मंगलवार को पटना हाईकोर्ट के खचाखच भरे कोर्टरूम में, एक डिवीजन बेंच ने सरण जिले के 2019 के एक हत्या मामले को गहराई से परखा, जिसमें पहले ही कई आरोपियों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई जा चुकी थी। सुनवाई के अंत तक अदालत इस नतीजे पर पहुँची कि अभियोजन की कहानी में गंभीर खामियाँ और विरोधाभास हैं। इसी आधार पर कुछ दोषियों की सज़ा निलंबित करते हुए उन्हें जमानत देने का आदेश दिया गया।
पृष्ठभूमि
ये अपीलें छपरा की सेशंस कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर की गई थीं, जिसमें अभियुक्तों को दंगा और हत्या समेत कई धाराओं में दोषी ठहराया गया था। मामला जून 2019 में सरण जिले के कोपा थाना क्षेत्र के अनावल गाँव की एक हिंसक घटना से जुड़ा है, जहाँ रंधीर शर्मा पर चाकू से हमला हुआ और इलाज के लिए ले जाते समय उनकी मौत हो गई।
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एफआईआर के अनुसार, पहले सूचक और दूसरे पक्ष के लोगों के बीच झगड़ा हुआ। करीब पंद्रह मिनट बाद जब रंधीर शर्मा वहाँ पहुँचे, तो उन पर चाकू से हमला किया गया। ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन के इस संस्करण को स्वीकार करते हुए आरोपियों को उम्रकैद और अन्य सजाएँ तथा जुर्माना लगाया था।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
जमानत पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने गवाहों के बयानों और जांच रिकॉर्ड को बारीकी से देखा। बेंच ने यह भी नोट किया कि कथित प्रत्यक्षदर्शी गवाहों में से अधिकांश सूचक के करीबी रिश्तेदार हैं। कुछ गवाहों ने स्वीकार किया कि वे पहली बार अदालत में बयान दे रहे हैं, जबकि एक को “संयोगवश उपस्थित गवाह” बताया गया।
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सबसे अहम बात यह रही कि हत्या किस जगह और किस तरह हुई, इसे लेकर गवाहों के बयानों में बड़े विरोधाभास पाए गए। बेंच ने कहा, “एफआईआर में यह कहीं नहीं कहा गया कि मृतक को मस्जिद के पीछे घसीटकर ले जाया गया था,” और यह भी जोड़ा कि इस तरह की बातें बाद में ट्रायल के दौरान सामने आईं। जांच अधिकारी ने भी स्वीकार किया कि घटनास्थल से खून लगी मिट्टी या कोई अन्य भौतिक सबूत इकट्ठा नहीं किया गया, जिससे घटनास्थल की पुष्टि हो सके।
सामूहिक मंशा (कॉमन ऑब्जेक्ट) के सवाल पर अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट होता है कि केवल तीन आरोपी ही चाकू से लैस थे, जबकि वर्तमान अपीलकर्ता निहत्थे बताए गए हैं। स्थापित कानून का हवाला देते हुए बेंच ने टिप्पणी की कि जब बड़ी संख्या में लोगों पर एक साथ आरोप लगाए जाते हैं, तो अदालतों को सावधानी बरतनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या हत्या के लिए साझा योजना का ठोस प्रमाण है।
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निर्णय
समग्र परिस्थितियों को देखते हुए हाईकोर्ट ने माना कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास, घटनास्थल को लेकर अनिश्चितता और साझा मंशा के ठोस प्रमाण के अभाव में अपीलकर्ताओं को राहत देने का आधार बनता है। बेंच ने कहा, “अपील लंबित रहने के दौरान सज़ा निलंबन और जमानत का मामला बनता है।”
इसी के साथ अदालत ने अपीलकर्ताओं की सज़ा निलंबित करने और शर्तों के साथ उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, जो कि आपराधिक अपीलों के अंतिम निपटारे तक प्रभावी रहेगा।
Case Title: Zaka @ Zakir Hussain @ Zakir Sah & Others vs State of Bihar
Case Type: Criminal Appeal (DB) – Suspension of Sentence / Bail
Case No.: Criminal Appeal (DB) No. 71 of 2025 and Criminal Appeal (DB) No. 177 of 2025
Date of Judgment: 17 December 2025










