Logo
Court Book - India Code App - Play Store

advertisement

केरल उच्च न्यायालय ने पीएमएलए जांच से जुड़े संवेदनशील अपराध शाखा मामले में एफआईआर की प्रतियां मांगने के लिए प्रवर्तन निदेशालय की नई याचिका को अनुमति दी

Shivam Y.

केरल उच्च न्यायालय ने ईडी को पीएमएलए जांच के लिए एफआईआर की प्रतियां मांगने के लिए एक नई याचिका दायर करने की अनुमति दी, अपराध शाखा भ्रष्टाचार मामले में मजिस्ट्रेट के इनकार को खारिज कर दिया। - प्रवर्तन निदेशालय बनाम केरल राज्य

केरल उच्च न्यायालय ने पीएमएलए जांच से जुड़े संवेदनशील अपराध शाखा मामले में एफआईआर की प्रतियां मांगने के लिए प्रवर्तन निदेशालय की नई याचिका को अनुमति दी

केरल हाई कोर्ट ने बुधवार को रानी मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा प्रवर्तन निदेशालय (ED) को क्राइम ब्रांच की संवेदनशील जांच में केस दस्तावेज़ देने से इनकार करने वाले आदेश को खारिज कर दिया। जस्टिस राजा विजयाराघवन वी और जस्टिस के.वी. जयकुमार की डिवीजन बेंच ने एर्नाकुलम हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई की और उसी दिन आदेश सुना दिया।

Read in English

अदालत में सुनवाई के दौरान ED ने जोर देकर कहा कि उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA) के तहत आगे बढ़ने के लिए FIR की कॉपी चाहिए। वहीं राज्य ने संवेदनशीलता का हवाला देते हुए विरोध किया।

पृष्ठभूमि

प्रवर्तन निदेशालय ने इससे पहले रानी की मजिस्ट्रेट अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था और क्राइम ब्रांच द्वारा दर्ज FIR - क्राइम नंबर 3700/2025 - की प्रमाणित प्रति मांगी थी, जिसमें IPC और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध शामिल हैं, जो PMLA के लिए आधार अपराध (predicate offence) होते हैं।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधायक के खिलाफ कई आपराधिक मामलों को रद्द करने की याचिका खारिज की, कहा- अश्विनी उपाध्याय दिशानिर्देशों के तहत मामला वापस लेने के लिए हाईकोर्ट की अनुमति जरूरी

17 अक्टूबर 2025 को मजिस्ट्रेट ने ED की अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि जांच “संवेदनशील” है और हाई कोर्ट इसकी निगरानी कर रहा है। इसके बाद ED ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528 के तहत हाई कोर्ट में चुनौती दी।

ED के वकील जयशंकर वी. नायर ने दलील दी कि FIR एक सार्वजनिक दस्तावेज़ है, जिसे सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्य के दौरान तैयार करते हैं, और मजिस्ट्रेट ने गलत आधार पर आदेश पास किया। उन्होंने कहा- “इस अदालत ने कभी भी FIR उपलब्ध कराने पर रोक नहीं लगाई।”

अदालत की टिप्पणियाँ

बेंच ने मजिस्ट्रेट की दलीलों का परीक्षण किया और एक अहम बिंदु बताया - ED की अर्जी में “अपराध से उत्पन्न संपत्ति” (proceeds of crime) के अस्तित्व का कोई उल्लेख ही नहीं था, जबकि PMLA लागू होने के लिए यह आवश्यक शर्त है।

Read also:- दिल्ली उच्च न्यायालय ने लालफीताशाही के साथ वकील के विरोध पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की, राज्य को मुआवजा विवाद मामले में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया

न्यायालय ने स्पष्ट किया:

“PMLA के अधिकार क्षेत्र की शुरुआत तभी होती है जब आधार अपराध से proceeds of crime उत्पन्न हुए हों।”

न्यायाधीशों ने कहा कि ऐसी बुनियादी बातों के बिना मजिस्ट्रेट के लिए अर्जी स्वीकार करना मुश्किल होता - हालांकि सीधा खारिज कर देना सही नहीं था।

राज्य के शीर्ष अभियोजक ने कहा कि यदि नई अर्जी दी जाती है तो निर्णय से पहले राज्य को भी सुना जाए। अदालत ने इसे उचित माना।

Read also:- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बलरामपुर बलात्कार मामले की जांच में झूठे हलफनामे की निंदा की, पीड़िता के दोबारा दर्ज बयान को राज्य की चुनौती पर सवाल उठाए, शीर्ष अधिकारी से जवाब मांगा

न्यायालय ने मजिस्ट्रेट की गलतफहमी भी साफ की:

“हमने कभी भी मजिस्ट्रेट को PMLA या रूल 226 के अनुरूप अर्जी पर विचार करने से नहीं रोका…”

फ़ैसला

हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया और कहा कि ED चाहे तो फिर से नई और विस्तृत अर्जी दायर कर सकती है, जिसमें यह स्पष्ट हो कि दस्तावेज़ PMLA जांच के लिए क्यों ज़रूरी हैं।

बेंच ने निर्देश दिया कि ऐसी अर्जी आने पर मजिस्ट्रेट “राज्य को सुनने के बाद” कानूनी प्रावधानों के अनुसार फ़ैसला करे। क्रिमिनल मिस. केस इसी निर्देश के साथ निपटा दिया गया।

सुनवाई संक्षिप्त रही, लेकिन अब ED को मजबूत तथ्यात्मक आधार के साथ फिर से कोशिश करनी होगी।

Case Title:- Directorate of Enforcement v. State of Kerala

Advertisment

Recommended Posts