बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक विस्तृत सुनवाई के बाद नेशनल कोऑपरेटिव डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NCDC) द्वारा दायर कई अपीलों को खारिज कर दिया। निगम ने आयकर अधिनियम की धारा 36(1)(viii) के तहत बड़ी कर कटौती की मांग करते हुए कहा था कि शेयरों पर डिविडेंड, अल्पकालिक बैंक जमा से ब्याज और शुगर डेवलपमेंट फंड (SDF) से मिलने वाले सेवा शुल्क उसके मुख्य व्यवसाय का हिस्सा हैं। अदालत इस तर्क से सहमत नहीं हुई। इसके बजाय, उसने यह स्पष्ट किया कि ‘लॉन्ग-टर्म फाइनेंस’ से “प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त” लाभ ही इस छूट के दायरे में आते हैं।
पृष्ठभूमि
विवाद उन आकलन वर्षों से जुड़ा है जिनमें NCDC-जो कृषि और सहकारी विकास को बढ़ावा देने वाला एक वैधानिक निकाय है-ने तीन प्रकार की आय पर 40% कर कटौती का दावा किया था।
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आकलन अधिकारी ने यह कहते हुए सभी तीन दावों को खारिज कर दिया कि वरीयता शेयरों पर डिविडेंड, अस्थायी बैंक जमा से ब्याज और SDF सेवा शुल्क, दीर्घकालिक ऋण देने की गतिविधि से उत्पन्न आय नहीं हैं।
आयकर आयुक्त (अपील) और आयकर अपीलीय अधिकरण ने भी यही राय दोहराई। दिल्ली हाई कोर्ट ने बाद में इस दृष्टिकोण को बरकरार रखा, यह कहते हुए कि NCDC का तर्क कानून भाषा से काफी आगे जा रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस विवाद को अंतिम रूप देता है।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने “derived from” यानी “से प्राप्त” वाक्यांश की व्याख्या करते हुए कहा कि संसद ने 1995 में जानबूझकर इस प्रावधान को सख्त बनाया ताकि वित्तीय संस्थाएं अपनी गैर-लॉन्ग-टर्म फाइनेंस आय पर भी कटौती न ले सकें।
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“पीठ ने देखा, ‘विधायिका ने सबसे संकुचित शब्द derived from चुना और द्वितीयक या आकस्मिक आय को स्पष्ट रूप से बाहर कर दिया,’” इस बात पर जोर देते हुए कि केवल वही लाभ योग्य हैं जो प्रत्यक्ष रूप से दीर्घकालिक ऋण गतिविधि से उत्पन्न हों।
डिविडेंड आय पर
NCDC ने तर्क दिया कि रिडीमेबल प्रेफरेंस शेयर वास्तव में दीर्घकालिक ऋण की तरह काम करते हैं। लेकिन अदालत ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया। पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि शेयरधारक, लेनदार नहीं होता।
अदालत ने कहा, “डिविडेंड शेयरहोल्डिंग अनुबंध से उत्पन्न होता है, न कि ऋण देने की गतिविधि से।” इस प्रकार, डिविडेंड आय धारा 36(1)(viii) की प्रथम-स्तरीय संबंध कसौटी पर खरा नहीं उतरी।
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अल्पकालिक जमा पर ब्याज
निगम ने यह तर्क दिया कि उसकी गतिविधियाँ “एकीकृत और अविभाज्य” हैं और अस्थायी रूप से धन को बैंक में रखना अनिवार्य संचालन का हिस्सा है। लेकिन अदालत ने स्पष्ट किया कि पिछली मिसालों में इस ब्याज को “व्यवसाय आय” मानने का अर्थ यह नहीं कि वह इस विशेष छूट के लिए भी पात्र हो जाती है।
पीठ ने टिप्पणी की कि यदि ऐसे ब्याज को पात्र मान लिया जाए तो “यह दीर्घकालिक ऋण को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य को ही कमजोर कर देगा और संस्थाओं को सक्रिय ऋण देने के बजाय निष्क्रिय निवेश के लिए प्रेरित करेगा।”
SDF सेवा शुल्क पर
NCDC का यह दावा भी टिक नहीं पाया कि SDF ऋणों के लिए सरकार की ओर से मिलने वाला सेवा शुल्क उसकी मूल वित्तीय गतिविधि का हिस्सा है। अदालत ने कहा कि यह राशि सरकार के साथ हुए ‘एजेंसी समझौते’ से प्राप्त होती है-न कि निगम की अपनी फाइनेंसिंग गतिविधि से।
पीठ ने कहा, “इस आय का निकटतम स्रोत सरकार का एजेंसी अरेंजमेंट है, न कि assessee का ऋण व्यवसाय।” चूँकि NCDC ने न कोई पूंजी जोखिम उठाया, न ही अपना धन लगाया, इसलिए यह आय कटौती योग्य नहीं।
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निर्णय
अपना विश्लेषण समाप्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने NCDC की सभी दस अपीलों को खारिज कर दिया। अदालत ने माना कि विवादित किसी भी आय-डिविडेंड, अल्पकालिक जमा ब्याज, या SDF सेवा शुल्क-में वह सीधा संबंध नहीं है जिसकी मांग धारा 36(1)(viii) करती है।
इस तरह कोर्ट ने यह दोहराया कि विधायिका का उद्देश्य इस कटौती को सीमित और कड़े दायरे में रखना था, और इसे व्यापक व्याख्या से फैलाया नहीं जा सकता।
Case Title: National Cooperative Development Corporation vs. Assistant Commissioner of Income Tax
Case Numbers: Civil Appeal Nos. 4612, 4618, 4616, 4613, 4615, 4614, 4617, 4619, 4620, 4621 of 2014
Case Type: Civil Appeals (Income Tax – Deduction under Section 36(1)(viii))
Decision Date: December 10, 2025










