मंगलवार को हुई सुनवाई, जो पूरी कार्यवाही के दौरान शांत लेकिन ठोस गति से आगे बढ़ी, में सुप्रीम कोर्ट ने तुषार कुमार विश्वास के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि पुलिस ने “ऐसा कोई भी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जिसे मुकदमे में साक्ष्य के रूप में बदला जा सके।” जस्टिस मनमोहन की अगुवाई वाली पीठ इस बात से स्पष्ट रूप से असंतुष्ट दिखी कि एक नागरिक विवाद से जुड़े मामले को किस तरह आपराधिक प्रक्रिया में धकेल दिया गया।
Background (पृष्ठभूमि)
मामला मार्च 2020 से शुरू हुआ था, जब ममता अग्रवाल, जो खुद को सॉल्ट लेक स्थित CF-231, सेक्टर I के एक सह-मालिक की किरायेदार बताती थीं, ने एक FIR दर्ज कराई। उनका आरोप था कि विश्वास ने उन्हें गलत तरीके से रोका, उनकी सहमति के बिना उनकी तस्वीरें लीं और उन्हें धमकाया। पुलिस ने आगे चलकर IPC की धाराओं 341 (गलत तरीके से रोकना), 354C (झाँकने/गोपनीयता भंग) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत चार्जशीट दायर कर दी।
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लेकिन कहानी इतनी सीधी नहीं थी। जिस संपत्ति की बात थी, उस पर पहले से एक दीवानी निषेधाज्ञा (injunction) लागू थी, जिसमें दोनों सह-मालिकों-विश्वास के पिता और उनके चाचा-को संयुक्त कब्जा बनाए रखने और किसी तीसरे व्यक्ति को संपत्ति में प्रवेश न देने का आदेश था। पीठ के सामने जब यह तथ्य आया, तब यह बहुत साफ हो गया कि FIR वास्तव में पारिवारिक संपत्ति विवाद में उलझा हुआ मामला था। अदालत ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता वास्तव में किरायेदार थीं ही नहीं। उनके चाचा के बयान के मुताबिक, वह तो सिर्फ “संपत्ति देखने आई थीं।”
और भी दिलचस्प बात यह रही कि उन्होंने न तो कोई न्यायिक बयान दिया और न ही धारा 164 के तहत बयान देने के लिए सहमति दी।
Court’s Observations (अदालत की टिप्पणियाँ)
पीठ ने विस्तार से बताया कि यह मामला मुकदमे के स्तर तक पहुँचता ही नहीं। सुनवाई के दौरान जस्टिस मनमोहन ने कहा, “डिस्चार्ज के चरण पर, ऐसा मजबूत संदेह होना चाहिए जो मुकदमे में साक्ष्य के रूप में बदला जा सके। यहाँ वह न्यूनतम स्तर भी नहीं मिलता।”
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अदालत ने प्रत्येक आरोप को अलग-अलग देखा:
धारा 354C (वॉयूरिज़्म) पर:
पीठ ने कहा कि FIR में किसी ‘निजी क्रिया’ का उल्लेख नहीं था, जो इस धारा के लिए आवश्यक है। किसी खुले स्थान पर किसी की फोटो खींच लेना, बिना और संदर्भ के, इस अपराध की श्रेणी में नहीं आता। हाई कोर्ट ने भी पहले कहा था कि इस आरोप का कोई आधार नहीं, फिर भी डिस्चार्ज नहीं दिया-सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंगत बताया।
धारा 506 (आपराधिक धमकी) पर:
FIR में किसी धमकी भरे शब्द का उल्लेख नहीं था, न ही किसी प्रकार के भय, चोट या नुकसान का कोई विवरण था। अदालत ने स्पष्ट कहा कि “सिर्फ एक खोखला आरोप” आपराधिक मुकदमे को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
धारा 341 (गलत तरीके से रोकना) पर:
शिकायतकर्ता के पास संपत्ति में प्रवेश करने का कोई अधिकार ही नहीं था, विशेष रूप से इस तथ्य को देखते हुए कि उन्हें किरायेदार बनाना ही पहले से लागू निषेधाज्ञा का उल्लंघन होता। ऐसे में विश्वास का विरोध “एक दीवानी आदेश का bona fide पालन” था, न कि कोई अपराध।
अदालत ने पुलिस को एक व्यापक चेतावनी भी दी, जो कुछ कठोर भी लगी:
“ऐसे मामलों में जहाँ मजबूत संदेह भी नहीं बनता, चार्जशीट दायर करने की प्रवृत्ति न्यायिक व्यवस्था को जाम कर देती है और गंभीर मामलों से संसाधन छीन लेती है।”
Decision (निर्णय)
FIR और चार्जशीट में किसी भी कानूनी रूप से टिकाऊ सामग्री की कमी पाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार की, कलकत्ता हाई कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और 2020 की FIR से जुड़े सभी मामलों में तुषार कुमार विश्वास को पूर्णतः डिस्चार्ज कर दिया। इसी निर्णय के साथ अदालत ने मामला समाप्त कर दिया।
Case Title: Tuhin Kumar Biswas @ Bumba vs. State of West Bengal
Case No.: Criminal Appeal No. 5146 of 2025
Case Type: Criminal Appeal (arising out of SLP (Crl.) No. 3002/2024)
Decision Date: 02 December 2025










