गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट में एक छोटा लेकिन काफ़ी गर्माहट भरा सुनवाई सत्र देखने को मिला, जहां एक महिला इनफॉर्मर ने सरकार द्वारा जीएसटी इनाम न देने के फैसले को चुनौती दी। बेंच, जो हाइब्रिड मोड में बैठी थी, बार-बार यह पूछती रही कि क्या ऐसी याचिका को अदालत में सुनना भी उचित है।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता का दावा था कि उन्होंने शक्ति एंटरप्राइजेज द्वारा कथित जीएसटी चोरी का भंडाफोड़ करने में अहम भूमिका निभाई। उनके द्वारा दी गई जानकारी के चलते जुलाई 2023 में शो कॉज़ नोटिस जारी हुआ और फिर 6 दिसंबर 2023 के ऑर्डर-इन-ओरिजिनल में भारी कर मांग और पेनल्टी लगाई गई।
लेकिन अपील में परिस्थितियां बदल गईं। जुलाई 2024 में कमिश्नर (अपील) ने पार्टनर्स पर लगाई गई पेनल्टी हटा दी और कई कर मदों को कम कर दिया। अंत में केवल एक छोटी-सी डिमांड बची। याचिकाकर्ता के अनुसार, इस संशोधन ने 31 जुलाई 2015 की सीबीईसी (एंटी स्मगलिंग यूनिट) सूचना के तहत मिलने वाले इनाम की उनकी उम्मीद लगभग खत्म कर दी।
अदालत की टिप्पणियां
शुरू में ही जस्टिस प्रभा एम. सिंह ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि एक इनफॉर्मर जिसकी भूमिका न तो शिकायतकर्ता की होती है और न ही सीधे प्रभावित पक्ष की इनाम पाने के लिए कोई कानूनी अधिकार कैसे दावा कर सकता है।
बेंच ने कहा,
“इनाम देना पूरी तरह विवेकाधीन प्रक्रिया है। सिर्फ इनाम की राशि प्रभावित होने के आधार पर एक इनफॉर्मर अपीलीय आदेश को चुनौती नहीं दे सकता।”
कोर्टरूम में हल्की शांति छा गई जब जजों ने स्पष्ट किया कि इनफॉर्मर किसी तरह से खुद को विवाद में शामिल पक्ष की तरह पेश नहीं कर सकता। अदालत ने इशारा दिया कि याचिकाकर्ता शायद अपनी कानूनी स्थिति से आगे बढ़ रही है।
जब वकील ने तर्क दिया कि विभाग ने कई क्लाइंट्स द्वारा टीडीएस जमा करने को नजरअंदाज कर टैक्सेबल वैल्यू गलत निकाल ली, तो जज ज़्यादा प्रभावित नहीं दिखे। वहीं सरकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले Union of India v. C. Krishna Reddy पर भरोसा करते हुए कहा कि
“इनफॉर्मर के कहने पर कभी भी रिट ऑफ़ मैंडेमस जारी नहीं की जा सकती।”
निर्णय
बनाए रखने योग्यता (maintainability) के मुद्दे पर फैसला लेने से पहले, अदालत ने निर्देश दिया कि अगली सुनवाई पर इनफॉर्मर स्वयं उपस्थित रहे। सीलबंद लिफाफे में दी गई नोटरीकृत हलफ़नामा स्वीकार करते हुए रजिस्ट्री के पास सुरक्षित रखने का आदेश दिया गया।
अब यह मामला 18 दिसंबर 2025 को फिर सुना जाएगा, जहां अदालत केवल इसी बात पर सुनवाई करेगी कि क्या ऐसी रिट याचिका अदालत में टिक भी सकती है या नहीं।
Case Title:- XY v. Union of India
Case Number: W.P.(C) 15498/2025
Order Date: 9 October 2025










