गुरुवार को श्रीनगर की एक शांत अदालत में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कुलगाम से जुड़े एक लंबे भूमि विवाद में स्पष्ट रेखा खींच दी। न्यायमूर्ति संजय धर ने साफ कहा कि जब कोई अपील स्वेच्छा से वापस ले ली जाती है, तो बाद में कथित समझौते की खामियों का हवाला देकर उसे फिर से नहीं खोला जा सकता।
यह फैसला लगभग 22 कनाल जमीन से जुड़े 27 साल पुराने विवाद से निकली दो जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया, जो गांव माह, कुलगाम की भूमि से संबंधित हैं।
पृष्ठभूमि
इस मामले की जड़ें एक सिविल वाद से जुड़ी हैं, जो मस्त. सारा बेगम ने दायर किया था। उन्होंने 1998 के उस डिक्री को चुनौती दी थी, जो कृषि भूमि से संबंधित थी। 2018 में सब-जज द्वारा उनका मुकदमा खारिज कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने प्रधान जिला न्यायाधीश, कुलगाम के समक्ष अपील दायर की।
जनवरी 2019 में अपील की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने अदालत को बताया कि उनके बीच समझौता हो गया है। एक लिखित समझौता पत्र रिकॉर्ड पर रखा गया और सारा बेगम के अनुरोध पर अपील को “वापस ली गई” मानते हुए खारिज कर दिया गया। न तो समझौते के आधार पर कोई डिक्री पारित हुई और न ही पक्षकारों के बयान दर्ज किए गए। फाइल वहीं बंद हो गई।
इसके कई साल बाद, फरवरी 2025 में, विरोधी पक्ष ने उसी अपीलीय अदालत में अर्जी दाखिल कर 2019 के आदेश को वापस लेने की मांग की। उन्होंने धोखाधड़ी, सभी पक्षों के हस्ताक्षर न होने और यहां तक कि एक पक्षकार के उस समय नाबालिग होने जैसे आरोप लगाए। अपीलीय अदालत ने इन दलीलों को स्वीकार करते हुए पुराने आदेश को वापस ले लिया और अपील को बहाल कर दिया। इसी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति संजय धर ने जनवरी 2019 में क्या वास्तव में हुआ था, इस पर बारीकी से नजर डाली। आदेश के अनुवादित हिस्से को पढ़ते हुए अदालत ने कहा कि अपीलीय न्यायाधीश ने केवल अपील वापस लेने की अनुमति दी थी। न तो पक्षकारों के बयान दर्ज किए गए थे और न ही समझौते की शर्तों पर अदालत की कोई संतुष्टि दर्ज हुई थी। सबसे अहम बात, कोई डिक्री पारित ही नहीं हुई।
पीठ ने टिप्पणी की, “23.01.2019 को पारित आदेश को किसी भी तरह से समझौते पर आधारित डिक्री नहीं कहा जा सकता।” अदालत ने सरल शब्दों में समझाया कि कानून के तहत वैध समझौते के लिए अदालत की संतुष्टि और औपचारिक डिक्री अनिवार्य होती है।
न्यायाधीश ने एक बुनियादी सिद्धांत रेखांकित किया-अपीलकर्ता को अपनी अपील वापस लेने का पूरा अधिकार है। एक बार ऐसा हो जाने के बाद, केवल इसलिए कि दूसरे पक्ष को नुकसान महसूस हो रहा है, अदालत अपीलकर्ता को दोबारा मुकदमा लड़ने के लिए मजबूर नहीं कर सकती।
सारा बेगम द्वारा बाद में समझौता पत्र के आधार पर भूमि म्यूटेशन कराने के आरोपों पर अदालत ने कहा कि ऐसे विवादों का समाधान संबंधित राजस्व या अन्य सक्षम प्राधिकरणों के समक्ष किया जाना चाहिए। “यह अपील की वापसी को फिर से खोलने का आधार नहीं बन सकता,” पीठ ने कहा।
फैसला
हाईकोर्ट ने सारा बेगम की याचिका स्वीकार करते हुए 11 मार्च 2025 के कुलगाम अपीलीय अदालत के आदेश को अधिकार क्षेत्र से बाहर बताते हुए रद्द कर दिया। साथ ही, अपील की बहाली और जमीन की वापसी से जुड़ी दूसरी याचिका को खारिज कर दिया गया। नतीजतन, जनवरी 2019 में जिस स्थिति में अपील वापस ली गई थी, वही स्थिति बरकरार रहेगी, और निचली अदालतों को रिकॉर्ड वापस भेजने के निर्देश दिए गए।
Case Title: Mehraj Ahmad Ganai & Anr. vs. Mst. Sara Begum & Ors.
Case No.: CM(M) No.136/2025 c/w CM(M) No.185/2025
Case Type: Civil Miscellaneous Petition (Article 227 – Supervisory Jurisdiction)
Decision Date: 11 December 2025










