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पटना हाई कोर्ट ने पुलिस उप-निरीक्षक पर लगाई गई सज़ा रद्द की, कहा 'पूर्वनिर्धारित दोष' के आधार पर हुई कार्रवाई असंवैधानिक

Vivek G.

भोला कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य और अन्य, पटना हाई कोर्ट ने बिहार पुलिस अधिकारी पर लगी सजा रद्द की; शराबबंदी मामलों में ‘पूर्वनिर्धारित दोष’ को असंवैधानिक बताया।

पटना हाई कोर्ट ने पुलिस उप-निरीक्षक पर लगाई गई सज़ा रद्द की, कहा 'पूर्वनिर्धारित दोष' के आधार पर हुई कार्रवाई असंवैधानिक

बुधवार सुबह भरे हुए अदालत कक्ष में पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया, जो बिहार में शराबबंदी से जुड़े पुलिस अनुशासनात्मक मामलों की प्रकृति को बदल सकता है। न्यायमूर्ति संदीप कुमार ने कई सप्ताह तक फैसला सुरक्षित रखने के बाद उप-निरीक्षक भोला कुमार सिंह पर लगी सजा को रद्द कर दिया। उन पर 2020 में सुरसंड थाना क्षेत्र के पास भारी मात्रा में शराब बरामद होने के बाद लापरवाही का आरोप लगाया गया था। जज ने शांत लेकिन सख्त स्वर में बताया कि किस तरह पूरे मामले में शुरू से ही “पूर्व निर्धारित दोष” का भाव झलकता है।

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पृष्ठभूमि

मामला 4767.22 लीटर अवैध शराब की बरामदगी से शुरू होता है, जो Sitamarhi जिले के सुरसंड थाना से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर मिली थी। उस समय सिंह थानाध्यक्ष थे और घटना के तुरंत बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया। विभागीय कार्यवाही शुरू हुई और दो दंड आदेश पारित हुए-पहले दो वर्ष तक वेतन वृद्धि रोकने का दंड, और बाद में डीजीपी द्वारा सुओ-मोटू पुनरीक्षण में इससे भी कठोर सज़ा देकर पाँच वर्ष के लिए मूल वेतन पर भेजना और दस वर्ष तक एस.एच.ओ. न बनाए जाने का आदेश।

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सिंह ने दोनों आदेशों को चुनौती दी और तर्क दिया कि कार्रवाई बिना किसी वास्तविक प्रमाण के, केवल यांत्रिक ढंग से की गई। उनके वकील ने यह भी बताया कि एफआईआर खुद सिंह ने दर्ज की थी और शराबबंदी कानून लागू करने के दौरान उन्होंने पहले भी कई सफल छापेमारी की थीं।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति कुमार का निर्णय विभागीय रिकॉर्ड की सीधी और स्पष्ट समीक्षा जैसा था। विभागीय कार्यवाही में केवल दो “औपचारिक गवाह” पेश किए गए, जो सिर्फ अधिकारियों के हस्ताक्षर पहचान सके-पर यह नहीं बता सके कि सिंह की किसी लापरवाही या मिलीभगत का सबूत क्या है।

“पीठ ने टिप्पणी की, ‘यह समझना कठिन है कि इन दस्तावेज़ों से अधिकारी का दोष कैसे सिद्ध होता है, वह भी मिलीभगत या लापरवाही के स्तर पर।’”

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अदालत ने दो पूर्व फैसलों-अजय कुमार और मुकेश कुमार पासवान-पर विशेष भरोसा जताया, जिनमें 2020 के उस विवादित पुलिस/एक्साइज निर्देश की आलोचना की गई थी, जिसमें कहा गया था कि किसी भी थाना क्षेत्र में शराब मिलने पर एस.एच.ओ. स्वतः दोषी माने जाएंगे। न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि यह “पूर्वनिर्धारित दोष” की अवधारणा विभागीय अधिकारियों को शुरुआत से ही पक्षपाती बना देती है।

उन्होंने यह भी कहा कि डीजीपी की ओर से जारी शो-कॉज और बढ़ी हुई सजा के आदेश इसी निर्देश से प्रभावित दिखते हैं, जबकि ऐसा अनुमान “कानून में कहीं नहीं है और यह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।” सरल भाषा में, अदालत ने कहा कि क्षेत्र में शराब मिलने का अर्थ स्वतः दोष नहीं होता; वास्तविक साक्ष्य के आधार पर लापरवाही या मिलीभगत सिद्ध करनी होती है।

जज ने यह भी स्पष्ट किया कि पोस्ट-डिसिजनल हियरिंग (निर्णय के बाद सुनवाई) तब बेकार है जब अधिकारी पहले से ही सजा तय कर चुके हों-“ऐसी सुनवाई केवल औपचारिकता रह जाती है।”

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निर्णय

अंत में न्यायाधीश कुमार ने कहा कि पूरी विभागीय कार्यवाही “मूल रूप से त्रुटिपूर्ण” थी। उन्होंने दोनों दंड आदेशों-2021 का वेतन वृद्धि रोकने का आदेश और 2022 का बढ़ी हुई सजा वाला आदेश-को रद्द कर दिया। याचिका पूरी तरह स्वीकार कर ली गई और आदेश में यह बस दर्ज किया कि दोनों दंड आदेश “निरस्त” किए जाते हैं।

Case Title: Bhola Kumar Singh vs. The State of Bihar & Others

Case No.: CWJC No. 7478 of 2023

Case Type: Civil Writ Jurisdiction (Service/Disciplinary Matter)

Decision Date: 10 December 2025

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