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दिल्ली हाई कोर्ट ने गैर-मौजूद विशेष विवाह अधिनियम प्रावधान का उपयोग करने पर फैमिली कोर्ट को फटकारा, सुमन शंकर–देबारती तलाक मामले में दोबारा ट्रायल का आदेश

Vivek G.

सुमन शंकर भुनिया बनाम देबराती भुनिया चक्रवर्ती, दिल्ली हाई कोर्ट ने गैर-मौजूद विशेष विवाह अधिनियम प्रावधान का उपयोग कर दिए गए तलाक आदेश को रद्द किया; दोबारा ट्रायल और जज को प्रशिक्षण का आदेश।

दिल्ली हाई कोर्ट ने गैर-मौजूद विशेष विवाह अधिनियम प्रावधान का उपयोग करने पर फैमिली कोर्ट को फटकारा, सुमन शंकर–देबारती तलाक मामले में दोबारा ट्रायल का आदेश

इस हफ्ते दिल्ली हाई कोर्ट में हुई एक उल्लेखनीय सुनवाई के दौरान, डिवीजन बेंच ने एक फैमिली कोर्ट जज को “कानून की गंभीर गलत समझ” के लिए कड़ी फटकार लगाई। वजह यह थी कि जज ने शादी को खत्म करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम (SMA) की एक गैर-मौजूद धारा का उपयोग किया। हाई कोर्ट, जो सुनवाई के दौरान साफ तौर पर हैरान दिखा, ने तलाक के फैसले को रद्द कर दिया और मामले को पूरी तरह नए सिरे से ट्रायल के लिए वापस भेज दिया।

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पृष्ठभूमि

सुमन शंकर भूनिया और देबारती भूनिया चक्रवर्ती के बीच विवाद पिछले छह वर्षों से कई राज्यों में घूमता रहा है। 2011 में हुई उनकी शादी खुद एक विवाद बन गई, क्योंकि दोनों पक्षों ने यह बताया कि शादी किस कानून के तहत हुई-हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) या विशेष विवाह अधिनियम (SMA)।

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2018 के बाद हालात और बिगड़े-क्रूरता के आरोप, पुलिस हस्तक्षेप, बच्चे की कस्टडी पर झगड़ा, कई FIRs, और ट्रांसफर याचिकाएँ पश्चिम बंगाल, दिल्ली और सुप्रीम कोर्ट तक चली गईं। अंततः तलाक का केस सिलिगुड़ी से ट्रांसफर होकर पटियाला हाउस की फैमिली कोर्ट में पहुंचा।

लेकिन असली समस्या तब शुरू हुई जब फैमिली कोर्ट जज ने पत्नी की गवाही का अधिकार पहली ही तारीख पर बंद कर दिया और फिर बिना किसी साक्ष्य के ही केस पर फैसला सुना दिया।

अदालत के अवलोकन

हाई कोर्ट की सुनवाई के दौरान, जस्टिस अनिल क्षेतरपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि जब उन्हें यह पता चला कि फैमिली कोर्ट जज ने विशेष विवाह अधिनियम की धारा 28A पर भरोसा किया-एक ऐसी धारा जो कानून में है ही नहीं-तो वे “हैरान” रह गए।

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बेंच ने टिप्पणी की, “यह समझ से परे है कि इतने वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी ने ऐसी धारा पर भरोसा किया जो विधि-पुस्तक में मौजूद ही नहीं है।”

दरअसल, फैमिली कोर्ट जज ने इस काल्पनिक धारा का उपयोग करके “वैवाहिक संबंध के अपूरणीय टूटने” को तलाक का आधार बना दिया, जबकि HMA और SMA, दोनों में यह आधार उपलब्ध नहीं है-सिवाय इसके कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत इसका उपयोग करे।

हाई कोर्ट ने यह भी नोट किया कि यही जज अन्य मामलों में भी कानूनों को मिलाकर, कभी-कभी खुद से ही तलाक देते रहे, और वैधानिक आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ करते रहे। बेंच ने साफ कहा, “उनका तरीका न्याय प्रणाली की सत्यनिष्ठा के लिए खतरा है।”

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एक और चौंकाने वाली बात यह थी कि जज ने यह टिप्पणी की कि SMA के तहत हुई शादी “पवित्र संघ नहीं” होती। हाई कोर्ट ने इस विचार को “भ्रमित” और “अनुचित” बताया और कहा कि SMA के अंतर्गत हुई शादी भी उतनी ही गरिमामयी और गंभीर है जितनी किसी भी अन्य व्यक्तिगत कानून के तहत हुई शादी।

बेंच फैमिली कोर्ट जज की तेजी से भी बेहद असंतुष्ट दिखा। पत्नी की गवाही उसी दिन बंद कर दी गई, पति ने भी फिर साक्ष्य नहीं दिया, और पूरा मामला सिर्फ़ दलीलों और कल्पनाओं के आधार पर निपटा दिया गया।

निर्णय

अपने अंतिम आदेश में, हाई कोर्ट ने तलाक का पूरा फैसला रद्द कर दिया, कहा कि ट्रायल मूल रूप से ही त्रुटिपूर्ण था, और निर्देश दिया कि केस को पूरी तरह नए सिरे से, कानून के अनुसार, और दोनों पक्षों को पूरा मौखिक व दस्तावेजी साक्ष्य पेश करने का अवसर देकर सुना जाए।

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एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए, बेंच ने यह भी आदेश दिया कि संबंधित फैमिली कोर्ट जज को दिल्ली न्यायिक अकादमी में वैवाहिक कानूनों की पुनः प्रशिक्षण (refresher training) लेनी होगी, और तब तक वे ऐसे मामले नहीं सुनेंगे।

दोनों पक्षों को 5 दिसंबर 2025 को पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।

Case Title: Suman Sankar Bhunia v. Debarati Bhunia Chakraborty

Case Number: MAT.APP.(F.C.) 115/2024

Case Type: Family Court Appeal (Divorce – Challenge to Family Court Judgment)

Decision Date: 27 November 2025

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