बुधवार को तिरुवनंतपुरम के एक लंबे समय से चले आ रहे भूमि विवाद में आखिरकार कुछ स्पष्टता आई, जब केरल हाई कोर्ट ने राजस्व अधिकारियों द्वारा खड़ी की गई उस रुकावट को हटाया, जिसे अदालत ने अनावश्यक माना। भरी हुई अदालत में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विजू अब्राहम ने 77 वर्षीय व्यवसायी बी.के.एन. पिल्लै द्वारा दायर रिट याचिका को स्वीकार करते हुए उनकी भूमि का म्यूटेशन बहाल कर दिया और अधिकारियों को बिना देरी भूमि कर स्वीकार करने का निर्देश दिया।
कागज़ों में भले ही मामला तकनीकी लगे, लेकिन असल मुद्दा आम ज़मीन मालिकों से जुड़ा था-क्या राजस्व अधिकारी उस स्थिति में भी म्यूटेशन से इनकार कर सकते हैं, जब दीवानी अदालतें स्वामित्व का अंतिम निर्णय दे चुकी हों।
पृष्ठभूमि
इस विवाद की जड़ें पांच दशक से भी अधिक पुरानी हैं। वंचियूर गांव में स्थित करीब 20 सेंट की यह ज़मीन मूल रूप से गौरिकुट्टी अम्मा की थी। याचिकाकर्ता के पिता बालकृष्ण पिल्लै यहां लकड़ी का व्यवसाय चला रहे थे। 1970 के दशक में इसको लेकर कई दीवानी मुकदमे शुरू हुए और मामला अलग-अलग अदालतों तक पहुंचा।
आखिरकार अपीलीय अदालत ने यह माना कि बालकृष्ण पिल्लै ने प्रतिकूल कब्जे (एडवर्स पज़ेशन) के जरिए संपत्ति पर स्वामित्व हासिल कर लिया था-यानी लंबे समय तक बिना रुकावट और विरोध के कब्जा, जो क़ानूनन मालिकाना हक़ में बदल जाता है। यह निष्कर्ष हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती के बावजूद कायम रहा।
बाद में बालकृष्ण पिल्लै ने अपने बेटे बी.के.एन. पिल्लै के पक्ष में वसीयत बनाई। इसके आधार पर पिल्लै ने राजस्व रिकॉर्ड में म्यूटेशन के लिए आवेदन किया। शुरुआत में म्यूटेशन हुआ और टैक्स भी स्वीकार किया गया। लेकिन मूल मालिकों के कानूनी वारिसों ने यह कहकर अपील की कि स्वामित्व विवाद अभी लंबित है और वसीयत को चुनौती दी गई है। इसके बाद राजस्व अधिकारियों ने म्यूटेशन रोक दिया।
यही आदेश पिल्लै को दोबारा हाई कोर्ट लाया।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति विजू अब्राहम ने साफ कहा कि राजस्व अधिकारियों ने अपनी सीमाओं से बाहर जाकर काम किया। अदालत ने यह रेखांकित किया कि दीवानी अदालतें पहले ही स्वामित्व पर अंतिम निर्णय दे चुकी हैं और उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता।
पीठ ने टिप्पणी की, “सक्षम दीवानी अदालतों द्वारा पारित डिक्री के आधार पर रजिस्ट्री का हस्तांतरण करना अधिकारियों का दायित्व है।” अदालत ने ट्रांसफर ऑफ रजिस्ट्री नियमों का हवाला देते हुए सरल शब्दों में समझाया कि ये नियम मुख्यतः कर और रिकॉर्ड के लिए होते हैं, न कि स्वामित्व तय करने के लिए।
वसीयत पर चल रहे विवाद के तर्क पर अदालत ने नियम 16 का ज़िक्र किया, जिसमें कहा गया है कि यदि भविष्य में किसी दीवानी अदालत का फैसला अलग आता है, तो रिकॉर्ड में संशोधन किया जा सकता है। यानी आज म्यूटेशन होने से किसी का कानूनी अधिकार खत्म नहीं होता।
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निर्णय
हाई कोर्ट ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसके कारण म्यूटेशन रोका गया था। अदालत ने पहले पारित उस आदेश को बहाल किया, जिसके तहत पिल्लै के नाम म्यूटेशन किया गया था, और निर्देश दिया कि संबंधित भूमि का टैक्स स्वीकार किया जाए। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि यदि किसी सक्षम दीवानी अदालत का फैसला भविष्य में पिल्लै के खिलाफ आता है, तो क़ानून के अनुसार राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव किया जा सकता है। इसी के साथ रिट याचिका का निपटारा कर दिया गया।
Case Title: B.K.N. Pillai @ B.K. Narayana Pillai v. State of Kerala & Others
Case No.: WP(C) No. 11930 of 2022
Case Type: Writ Petition (Civil)
Decision Date: 3 December 2025










