में संस्थान ने कई अनुबंध उल्लंघनों का आरोप लगाया मजदूरी भुगतान में देरी, EPF/ESI जमा में देरी और श्रमिकों से अनधिकृत धन वसूली। इसलिए अगस्त 2022 में अनुबंध समाप्त कर दिया गया और बैंक गारंटी भी जब्त की गई।
आंतरिक निपटान विफल रहने पर सेवा प्रदाता ने दिल्ली MSME सुविधा परिषद से बकाया भुगतान ₹40.68 लाख की वसूली के लिए शिकायत की। परिषद ने सुलह बंद करते हुए विवाद को DIAC मध्यस्थता के लिए भेज दिया।
LGBRIMH की दलील थी:
“यह किसी भी तरह से विलंबित भुगतान का मामला नहीं, बल्कि लगातार अनुबंध उल्लंघन का विवाद है,” LGBRIMH के वकील ने कहा।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायालय ने कहा कि MSME अधिनियम की धारा 15–18 MSME इकाइयों को विलंबित भुगतान पर वैधानिक संरक्षण देती है, और यह संरक्षण किसी भी निजी अनुबंध की मध्यस्थता शर्तों से ऊपर होगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों - Mahakali Foods (2023) एवं Harcharan Dass Gupta v. ISRO (2025) - का हवाला देते हुए न्यायालय ने दोहराया:
“पक्षकारों के बीच निजी समझौता वैधानिक प्रावधानों को निरस्त नहीं कर सकता… Section 18 लागू होते ही वह सभी अन्य समझौतों पर वरीयता रखता है।”
साथ ही, चूँकि आपूर्तिकर्ता (MSME) दिल्ली में स्थित है, इसलिए अधिकार क्षेत्र दिल्ली MSME परिषद और DIAC के पास होगा भले ही GeM अनुबंध में कोई अन्य स्थान लिखा हो।
न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुबंधीय विवाद, जिनमें लोक विधि (public law) का तत्व न हो, उन्हें सीधे अनुच्छेद 226 के तहत नहीं उठाया जा सकता।
निर्णय
अदालत ने रिट याचिका को अस्वीकार्य करार दिया और कहा कि LGBRIMH चाहे तो अपने सभी कानूनी अधिकार और आपत्तियाँ मध्यस्थ अधिकरण के समक्ष उठा सकता है Arbitration Act की धारा 16 और 34 के तहत:
“यह निर्णय किसी भी प्रकार से याचिकाकर्ता के अधिकारों, दावों और आपत्तियों को प्रभावित नहीं करेगा… मध्यस्थ न्यायाधिकरण तथ्यों और कानून के अनुसार निर्णय देगा।” displayphp-634781
कोई लागत (Cost) आदेश नहीं दिया गया।
अंततः अदालत ने स्पष्ट संदेश दिया MSME को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने वाली वैधानिक सुरक्षा को अनुबंध की शर्तें कमजोर नहीं कर सकतीं चाहे संस्था सार्वजनिक हो या निजी।
Case Title:- Lokopriya Gopinath Bordoloi Regional Institute of Mental Health (LGBRIMH), Tezpur vs. M/s Green Alliance Engineering Services Pvt. Ltd. & Ors.
Case Number: Writ Petition (Civil) No. 5962/2025










