हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 2007 के कांगड़ा ज़िले में हुए सड़क हादसे से जुड़े मामले में बस चालक की बरी किए जाने के खिलाफ राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी। अदालत ने साफ कहा कि केवल “तेज़ रफ्तार” का आरोप, ठोस सबूतों के बिना, आपराधिक जिम्मेदारी तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
पृष्ठभूमि
यह मामला 9 जून 2007 के एक सड़क हादसे से जुड़ा है, जब HP-39A-4635 नंबर की निजी बस पैरापेट से टकराकर सड़क से नीचे गिर गई थी। इस दुर्घटना में कई यात्री घायल हुए थे। पुलिस ने बस चालक के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं 279, 337 और 338 के तहत मामला दर्ज किया था और आरोप लगाया गया था कि हादसा चालक की लापरवाही और तेज़ रफ्तार के कारण हुआ।
मार्च 2012 में कांगड़ा की न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने अभियोजन की कहानी में कमियों का हवाला देते हुए आरोपी को बरी कर दिया था। इस फैसले से असंतुष्ट होकर राज्य सरकार हाईकोर्ट पहुंची और दलील दी कि प्रत्यक्षदर्शियों के बयान और हादसे की परिस्थितियां साफ तौर पर लापरवाह ड्राइविंग की ओर इशारा करती हैं।
अदालत की टिप्पणियां
जस्टिस राकेश कैंथला ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि अभियोजन का एक प्रमुख गवाह, जो मूल रूप से शिकायतकर्ता था, ने ट्रायल के दौरान मामले का समर्थन नहीं किया। एक अन्य घायल यात्री ने बस की “तेज़ रफ्तार” की बात जरूर कही, लेकिन अदालत ने इस बयान को बहुत सामान्य और अस्पष्ट माना।
पीठ ने टिप्पणी की, “केवल ‘तेज़ रफ्तार’ शब्द का इस्तेमाल अपने आप में कुछ साबित नहीं करता,” और इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला दिया। अदालत ने कहा कि जब तक यह स्पष्ट न किया जाए कि गवाह तेज़ रफ्तार से क्या समझते हैं, तब तक ऐसे बयान व्यक्तिपरक और अविश्वसनीय रहते हैं।
मामले में अहम भूमिका यांत्रिक विशेषज्ञ की गवाही ने निभाई। जिरह के दौरान उसने स्वीकार किया कि ब्रेक सिस्टम की प्रेशर पाइप में लीकेज के कारण हादसा हो सकता था। न्यायालय के अनुसार, यह दुर्घटना का एक ऐसा संभावित कारण है, जिसका चालक की लापरवाही से सीधा संबंध नहीं बनता।
राज्य सरकार ने रेस इप्सा लोक्विटर (घटना स्वयं बोलती है) के सिद्धांत का सहारा लिया, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, “यह सिद्धांत केवल स्पष्टीकरण का बोझ स्थानांतरित करता है। जब तकनीकी खराबी सामने आ जाती है, तो इसी आधार पर दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता।”
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निर्णय
हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि ट्रायल कोर्ट का नजरिया साक्ष्यों पर आधारित और उचित था, उसमें हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। जस्टिस कैंथला ने कहा, “निचली अदालत ने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर एक तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाया है,” और इसी के साथ राज्य सरकार की अपील खारिज करते हुए बस चालक की बरी किए जाने के फैसले को बरकरार रखा।
Case Title: State of Himachal Pradesh vs Pradeep Kumar
Case No.: Criminal Appeal No. 422 of 2012
Case Type: Criminal Appeal (Against Acquittal)
Decision Date: 20 December 2025














