जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख हाई कोर्ट के कोर्ट नंबर 4 में मंगलवार को माहौल तनावपूर्ण दिखा, जब एक दशक से लंबित सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े मामलों की सुनवाई अचानक अत्यंत गंभीर मोड़ ले गई। यह सुनवाई, जो सामान्य फॉलो-अप की तरह शुरू हुई थी, जल्दी ही जम्मू के हृदय रोगियों के जीवन और मृत्यु के प्रश्न में बदल गई।
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पृष्ठभूमि
ये याचिकाएँ जिनमें कुछ 10 साल से अधिक पुरानी हैं - बुनियादी चीज़ों की माँग करती हैं: राजधानी और शहरी क्षेत्रों में मजबूत चिकित्सा ढाँचा और निजी नर्सिंग होम व स्वास्थ्य केंद्रों की निगरानी, स्वास्थ्य मंत्रालय के मानकों के अनुसार। इस मामले का नेतृत्व Citizens Forum कर रहा है, जिनकी ओर से एडवोकेट SS Ahmed और सुप्रिया चौहान पेश हो रहे हैं।
सरकार की तरफ से Sr. AAG मोनिका कोहली और AAG रविंदर गुप्ता मौजूद थे, जबकि पीठ ने यह स्पष्ट किया कि 15 अनुपालन रिपोर्टें दाखिल हुईं, परंतु “कोई ठोस परिणाम नहीं मिला”।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति रजनीश ओस्वाल और मुख्य न्यायाधीश अरुण पाली की पीठ ने अमीकस क्यूरी, श्री SS Ahmed की तरफ से व्यक्त गंभीर स्थिति को ध्यान से सुना। उन्होंने एक समाचार रिपोर्ट साझा की, जिसमें बताया गया कि Government Super Speciality Hospital (GSSH), Jammu में सभी कार्डिएक प्रक्रियाएँ ठप हो गईं क्योंकि सप्लायर्स ने ₹30 करोड़ से अधिक बकाया राशि के चलते स्टेंट, पेसमेकर व अन्य आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति रोक दी है ये राशि Ayushman Bharat PM-JAY स्कीम के तहत बकाया बताई गई।
आम दिनों में अस्पताल में लगभग 25 हृदय उपचार होते हैं। परंतु सोमवार को एक भी नहीं। कमजोर मरीज जोखिम में पड़ गए, इंतज़ार करते रहे, और सच कहें तो बेहद डरे हुए।
पीठ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा-
“प्रत्यक्ष दृष्टि से, मामला अत्यधिक संवेदनशील है,” और आगे- “हम स्वतः संज्ञान लेने के लिए बाध्य हैं”।
कोर्ट की गंभीरता से स्पष्ट था कि यह अब सामान्य धीमी गति से चलने वाली PIL नहीं रही, बल्कि मानवीय संकट का मामला बन चुका है।
निर्णय
कोर्ट ने Registrar (Judicial) को निर्देश दिया कि “Court on its own motion vs. Nemo” शीर्षक से एक नया स्वतः संज्ञान वाद दर्ज किया जाए और तुरंत इसी पीठ के समक्ष पेश किया जाए। कोर्ट ने अमीकस को पूर्व में दाखिल सभी दस्तावेजों को समेकित कर सुझाव देने के लिए समय दिया। और इसके साथ ही सुनवाई को 29 दिसंबर 2025 तक स्थगित कर दिया गया।
Case Title:- Citizens Forum vs. State of J&K and others









