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हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने 2003 के हमले के मामले को पक्षों में समझौता होने के बाद किया ख़ारिज, सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांतों का हवाला

Vivek G.

इलाची प्रसाद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने 2003 के हमले के मामले में पक्षों की सुलह के बाद दोषसिद्धि रद्द की, सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला दिया।

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने 2003 के हमले के मामले को पक्षों में समझौता होने के बाद किया ख़ारिज, सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांतों का हवाला

गुरुवार को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में हुई एक संक्षिप्त लेकिन महत्वपूर्ण सुनवाई में जस्टिस सुशील कुक्रेजा ने 22 साल पुराने पड़ोसियों के विवाद को खत्म करते हुए इलाची प्रसाद के खिलाफ पहले दिए गए दोष सिद्ध फैसलों को रद्द कर दिया। घायल पक्षों ने अदालत में पुष्टि की कि वे आपस में सुलह कर चुके हैं। यह मामला, जिसमें कभी तीखी बहस, चाकू से हमला और अस्पताल तक ले जाने जैसी घटनाएँ शामिल थीं, अब “शांति बहाल” होने के साथ समाप्त हुआ।

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पृष्ठभूमि

यह मामला मार्च 2003 से जुड़ा है, जब एक फोन कॉल की सूचना न मिलने पर शुरू हुआ छोटा-सा विवाद कथित तौर पर हिंसा में बदल गया। अभियोजन के अनुसार, एक शाम प्रसाद शिकायतकर्ता के आँगन में घुस आया, यह कहते हुए कि महत्वपूर्ण फोन कॉल की जानकारी न मिलने से उसे बड़ा आर्थिक नुकसान हुआ। बात बढ़ी, आवाजें ऊँची हुईं और गवाहों के अनुसार अचानक एक चाकू निकल आया। शिकायतकर्ता के भाई, पवन कुमार को साधारण और गंभीर दोनों तरह की चोटें आईं, जबकि शिकायतकर्ता अरुण कुमार को भी हल्की चोटें मिलीं।

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ट्रायल कोर्ट ने प्रसाद को आईपीसी की कई धाराओं-323, 324, 326 और 447-के तहत दोषी ठहराया और उसे जुर्माना व साधारण कारावास की सज़ा दी। 2013 में सेशंस कोर्ट ने भी यह फैसला बरकरार रखा। मामला हाई कोर्ट में लंबित था, जब जून 2025 में दोनों पक्षों ने अप्रत्याशित रूप से समझौता कर लिया।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान अरुण और पवन ने सीधे जज को बताया कि वे अब इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते। उन्होंने एक लिखित समझौता भी दिया, जिसमें उल्लेख था कि गाँव के बुज़ुर्गों और प्रतिष्ठित लोगों ने हस्तक्षेप कर उन्हें शांतिपूर्ण समाधान के लिए समझाया। अरुण ने कहा कि वे न सिर्फ़ “मनमुटाव खत्म” कर चुके हैं, बल्कि आगे किसी तरह की कड़वाहट भी नहीं रखना चाहते।

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जस्टिस कुक्रेजा ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों-गियन सिंह, नरिंदर सिंह, और परबतभाई आहीर—का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि कब हाई कोर्ट गैर-समझौताकारी अपराधों में भी कार्यवाही समाप्त कर सकता है। पीठ ने कहा, “धारा 482 के तहत हाई कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियाँ न्याय सुनिश्चित करने के लिए हैं, खासकर तब जब विवाद व्यक्तिगत हो और कार्यवाही जारी रखने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा न हो।”

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि इन शक्तियों का उपयोग जघन्य अपराधों में नहीं किया जा सकता, परंतु ऐसे पड़ोसी विवाद, जिनका स्वरूप मुख्य रूप से व्यक्तिगत हो, सच्चे समझौते की स्थिति में समाप्त किए जा सकते हैं। जज ने संकेत दिया कि ऐसे मामलों को वर्षों तक खींचना अदालतों का समय भी लेता है और समुदायिक रिश्तों को भी नुकसान पहुँचाता है। एक मौके पर उन्होंने remarked किया कि अब कार्यवाही जारी रखना “व्यर्थ का अभ्यास” होगा, खासकर जब खुद पीड़ित ही मामले को समाप्त करना चाहते हैं।

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निर्णय

बयान, समझौता पत्र और लागू कानूनी सिद्धांतों की समीक्षा करने के बाद हाई कोर्ट ने प्रसाद की पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली। जस्टिस कुक्रेजा ने 2008 का दोष सिद्ध फैसला, उससे जुड़े दंड आदेश और 2013 के अपीलीय निर्णय को पूरी तरह रद्द कर दिया। अदालत ने कहा, “याचिकाकर्ता सभी आरोपों से बरी किया जाता है,” और इस तरह दो दशक लंबी कानूनी प्रक्रिया समाप्त हो गई। जज ने जमानत बॉन्ड भी रद्द कर दिए, जिससे मामला पूरी तरह बंद हो गया।

Case Title: Ilachi Prasad vs. State of Himachal Pradesh

Case Type: Criminal Revision Petition

Case Number: Cr. Revision No. 4056 of 2013

Date of Judgment/Order: 11 December 2025

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