गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया, जिसका असर पूरे देश में हॉस्टल और पीजी ऑपरेटरों पर पड़ सकता है। कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा जिसमें आवासीय संपत्तियों को हॉस्टल के रूप में सब-लीज करने पर भी GST छूट देने की अनुमति दी गई थी। जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की अगुवाई वाली पीठ ने लंबा और कहीं-कहीं तीखा आदेश जारी करते हुए बताया कि टैक्स विभाग की संकीर्ण व्याख्या स्वीकार नहीं की जा सकती।
पृष्ठभूमि
मामला तब शुरू हुआ जब बेंगलुरु के सह-मालिक ताघर वासुदेव अम्बरीश ने अपनी 42 कमरों वाली आवासीय इमारत DTwelve Spaces Pvt. Ltd. को लीज पर दी, जो छात्रों और कामकाजी पेशेवरों को सब-लीज पर कमरे उपलब्ध कराती है। टैक्स अधिकारियों ने GST नोटिफिकेशन 9/2017 के एंट्री 13 के तहत मिलने वाली छूट को यह कहते हुए नकार दिया कि कंपनी खुद उस संपत्ति में “रहती” नहीं है, इसलिए यह ‘आवासीय उपयोग’ नहीं माना जा सकता।
Read also:- समझौते के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सलेम के दो आरोपियों की सजा घटाई, 2016 हमले के मामले में तुरंत रिहाई का आदेश
AAR और AAAR दोनों ने छूट को अस्वीकार किया, जिसे हाई कोर्ट ने पलट दिया। इसके बाद कर्नाटक सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँची।
कोर्ट के अवलोकन
सुनवाई के दौरान पीठ राजस्व विभाग की इस दलील से प्रभावित नहीं दिखी कि छूट पाने के लिए किरायेदार का स्वयं रहना ज़रूरी है। आदेश में कोर्ट ने स्पष्ट कहा, “एंट्री 13 को संकीर्ण तरीके से पढ़ना… विधायी मंशा को ही हराने जैसा होगा।”
जजों ने “रेसिडेंशियल ड्वेलिंग” की परिभाषा का विस्तार से अध्ययन किया-पुराने सर्विस टैक्स कानून, कई न्यायिक मिसालों और नगर निगम के रिकॉर्ड का भी जिक्र किया। कोर्ट ने बताया कि यह संपत्ति नगर निकाय के रिकॉर्ड में ‘रेसिडेंशियल’ दर्ज है और छात्र औसतन तीन से बारह महीने तक वहाँ रहते हैं। सीधी बात यह कि-किसी अन्य द्वारा किराया चुकाने से वह जगह ‘घर’ होना बंद नहीं हो जाती।
अपने आदेश में न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, “जब एक बार छूट लागू हो जाती है, तो उसे पूरा प्रभाव दिया जाना चाहिए।”
Read also:- मदुरै बेंच ने अपील खारिज की, कहा-राज्य अदालत के आदेश से थिरुप्परनकुंद्रम हिलटॉप पर कार्तिगई दीपम
कोर्ट ने यह भी समझाया कि इस छूट का उद्देश्य residential उपयोग पर 18% का अतिरिक्त बोझ हटाना है। यदि होस्टल चलाने पर भी GST लगाया जाए, तो आखिरकार यह लागत छात्रों और कामकाजी महिलाओं पर ही पड़ेगी-जो कि नीति की भावना के विरुद्ध है।
एक और महत्वपूर्ण टिप्पणी में कोर्ट ने कहा, “कहीं भी यह शर्त नहीं है कि किरायेदार स्वयं उस आवास में रहे… छूट की मंशा बिल्कुल स्पष्ट है।”
राजस्व विभाग द्वारा 2022 के संशोधनों-जिनमें रजिस्टर्ड व्यक्ति को किराए पर देने पर छूट समाप्त कर दी गई है-को लागू करने की कोशिश पर कोर्ट ने साफ कहा कि इन्हें पिछली तारीख से लागू नहीं किया जा सकता।
Read also:- छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने CAT का आदेश रद्द किया, कहा-रेलवे मैनेजर का VRS वापस लेने का आवेदन समय पर था
निर्णय
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि 2019 से 2022 की अवधि के लिए एंट्री 13 के तीनों तत्व-किराए पर देना, आवासीय भवन होना तथा आवासीय उपयोग-पूरी तरह पूरे होते हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक राज्य की दोनों अपीलें खारिज कर दीं।
पीठ ने अंत में साफ कहा: “हमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता।”
Case Title: The State of Karnataka & Anr. vs. Taghar Vasudeva Ambrish & Anr.
Case No.: Civil Appeal No. 7846 of 2023 (with Civil Appeal No. 7847 of 2023)
Case Type: Civil Appeal (Supreme Court of India – GST Exemption Dispute)
Decision Date: 4 December 2025









