सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कर्नाटक में हुई एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना से जुड़े लंबे समय से चल रहे मुआवज़ा विवाद पर आखिरकार विराम लगा दिया। इस हादसे में दो युवाओं की जान चली गई थी। खचाखच भरे अदालत कक्ष में बैठी पीठ ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण और कर्नाटक हाईकोर्ट के समान निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि पीड़ित परिवार यह साबित करने में असफल रहे कि दुर्घटना किस वाहन से हुई थी।
हालांकि माहौल सहानुभूति से भरा हुआ था, लेकिन अदालत ने साफ कर दिया कि कानून में केवल करुणा, सबूत की जगह नहीं ले सकती।
पृष्ठभूमि
यह मामला 14 अगस्त 2013 की रात का है। सुनील सिंह (26) और उनके दोस्त शिवु (22) होंनाली से मोटरसाइकिल पर लौट रहे थे, तभी सुगुर गांव के पास उनका भीषण हादसा हो गया। शिवु की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सुनील ने अस्पताल में दम तोड़ दिया।
उनके परिजनों ने शिमोगा के मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में याचिका दायर कर एक कैंटर लॉरी पर लापरवाही से वाहन चलाने का आरोप लगाया, जो साईं राम जनरल इंश्योरेंस कंपनी से बीमित थी। लेकिन 2015 में अधिकरण ने यह कहते हुए दोनों दावे खारिज कर दिए कि परिवार यह साबित नहीं कर पाए कि वही लॉरी दुर्घटना में शामिल थी। 2018 में कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी इन फैसलों को बरकरार रखा।
इसके बाद परिवार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
न्यायालय की टिप्पणियां
अपीलकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि दुर्घटना होना तो निर्विवाद है और मोटर दुर्घटना मामलों में “संतुलित संभावना” का मानक लागू होता है, न कि आपराधिक मामलों जैसा कड़ा सबूत। उन्होंने एफआईआर, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट, पुलिस दस्तावेज़ और गवाहों के बयानों पर भरोसा किया।
वहीं बीमा कंपनी ने तर्क दिया कि दुर्घटना में कौन सा वाहन शामिल था, यह साबित करना अनिवार्य है। अदालत को याद दिलाया गया कि “केवल दुर्घटना होना पर्याप्त नहीं है।”
रिकॉर्ड देखने के बाद पीठ ने निचली अदालतों से सहमति जताई। अदालत ने कहा कि सबूतों में कई कमजोर कड़ियां हैं। कथित मुख्य गवाहों ने स्वीकार किया कि उन्होंने दुर्घटना अपनी आंखों से नहीं देखी। कुछ गवाहों ने जिरह के दौरान अपने ही बयानों से पलट लिया। एक दावा, कि चालक ने अजनबियों के सामने दुर्घटना स्वीकार कर ली, अधिकरण को स्वाभाविक मानवीय व्यवहार के विपरीत लगा।
जैसा कि पीठ ने कहा, “अधिकरण द्वारा दिए गए और हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि किए गए तथ्यात्मक निष्कर्ष एक साथ हैं, और इनमें हस्तक्षेप केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जा सकता है।”
एक अहम पहलू मोटर वाहन निरीक्षक की रिपोर्ट थी। कथित दोषी लॉरी पर किसी तरह का नुकसान नहीं पाया गया। न्यायाधीशों ने कहा कि यह तथ्य इतनी गंभीर टक्कर से मेल नहीं खाता, जिसमें दो लोगों की जान चली गई हो। इसके अलावा, वाहन को घटना के एक महीने से भी अधिक समय बाद बरामद किया गया, जिससे पूरे मामले पर और संदेह गहराया।
निर्णय
पीठ ने मृतकों के परिवारों के “असीम दर्द” को स्वीकार करते हुए भी कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत जिम्मेदारी सहानुभूति के आधार पर नहीं, बल्कि विश्वसनीय साक्ष्यों के आधार पर तय की जानी चाहिए। निचली अदालतों के फैसलों में कोई कानूनी त्रुटि या गंभीर खामी न पाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपीलें खारिज कर दीं और मुआवज़ा दावों को अस्वीकार करने के आदेश को बरकरार रखा। साथ ही, लागत के संबंध में कोई आदेश नहीं दिया गया।
Case Title: Sithara N.S. & Others vs. Sai Ram General Insurance Company Limited
Case No.: Civil Appeal Nos. 14718–14719 of 2025 (arising out of SLP (C) Nos. 281–282 of 2019)
Case Type: Motor Accident Compensation – Civil Appeal (Supreme Court of India)
Decision Date: December 12, 2025










