शुक्रवार को हुई एक संक्षिप्त लेकिन गंभीर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि सरकारी अनुबंधों में स्पष्ट रूप से रोके गए दावों को नज़रअंदाज़ करने के लिए उसके पुराने भारत ड्रिलिंग आदेश का इतनी आसानी से सहारा क्यों लिया जा रहा है। पीठ ने असामान्य रूप से साफ शब्दों में कहा कि यह भ्रम अब और नहीं चल सकता और इसे एक बड़ी पीठ द्वारा सुलझाया ही जाना चाहिए। मामला झारखंड राज्य और जमशेदपुर स्थित एक ठेकेदार के बीच उन दावों को लेकर उठा था, जिन्हें अनुबंध ने खुद ही सख्ती से प्रतिबंधित किया था।
पृष्ठभूमि
यह विवाद सुप्रीम कोर्ट तब पहुँचा जब झारखंड हाईकोर्ट ने उन दावों-बेकार श्रम, कम उपयोग हुई मशीनरी और लाभ हानि-को फिर से बहाल कर दिया, जिन्हें निचली अदालत ने रद्द कर दिया था। इन दावों को दो स्पष्ट अनुबंधीय प्रावधानों ने रोका था: बेकार श्रम या मशीनरी के लिए कोई भुगतान नहीं, और व्यवसायिक हानि के लिए कोई मुआवजा नहीं। इसके बावजूद, हाईकोर्ट ने केवल भारत ड्रिलिंग पर भरोसा करके, बिना अनुबंध भाषा या पंच निर्णय का विश्लेषण किए, ठेकेदार की अपील स्वीकार कर ली।
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राज्य का तर्क था कि इससे एक खतरनाक प्रवृत्ति शुरू हो गई है: ठेकेदार भारत ड्रिलिंग को एक शॉर्टकट की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि वे उन सीमाओं को पार कर सकें जो सरकारी विभाग वित्तीय जोखिम कम करने के लिए अनुबंधों में डालते हैं।
कोर्ट के अवलोकन
पीठ-न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और अतुल चंदुरकर-यह देखकर स्पष्ट रूप से चिंतित दिखे कि पहले का आदेश किस तरह गलत दिशा में फैल गया। राज्य के वकील राजीव शंकर द्विवेदी ने दलील दी कि “भारत ड्रिलिंग के निर्णय का बार-बार और गलत तरीके से उपयोग किया जा रहा है,” और कोर्ट से आग्रह किया कि तथ्यात्मक विवाद को चाहे न छेड़े, पर कानून की स्थिति अवश्य स्पष्ट करे।
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न्यायाधीश इस तर्क से सहमत दिखे। पंचाट में पक्ष-स्वतंत्रता की चर्चा करते हुए पीठ ने कहा कि अनुबंध में लगाए गए प्रतिबंध कोई औपचारिक वाक्य नहीं होते, बल्कि दोनों पक्षों की सहमति से तय की गई सीमाएँ होती हैं। “अनुबंध ही कानूनी संबंध की नींव है,” पीठ ने टिप्पणी की, यह जोड़ते हुए कि किसी भी पंचाट न्यायाधिकरण को अपनी समीक्षा की शुरुआत-और कई बार समाप्ति-यहीं से करनी चाहिए।
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत ड्रिलिंग ने जिस फैसले पर निर्भर किया था, वह दरअसल ब्याज भुगतान से जुड़े मुद्दे पर आधारित था, जिसका कानूनी ढांचा बिल्कुल अलग है। “पीठ ने कहा, ‘भारत ड्रिलिंग का दृष्टिकोण बाद के प्रामाणिक निर्णयों के अनुरूप नहीं है।’”
हाईकोर्ट के आदेश पर भी सुप्रीम कोर्ट सहज नहीं दिखा। जजों ने कहा कि उसने सिर्फ भारत ड्रिलिंग को उद्धृत कर दिया और आगे बढ़ गया-न यह देखा कि अनुबंध ने दावों को क्यों रोका था, न यह कि पंचाट न्यायाधिकरण ने उन प्रावधानों को दरकिनार करने का क्या औचित्य बताया।
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निर्णय
अनुबंध में प्रतिबंधित दावों की कानूनी स्थिति को लेकर फैली अस्पष्टता को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ को भेज दिया, ताकि इसका आधिकारिक और एकरूप समाधान हो सके। कोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए ताकि उपयुक्त पीठ गठित की जा सके। तथ्यात्मक विवाद को छेड़े बिना, अदालत ने यह साफ कर दिया कि कानून को अब स्पष्ट दिशा चाहिए, वह केवल एक पुराने संक्षिप्त आदेश की अलग-अलग व्याख्याओं पर नहीं टिक सकता।
Case Title: The State of Jharkhand vs. The Indian Builders Jamshedpur
Case No.: Civil Appeal Nos. 8261–8262 of 2012
Case Type: Civil Appeal (Arbitration – Challenge to Arbitral Award)
Decision Date: 05 December 2025









