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कर्नाटक हाई कोर्ट ने ₹2.33 करोड़ के होटल विवाद में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर लगी रोक हटाई, न्यायिक एकरूपता और CPC धारा 10 के दुरुपयोग पर जताई चिंता

Vivek G.

मेसर्स श्री गुरुराजा एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स सिमेक एंटरप्राइजेज एंड अदर्स, कर्नाटक हाई कोर्ट ने ₹2.33 करोड़ के होटल विवाद में स्टे को रद्द कर दिया, CPC सेक्शन 10 का गलत इस्तेमाल माना और सिविल ट्रायल में न्यायिक एकरूपता पर ज़ोर दिया।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने ₹2.33 करोड़ के होटल विवाद में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर लगी रोक हटाई, न्यायिक एकरूपता और CPC धारा 10 के दुरुपयोग पर जताई चिंता

कर्नाटक हाई कोर्ट में एक व्यस्त सुबह की सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति एस. विश्वजीत शेट्टी ने बेंगलुरु स्थित एक होटल संपत्ति से जुड़े उच्च मूल्य के दीवानी मुकदमे में सात साल पुराने ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश उस मामले की कार्यवाही पर रोक से जुड़ा था, जिसे एम/एस श्री गुरुराजा एंटरप्राइजेज प्राइवेट लिमिटेड ने चुनौती दी थी। अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि असंगत अंतरिम आदेश न्याय व्यवस्था में जनता के विश्वास को कमजोर करते हैं और उन्हें कायम नहीं रखा जा सकता।

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पृष्ठभूमि

इस विवाद की जड़ें दो अलग-अलग दीवानी वादों में हैं, जो एक ही व्यावसायिक पक्षों के बीच दायर किए गए थे। पहला मुकदमा वर्ष 2009 में दायर हुआ था, जिसमें होटल के उत्तरी ब्लॉक के नवीनीकरण कार्य और कथित मिलीभगत से जुड़े दावे थे। उस मामले में आंशिक डिक्री पारित हुई और दोनों पक्ष नियमित प्रथम अपीलों के माध्यम से हाई कोर्ट पहुंचे, जो अभी भी विचाराधीन हैं।

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इसी दौरान, वर्ष 2011 में दायर दूसरे मुकदमे में ₹2.33 करोड़ से अधिक की क्षतिपूर्ति की मांग की गई। इसमें आरोप लगाया गया कि होटल के उत्तरी ब्लॉक पर एक निश्चित अवधि तक अवैध कब्जा बनाए रखा गया, जिससे व्यवसाय को नुकसान हुआ। इस मुकदमे के लंबित रहते हुए, एक प्रतिवादी ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 10 के तहत आवेदन दायर कर आग्रह किया कि पहले मुकदमे से संबंधित अपीलों के निपटारे तक बाद वाले मुकदमे की कार्यवाही रोकी जाए।

ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2018 में इस आग्रह को स्वीकार कर लिया, जिससे मामला ठहर गया। इसी आदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान रिट याचिका दाखिल की गई।

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अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति शेट्टी ने इस तथ्य पर ध्यान दिलाया कि इससे पहले भी उसी मुकदमे की कार्यवाही रोकने का एक समान अनुरोध अन्य प्रतिवादियों द्वारा किया गया था, जिसे खारिज कर दिया गया था और वह आदेश अंतिम हो चुका था। पीठ ने टिप्पणी की, “एक ही कार्यवाही में पारित आदेशों में निरंतरता बनाए रखना अदालतों का दायित्व है,” और चेताया कि परस्पर विरोधी निर्णय अदालतों को मनमाना और पक्षपाती दिखा सकते हैं।

सीपीसी की धारा 10 को साधारण शब्दों में समझाते हुए अदालत ने कहा कि यह प्रावधान केवल उन्हीं मामलों में लागू होता है, जहां दोनों मुकदमों में मुख्य विवाद एक जैसा हो और एक मामले का अंतिम निर्णय दूसरे को स्वतः ही तय कर दे। यहां, भले ही दोनों वादों में कथित मिलीभगत और धन वसूली की बात हो, लेकिन उनके कारण, समयावधि और मांगी गई राहतें स्पष्ट रूप से अलग थीं।

अदालत ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि चूंकि यह आवेदन किसी अन्य प्रतिवादी द्वारा दायर किया गया था, इसलिए वह स्वीकार्य है। न्यायालय के अनुसार, मुकदमे के दौरान पारित कोई भी सामान्य अंतरिम आदेश सभी पक्षों पर बाध्यकारी होता है। एक ही मुद्दे पर बार-बार आवेदन स्वीकार करना न्यायिक अनुशासन के खिलाफ होगा।

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निर्णय

रिट याचिका को स्वीकार करते हुए, हाई कोर्ट ने 25 जुलाई 2018 को पारित ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और स्थगन से जुड़े आवेदन को खारिज कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, ₹2.33 करोड़ के दीवानी मुकदमे की कार्यवाही अब बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ेगी।

Case Title: M/s Sree Gururaja Enterprises Pvt. Ltd. v. M/s Cimec Enterprises & Others

Case No.: Writ Petition No. 36643 of 2018 (GM-CPC)

Case Type: Civil Writ Petition under Article 227 of the Constitution of India

Decision Date: 3 December 2025

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