मदुरै पीठ में मद्रास हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण आदेश सुनाया, जिसमें न्यायमूर्ति एल. विक्टोरिया गौरी ने लंबित भरण-पोषण का भुगतान न करने पर कोविलपट्टी के एक व्यक्ति के खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट (NBW) को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को कम कठोर विकल्पों को आज़माए बिना सीधे NBW पर नहीं कूदना चाहिए। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कई बार यह सवाल उठाया कि आखिर बुनियादी “बैलिबल वारंट” जारी किए बिना NBW कैसे जारी हो गया।
पृष्ठभूमि
मामला 2016 के उस भरण-पोषण आदेश से जुड़ा था, जिसमें अदालत ने अलगारसामी को अपनी पत्नी मंगालसुंदरी को ₹6,000 प्रतिमाह और बेटी को ₹4,000 प्रतिमाह देने के साथ-साथ लंबित बकाया चुकाने का निर्देश दिया था। पत्नी के अनुसार कुल बकाया ₹5 लाख से अधिक था, जबकि पति ने इस आंकड़े को “बेहद बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया” कहा।
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जब कोविलपट्टी के न्यायिक मजिस्ट्रेट-I ने गत वर्ष कार्यान्वयन याचिका पर सुनवाई की, तो अदालत ने पति की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया। इसी आदेश को पति ने हाई कोर्ट में चुनौती दी-वह भी सिर्फ NBW की वैधता पर, न कि मूल भरण-पोषण आदेश पर।
पति के वकील ने तर्क दिया कि मजिस्ट्रेट ने “सीधे NBW जारी कर दिया”, जबकि कानून के अनुसार पहले समन, फिर बैलिबल वारंट और उसके बाद ही गैर-जमानती वारंट जारी किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भरण-पोषण की कार्यवाही अर्ध-नागरिक प्रकृति की होती है, जिसका उद्देश्य दंड देना नहीं बल्कि आश्रित को सहारा देना है।
पत्नी के वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि पति को समन मिला था, उसने काउंटर भी दायर किया था, और उसके बाद वह अदालत में उपस्थित होना ही बंद कर दिया। “मजिस्ट्रेट को पूरा अधिकार था यह मानने का कि वह जानबूझकर बच रहा था,” उन्होंने कहा।
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अदालत के अवलोकन
न्यायमूर्ति गौरी ने संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने माना कि पति ने भुगतान में चूक की, लेकिन मजिस्ट्रेट के आदेश में स्पष्टता और कानूनी प्रक्रिया का पूरा पालन नहीं था।
अदालत ने कहा कि 12 महीने से अधिक के बकाये की वसूली के लिए आवेदन धारा 125(3) CrPC-जो कारावास से संबंधित है-के तहत नहीं बल्कि धारा 128 CrPC के तहत चलाया जाना चाहिए, जिसमें संपत्ति कुर्की जैसे विकल्प होते हैं। इसके बावजूद मजिस्ट्रेट ने ऐसा आदेश जारी किया जो “डिस्ट्रेस वारंट” जैसा दिखा-पर आदेश में यह नहीं बताया गया कि वह किस धारा के तहत जारी हुआ।
“अदालत ने टिप्पणी की, ‘जब बात व्यक्तिगत स्वतंत्रता की हो, तो अदालत की भाषा बिल्कुल स्पष्ट होनी चाहिए। गैर-जमानती वारंट कोई सामान्य फॉर्म भरने जैसा नहीं है।’”
न्यायमूर्ति गौरी ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि NBW से पहले बैलिबल वारंट जारी किया गया हो। सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों में NBW को अंतिम उपाय बताया गया है-ऐसा कदम जो तब उठाया जाता है जब सभी साधारण विकल्प विफल हो जाएं।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने “अच्छी नीयत का प्रमाण नहीं दिया”, फिर भी प्रक्रिया संबंधी खामियों को अनदेखा नहीं किया जा सकता, विशेषकर जब मामला अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा हो।
निर्णय
हाई कोर्ट ने अंततः NBW को रद्द कर दिया और कहा कि यह आदेश प्रक्रिया संबंधी त्रुटियों से ग्रस्त था। अदालत ने मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि पहले बैलिबल वारंट जारी किया जाए और फिर सही प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही आगे बढ़े।
साथ ही अदालत ने पति को आदेश दिया कि वह स्वीकार किए गए बकाये का 50% चार सप्ताह में जमा करे। अदालत ने स्पष्ट किया कि भुगतान न करने को केवल तकनीकी त्रुटियों की आड़ में नहीं छुपाया जा सकता।
निर्णय के अंत में अदालत ने कहा कि भरण-पोषण कानून “सामाजिक न्याय के लिए है-न तो उत्पीड़न के लिए, न ही बचने के लिए।” कार्यान्वयन दृढ़ होना चाहिए, पर निष्पक्ष भी।
Case Title: Alagarsamy vs. Mangalasundari & Devi Meenakshi
Case No.: Crl RC (MD) No. 804 of 2023
Case Type: Criminal Revision Petition (Challenge to NBW in maintenance execution)
Decision Date: 20 November 2025










