इंदौर खंडपीठ की अदालत में मंगलवार को जब कार्यवाही शुरू हुई, तो माहौल कुछ गंभीर था। न्यायमूर्ति संजीव एस. कलगांवकर ने सुनवाई के दौरान साफ कहा कि ज़ब्त आभूषण पुलिस की मलकाने में अनिश्चित समय तक नहीं रखे जा सकते। हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी सोनू को घर से ज़ब्त हुए सोने-चांदी के गहने वापस देने से इंकार कर दिया गया था। अदालत ने माना कि पुलिस यह दिखाने में नाकाम रही कि ये सामान किसी और का है।
पृष्ठभूमि
यह मामला पंजाब में दर्ज एक एफआईआर से जुड़ी कार्रवाई के दौरान उठा, जिसमें गंभीर अपराधों की जांच के लिए राजगढ़ ज़िले के बोडा थाना पुलिस ने सोनू के घर पर छापा मारा था। छापे के दौरान सोने-चांदी के कई गहने मिले, लेकिन मौके पर कोई खरीद दस्तावेज़ नहीं मिला। इसी आधार पर पुलिस ने इन्हें चोरी का संदेह मानते हुए BNSS की धारा 35 के तहत ज़ब्त कर लिया।
इसके बाद स्थानीय अपराध भी दर्ज हुए और परिवार के कई सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपी पक्ष ने दावा किया कि गहने उनके ही हैं। कुछ बिल बाद में ज्वेलरों द्वारा सत्यापित भी किए गए, हालांकि जांच अधिकारी इस आधार पर ही संदेह करते रहे कि ज्वेलर के पास बिल-बुक की कार्बन कॉपी नहीं थी।
ट्रायल कोर्ट ने सोनू की सुपुर्दगी अर्जी खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ BNSS की धारा 528 के तहत यह याचिका दायर हुई।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने राज्य से पहला सीधा सवाल यही पूछा-अगर गहने वाकई चोरी के हैं तो शिकायतकर्ता कहां है?
जब जांच अधिकारी कोई भी शिकायतकर्ता पहचान नहीं पाए, तो अदालत ने कड़ा रुख दिखाया। पीठ ने कहा, “जब कोई असली मालिक ही सामने नहीं आया, तो राज्य इन सामानों को कब तक बंद करके रखेगा?”
न्यायालय ने यह भी कहा कि पुलिस की सत्यापन रिपोर्ट से भी मालिकाना हक़ खारिज नहीं होता। न्यायमूर्ति ने टिप्पणी की कि केवल संदेह के आधार पर किसी की संपत्ति को अनिश्चित समय तक रोके रखना कानून के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने “एक महत्वपूर्ण पहलू की अनदेखी” की-कि किसी ने भी इन गहनों को चोरी का बताकर दावा नहीं किया।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के सुंदरभाई अम्बालाल देसाई फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि कीमती वस्तुएँ पुलिस मलकाने में वर्षों तक नहीं रखी जानी चाहिए। पीठ ने टिप्पणी की, “जब न शिकायतकर्ता है, न पहचान को लेकर कोई विवाद, तो गहनों को धूल खाने देने का कोई मतलब नहीं।”
निर्णय
अदालत ने माना कि ट्रायल जज ने “गंभीर त्रुटि” की है। हाईकोर्ट ने आदेश को रद्द करते हुए निर्देश दिया कि सभी ज़ब्त सोने-चांदी के गहने उचित सुपुर्दगी-बॉन्ड और श्योरिटी बॉन्ड लेने के बाद सोनू को अंतरिम सुपुर्दगी में दे दिए जाएँ, ताकि ट्रायल के समय आवश्यकता पड़ने पर उन्हें पेश किया जा सके।
याचिका इन निर्देशों के साथ निस्तारित कर दी गई।
Case Title: Sonu vs State of Madhya Pradesh
Case Number: MCRC No. 48689 of 2025
Court: High Court of Madhya Pradesh, Indore Bench
Judge: Hon’ble Justice Sanjeev S. Kalgaonkar
Date of Order: 18 November 2025










