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सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी बैंकों के हेड ऑफिस खर्च कटौती की सीमा स्पष्ट की, धारा 44C पर वर्षों पुराने कर विवाद का अंत

Vivek G.

आयकर निदेशक (आईटी)-I, मुंबई बनाम मेसर्स अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक लिमिटेड। अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक और ओमान इंटरनेशनल बैंक के खिलाफ आयकर विभाग द्वारा दायर अपील की सुनवाई।

सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी बैंकों के हेड ऑफिस खर्च कटौती की सीमा स्पष्ट की, धारा 44C पर वर्षों पुराने कर विवाद का अंत

एक विस्तृत फैसले में, जिसने लंबे समय से चले आ रहे कर विवाद को सुलझा दिया, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि विदेशी बैंकों द्वारा अपने विदेशी हेड ऑफिस में किए गए, लेकिन भारत से जुड़े खर्चों की कटौती की सीमा क्या होगी। आयकर विभाग द्वारा अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक और ओमान इंटरनेशनल बैंक के खिलाफ दायर अपीलों पर सुनवाई करते हुए, पीठ ने कहा कि ऐसे खर्च केवल “भारत के लिए विशेष” बताए जाने से ही वैधानिक सीमा से बाहर नहीं हो जाते।

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सुनवाई के दौरान दिए गए इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि गैर-निवासी कंपनियां भारत में अपने प्रशासनिक खर्चों का दावा किस तरह कर सकती हैं, और इसका व्यापक असर पड़ने की उम्मीद है।

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पृष्ठभूमि

यह विवाद 1990 के दशक के अंत और 2000 के शुरुआती वर्षों से जुड़ा है। अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक, जो एक गैर-निवासी बैंकिंग कंपनी है, ने अपने विदेशी हेड ऑफिस में किए गए कुछ खर्चों की पूरी कटौती का दावा किया था। बैंक का कहना था कि ये खर्च पूरी तरह उसकी भारतीय शाखाओं के लिए किए गए थे। कर विभाग ने इस दावे से असहमति जताई और आयकर अधिनियम की धारा 44C लागू की, जो यह तय करती है कि विदेशी संस्थाएं भारत में “हेड ऑफिस खर्च” के नाम पर कितनी कटौती ले सकती हैं।

ओमान इंटरनेशनल बैंक के मामले में भी यही सवाल उठा। दोनों ही मामलों में अपीलीय प्राधिकरणों और बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुराने फैसलों पर भरोसा करते हुए बैंकों के पक्ष में निर्णय दिया। अदालतों ने माना कि जो खर्च केवल भारत से जुड़े हैं, वे धारा 44C के दायरे में नहीं आते। इस रुख से असंतुष्ट होकर राजस्व विभाग सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

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कोर्ट की टिप्पणियां

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की अगुवाई वाली पीठ ने धारा 44C की भाषा और उद्देश्य का बारीकी से विश्लेषण किया। असली विवाद यह था कि क्या यह प्रावधान केवल “साझा” वैश्विक खर्चों पर लागू होता है या उन खर्चों पर भी, जिन्हें भारतीय शाखाओं के लिए “विशेष रूप से” किया गया बताया जाता है।

कोर्ट ने कानून की व्याख्या करते हुए दो टूक कहा कि “कानून में साझा और विशेष खर्च के बीच कोई अंतर नहीं किया गया है।” पीठ ने आगे कहा कि निर्णायक बात यह है कि खर्च कहां किया गया और उसका स्वरूप क्या है। यदि वह खर्च गैर-निवासी द्वारा भारत के बाहर किया गया है और वह प्रशासनिक या प्रबंधकीय प्रकृति का है, तो वह सीधे धारा 44C के तहत आएगा।

अदालत ने यह दलील भी खारिज कर दी कि सामान्य प्रावधान धारा 37 के तहत पूरी कटौती देना नुकसानरहित होगा। कोर्ट के मुताबिक, धारा 44C इसी कारण लाई गई थी क्योंकि विदेशी हेड ऑफिस खर्चों की जांच करना कर अधिकारियों के लिए बेहद मुश्किल था। अगर ऐसे खर्चों को बिना सीमा के स्वीकार कर लिया जाए, तो यह “उसी समस्या को फिर से पैदा कर देगा, जिसे खत्म करने के लिए यह कानून बनाया गया था।”

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पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट के पुराने फैसले विशेष तथ्यों या संशोधन से पहले के कानून पर आधारित थे और उन्हें इस तरह नहीं पढ़ा जा सकता कि वे कानून में ऐसा अपवाद जोड़ दें, जो वहां मौजूद ही नहीं है।

निर्णय

अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने राजस्व विभाग की अपीलें स्वीकार कर लीं। कोर्ट ने फैसला दिया कि गैर-निवासी संस्था द्वारा भारत के बाहर अपने हेड ऑफिस में किया गया कोई भी खर्च-भले ही उसे भारतीय कारोबार के लिए “विशेष” बताया जाए-धारा 44C के तहत “हेड ऑफिस खर्च” ही माना जाएगा और उस पर कानून में तय सीमा लागू होगी।

Case Title: Director of Income Tax (IT)-I, Mumbai vs. M/s American Express Bank Ltd.

Case No.: Civil Appeal No. 8291 of 2015 (with Civil Appeal No. 4451 of 2016)

Case Type: Civil Appeal (Income Tax matter)

Decision Date: 2025

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