बेंगलुरु में गुरुवार सुबह माहौल थोड़ा तीखा हो गया जब कर्नाटक हाई कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता जयेना कोठारी और ज़ूमकार के पूर्व कर्मचारी मनीष कुमार के बीच 2019 से चले आ रहे विवाद में अपना आदेश सुनाया। मामला यह जांचता है कि क्या कोठारी की आंतरिक शिकायत समिति (ICC) की बाहरी सदस्य की भूमिका को पेशेवर दुराचार माना जा सकता है-किसी भी वकील के लिए अत्यंत गंभीर आरोप। जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने हफ्तों तक आदेश सुरक्षित रखने के बाद आखिरकार इस विवाद पर विराम लगा दिया।
Background (पृष्ठभूमि)
विवाद तब शुरू हुआ जब मई 2019 में ज़ूमकार इंडिया को एक महिला कर्मचारी ने मनीष कुमार के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दी। कोठारी को POSH कानून के तहत ICC की बाहरी सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया था। जांच के बाद ICC ने सर्वसम्मति से कुमार को दोषी ठहराया और उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की। कंपनी ने उसी दिन उन्हें हटा दिया।
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कुमार ने इस निष्कर्ष को अतिरिक्त श्रम आयुक्त के सामने चुनौती दी, जिन्होंने न सिर्फ निर्णय को पलट दिया बल्कि कोठारी के खिलाफ तीखी टिप्पणियाँ भी कर दीं। हाई कोर्ट ने 2023 में उन टिप्पणियों को हटा दिया। इसके बावजूद, कुमार यहीं नहीं रुके-उन्होंने कर्नाटक बार काउंसिल में पेशेवर दुराचार की शिकायत दर्ज करवाई, आरोप लगाते हुए कि कोठारी ने कंपनी के सलाहकार की तरह व्यवहार किया, अपने लॉ फर्म को शामिल किया, और प्रक्रिया को कंपनी के हित में मोड़ा। शिकायत वर्षों तक लंबित रही और 2022 में बार काउंसिल ने नोटिस जारी भी कर दिया।
अंततः कोठारी ने हाई कोर्ट का रुख किया और पूरे मामले को बेबुनियाद बताते हुए बार काउंसिल की कार्यवाही रोकने की मांग की।
Court’s Observations (अदालत की टिप्पणियाँ)
जस्टिस नागप्रसन्ना ने समयरेखा-ईमेल, ICC की कार्यवाही, बर्खास्तगी आदेश, श्रम आयुक्त की टिप्पणियाँ और बार काउंसिल की शिकायत-सबका गहराई से विश्लेषण किया। सुनवाई के दौरान यह बात लगातार उभरकर आई कि याचिकाकर्ता ने वकील के रूप में नहीं, बल्कि POSH कानून द्वारा निर्धारित बाहरी विशेषज्ञ के रूप में कार्य किया।
एक मौके पर न्यायाधीश ने कहा, “किसी वैधानिक समिति द्वारा दिए गए निष्कर्ष अचानक ‘पेशेवर दुराचार’ नहीं बन जाते सिर्फ इसलिए क्योंकि किसी पक्ष को परिणाम पसंद नहीं आया।”
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अदालत ने दो मुख्य बिंदुओं पर जोर दिया:
- कोठारी का कंपनी से कोई पूर्व पेशेवर संबंध नहीं था, और उन्होंने बताया कि उन्होंने कोई फीस नहीं ली।
- शिकायतों-खासतौर से भाई या लॉ फर्म के हितों के टकराव वाले आरोप-का कभी भी ICC प्रक्रिया या किसी अन्य जगह सबूत नहीं मिला।
न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि ICC जांच को अदालत की वकालत से तुलना नहीं की जा सकती। POSH कानून विशेष रूप से बाहरी सदस्यों को इसलिए अनिवार्य करता है ताकि कार्यस्थलों को निष्पक्ष निगरानी मिले। किसी बाहरी सदस्य को सिर्फ इसलिए दोषी ठहराना कि निर्णय प्रतिकूल है, अदालत के अनुसार, योग्य व्यक्तियों को वैधानिक समितियों में शामिल होने से हतोत्साहित करेगा।
जस्टिस नागप्रसन्ना बार काउंसिल की देरी और अस्पष्टता से भी असंतुष्ट दिखे, यह कहते हुए कि शिकायत लगभग तीन साल तक निष्क्रिय पड़ी रही और अचानक फिर सक्रिय कर दी गई।
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Decision (निर्णय)
एक स्पष्ट और ठोस आदेश में हाई कोर्ट ने कर्नाटक बार काउंसिल को आगे की कार्यवाही से रोक दिया और कोठारी को जारी किया गया नोटिस रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि ICC में उनकी भूमिका व्यक्तिगत और वैधानिक थी, न कि किसी भी पक्ष की वकील के रूप में, और इस प्रकार एडवोकेट्स एक्ट की धारा 35 लागू नहीं होती। इसी के साथ अदालत ने मामले को पूरी तरह उनके पक्ष में समाप्त कर दिया।
Case Title: Ms. Jayna Kothari vs. Manish Kumar & Karnataka State Bar Council
Case No.: Writ Petition No. 19619 of 2022
Case Type: Writ Petition (General Miscellaneous – Regulation of Bar Council / Professional Misconduct)
Decision Date: 07 November 2025










