कोर्ट में सुनवाई के दौरान बैठा कोई भी व्यक्ति इस विवाद के पीछे छिपे लंबे तनाव को महसूस कर सकता था, जो एक दशक से अधिक समय से चला आ रहा है। सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने व्यवसायी राजन सरीन द्वारा अपने पूर्व कर्मचारियों के खिलाफ दायर आपराधिक शिकायत में निचली अदालतों के आदेशों में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने साफ कहा कि एक सीमित आपराधिक धमकी के आरोप को छोड़कर, इस मामले को दोबारा खोलने का कोई आधार नहीं है। याचिका खारिज कर दी गई और इस प्रकरण का एक शांत लेकिन स्पष्ट अंत हो गया।
पृष्ठभूमि
यह मामला सरीन की उस शिकायत से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी कंपनियों - क्रेस्कोर वेल्थ मैनेजमेंट और उनोर एग्ज़िम - में पहले काम कर चुकी कुछ महिलाओं ने नौकरी छोड़ने के बाद उनके खिलाफ साजिश रची। उन्होंने उन पर गोपनीय कंपनी डेटा ले जाने, झूठी पुलिस शिकायतें दर्ज कराने और उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगाए।
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शुरुआत में मजिस्ट्रेट ने अधिकांश आरोपों को खारिज कर दिया था और माना था कि आपराधिक विश्वासघात, मानहानि या झूठे मामलों जैसे अपराधों में महिलाओं को तलब करने का पर्याप्त आधार नहीं है। इसके बाद सेशंस कोर्ट ने भी इसी निष्कर्ष से सहमति जताई, हालांकि उसने एक पूर्व कर्मचारी, संगीता नागपाल, को कथित आपराधिक धमकी के मामले में तलब किया था। इसके खिलाफ सरीन हाईकोर्ट पहुंचे और दलील दी कि निचली अदालतों ने सबूतों को नजरअंदाज कर दिया और यांत्रिक तरीके से फैसला दिया।
कोर्ट की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति कृष्णा ने कानूनी स्थिति को शांत तरीके से, बिंदु-दर-बिंदु स्पष्ट किया। झूठे मामलों और पुलिस को गुमराह करने के आरोपों पर पीठ ने कहा कि ऐसे अपराधों में कानून के तहत किसी सार्वजनिक प्राधिकारी की लिखित शिकायत आवश्यक होती है। “जब तक यह वैधानिक शर्त पूरी नहीं होती, तब तक अदालत संज्ञान नहीं ले सकती,” पीठ ने कहा, यानी मामला कानूनन आगे बढ़ ही नहीं सकता।
डेटा चोरी के आरोपों पर अदालत ने सबूतों को कमजोर पाया। केवल नौकरी के दौरान कंपनी के दस्तावेजों तक पहुंच होना अपने आप में आपराधिक विश्वासघात नहीं बन जाता। पीठ ने कहा कि आपराधिक कानून में ‘सौंपे जाने’ का मतलब साफ तौर पर बेईमानी की नीयत से जुड़ा होना चाहिए, न कि केवल कार्यस्थल पर मिली जिम्मेदारी से।
मानहानि के आरोप भी इसी तरह टिक नहीं पाए। अदालत ने समझाया कि पुलिस या किसी प्राधिकरण के पास शिकायत दर्ज कराना, भले ही बाद में वह विवादित निकले, अपने आप में मानहानि नहीं माना जा सकता। “केवल शिकायत दर्ज होने से प्रतिष्ठा को नुकसान मान लेना उचित नहीं है,” अदालत ने टिप्पणी की।
हालांकि, कथित धमकी के मुद्दे पर अदालत ने स्पष्ट रेखा खींची। सरीन और दो गवाहों की गवाही से यह संकेत मिला कि संगीता नागपाल ने उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई आगे बढ़ाने पर कथित तौर पर झूठी शिकायतों की धमकी दी थी। इस सीमित बिंदु पर सेशंस कोर्ट द्वारा उन्हें तलब करने के फैसले को अदालत ने सही ठहराया।
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निर्णय
सुनवाई के अंत में हाईकोर्ट ने निचली अदालतों के आदेशों को पूरी तरह बरकरार रखा। अन्य किसी भी प्रतिवादी को किसी अपराध के लिए तलब करने से इनकार कर दिया गया और यह स्पष्ट किया गया कि केवल संगीता नागपाल के खिलाफ ही आईपीसी की धारा 506 के तहत आपराधिक धमकी का मुकदमा चलेगा। अदालत ने कहा, “आक्षेपित आदेशों में कोई खामी नहीं है,” और याचिका खारिज करते हुए सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया। मामला, फिलहाल के लिए, यहीं समाप्त हो गया।
Case Title: Rajan Sareen v. State (NCT of Delhi) & Others
Case No.: CRL.M.C. 2514/2017 (with CRL.M.A. 26337/2025)
Case Type: Criminal Miscellaneous Petition under Section 482 CrPC
Decision Date: 15 December 2025









