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जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने सैनिक स्कूल मंसबल कर्मचारियों की पेंशन मांग खारिज की, कहा- नियमों में प्रावधान बिना कानूनी अधिकार नहीं बनता

Vivek G.

अब्दुल मजीद पार्रे एवं अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर एवं अन्य। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने सैनिक स्कूल मंसबल कर्मचारियों की पेंशन याचिका खारिज की, कहा-पेंशन के लिए सेवा नियमों में प्रावधान जरूरी।

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने सैनिक स्कूल मंसबल कर्मचारियों की पेंशन मांग खारिज की, कहा- नियमों में प्रावधान बिना कानूनी अधिकार नहीं बनता

श्रीनगर की अदालत में माहौल शांत था, लेकिन वर्षों से लंबित मांग पर फैसला सुनते समय तनाव साफ महसूस किया जा सकता था। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने सैनिक स्कूल मंसबल के कर्मचारियों और सेवानिवृत्त कर्मियों की पेंशन से जुड़ी याचिकाओं पर अंतिम निर्णय सुना दिया। अदालत ने साफ कहा कि केवल उम्मीदों या मौखिक आश्वासनों के आधार पर पेंशन नहीं दी जा सकती, जब तक सेवा नियमों में उसका स्पष्ट प्रावधान न हो।

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न्यायमूर्ति संजय धर ने फैसला सुनाते हुए 59 सेवारत कर्मचारियों और एक सेवानिवृत्त कर्मचारी अब्दुल मजीद पर्रे द्वारा दायर दो जुड़ी रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया।

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पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए मांग की थी कि उन्हें सेवानिवृत्ति पर वही पेंशन लाभ दिए जाएं, जो सरकारी कर्मचारियों और देश के अन्य सैनिक स्कूलों के कर्मचारियों को मिलते हैं। उनका तर्क था कि सैनिक स्कूल मंसबल की स्थापना 1980 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार ने की थी और यह स्कूल पूरी तरह से यूनियन टेरिटरी सरकार के नियंत्रण और वित्त पोषण में है।

पेंशन की मांग बीते कई वर्षों में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और कार्यकारी समितियों की बैठकों में उठती रही। कर्मचारियों का कहना था कि 2005 में स्कूल के एक समारोह के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री ने पेंशन योजना को “सैद्धांतिक मंजूरी” दी थी। इसके बावजूद आज तक कोई पेंशन योजना लागू नहीं हो सकी और कर्मचारी अंशदायी भविष्य निधि (CPF) व्यवस्था के तहत ही बने रहे।

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अदालत की टिप्पणियां

अदालत ने पूरे रिकॉर्ड, बोर्ड बैठकों के निर्णयों और वित्त विभाग की चिट्ठियों का बारीकी से अध्ययन किया। कोर्ट ने पाया कि पेंशन को लेकर कई बार चर्चा जरूर हुई, लेकिन बोर्ड ऑफ गवर्नर्स से कभी अंतिम मंजूरी नहीं मिली, जबकि वही स्कूल की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है।

न्यायमूर्ति धर ने स्पष्ट किया कि बोर्ड के अध्यक्ष होने के बावजूद मुख्यमंत्री अकेले पेंशन योजना लागू नहीं कर सकते थे। अदालत ने टिप्पणी की, “जब तक बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा किसी निर्णय को मंजूरी नहीं दी जाती, उसे लागू नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि पेंशन कोई स्वतः मिलने वाला या मौलिक अधिकार नहीं है। यह पूरी तरह सेवा शर्तों और नियमों पर निर्भर करता है। इस मामले में स्कूल के नियमों में CPF, ग्रेच्युटी और अन्य लाभों का प्रावधान तो है, लेकिन पेंशन का नहीं। अदालत ने कहा, “किसी रिट के जारी होने का आधार कानूनी अधिकार होता है,” और यहां ऐसा कोई प्रवर्तनीय अधिकार मौजूद नहीं था।

सरकारी कर्मचारियों या अन्य सैनिक स्कूलों से समानता (पैरिटी) की दलील को भी अदालत ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि बाहर से संस्थान एक जैसे दिख सकते हैं, लेकिन उनके नियंत्रण, वित्तीय ढांचे और सेवा शर्तों में अंतर होता है।

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निर्णय

अंततः हाई कोर्ट ने दोनों रिट याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि सैनिक स्कूल मंसबल के कर्मचारियों को पेंशन का दावा करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि उनके सेवा नियमों में इसका कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स चाहे, तो वह पेंशन योजना लागू करने के लिए स्वतंत्र है।

Case Title: Abdul Majeed Parray & Ors. vs Union Territory of Jammu & Kashmir & Ors.

Case No.: WP(C) No. 616/2021 c/w WP(C) No. 391/2021

Case Type: Writ Petition (Service – Pensionary Benefits)

Decision Date: 11 December 2025

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