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केरल हाईकोर्ट ने बैंक खाता डी-फ्रीज़ याचिकाओं के बढ़ते दुरुपयोग पर जताई चिंता, राज्यभर में साइबर फ्रॉड मामलों में पुलिस सत्यापन अनिवार्य करने के निर्देश

Vivek G.

ब्लू स्टार एल्युमिनियम बनाम द फेडरल बैंक लिमिटेड और अन्य, केरल हाईकोर्ट ने साइबर फ्रॉड से जुड़े बैंक खाता डी-फ्रीज़ मामलों में दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए पुलिस को अनिवार्य पक्षकार बनाने के निर्देश दिए।

केरल हाईकोर्ट ने बैंक खाता डी-फ्रीज़ याचिकाओं के बढ़ते दुरुपयोग पर जताई चिंता, राज्यभर में साइबर फ्रॉड मामलों में पुलिस सत्यापन अनिवार्य करने के निर्देश

केरल हाईकोर्ट ने साइबर धोखाधड़ी से जुड़े मामलों में फ्रीज़ किए गए बैंक खातों को डी-फ्रीज़ कराने की मांग वाली याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर कड़ा रुख अपनाया है। त्रिशूर स्थित एक कारोबारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि ऐसे मामले अब उसके समक्ष आने वाले सबसे बड़े वर्गों में शामिल हो चुके हैं, जिनमें अक्सर अस्पष्ट तथ्यों के साथ याचिकाएं दायर की जाती हैं और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग की गंभीर आशंका सामने आती है।

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पृष्ठभूमि

यह याचिका ब्लू स्टार एल्युमिनियम द्वारा, उसके प्रोप्राइटर के माध्यम से दायर की गई थी, जिसमें एक निजी बैंक को खाते से लगाया गया फ्रीज़ हटाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। यह खाता साइबर धोखाधड़ी से जुड़े संदिग्ध लेन-देन के चलते फ्रीज़ किया गया था।

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न्यायमूर्ति एम.ए. अब्दुल हकीम ने कहा कि बैंक या तो पुलिस के अनुरोध पर या फिर स्वयं संदेह के आधार पर खाते फ्रीज़ करते हैं, खासकर तब जब लेन-देन असामान्य प्रतीत होता है। हाल के महीनों में अदालत प्रतिदिन लगभग 200 ऐसे साइबर फ्रॉड से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही है। इनमें से कई मामलों में खाते खुलने के तुरंत बाद करोड़ों रुपये का लेन-देन देखा गया है, जो खाताधारकों द्वारा घोषित व्यवसायिक प्रोफाइल से मेल नहीं खाता।

अदालत की टिप्पणियां

पीठ ने सुनवाई के दौरान कुछ बेहद स्पष्ट टिप्पणियां कीं। अदालत ने कहा, “अधिकांश रिट याचिकाओं में याचिकाकर्ता खुद को निर्दोष बताते हैं, लेकिन अपने व्यवसाय की प्रकृति या विवादित लेन-देन तक का विवरण नहीं देते।”

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न्यायाधीश ने यह भी इंगित किया कि कई याचिकाएं ऐसे युवाओं द्वारा दायर की जा रही हैं जो हाल ही में बालिग हुए हैं, जबकि उनके खातों से भारी-भरकम रकम का लेन-देन हुआ है। अदालत ने यह भी चिंता जताई कि कुछ याचिकाएं एआई द्वारा तैयार की गई प्रतीत होती हैं, जिनमें मूलभूत तथ्य तक नहीं होते, और सुनवाई के दौरान वकील भी अदालत के सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाते।

अदालत ने साफ किया कि यदि खाता फ्रीज़ करने की प्रक्रिया में कोई तकनीकी या प्रक्रियात्मक चूक भी हो, तब भी राहत स्वतः नहीं दी जा सकती। यदि परिस्थितियों से यह प्रतीत होता है कि खाते का उपयोग साइबर धोखाधड़ी को बढ़ावा देने के लिए किया गया है, तो संविधान के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट राहत देने से इनकार कर सकता है।

न्यायमूर्ति अब्दुल हकीम ने यह भी माना कि साइबर फ्रॉड के मामलों में जांच जटिल होती है। कुछ खाताधारक वास्तव में निर्दोष हो सकते हैं, जिन्हें वैध रूप से देय राशि प्राप्त हुई हो, जबकि कुछ लोग चोरी की रकम को घुमाने के लिए तथाकथित “म्यूल अकाउंट” संचालित कर रहे होते हैं। स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब केरल से बाहर की पुलिस एजेंसियां अदालत के नोटिस के बावजूद पेश नहीं होतीं, जिससे पीड़ितों और अपराधियों की पहचान करना कठिन हो जाता है।

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निर्णय

अदालत के संज्ञान में यह भी आया कि कुछ मामलों में याचिकाएं कथित रूप से बिना याचिकाकर्ताओं की जानकारी या सहमति के, जाली दस्तावेजों के आधार पर दायर की गईं। इन तथ्यों को देखते हुए अदालत ने प्रक्रिया को सख्त करने का निर्णय लिया।

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि बैंक खाते डी-फ्रीज़ कराने से जुड़ी सभी याचिकाओं में उस पुलिस थाने के स्टेशन हाउस ऑफिसर को पक्षकार बनाया जाए, जिसके क्षेत्राधिकार में याचिकाकर्ता का पता आता है।

रजिस्ट्रार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि संबंधित एसएचओ को पक्षकार बनाए बिना ऐसी याचिकाओं का नंबर ही न दिया जाए। मौजूदा मामले में भी याचिकाकर्ता को स्थानीय एसएचओ को पक्षकार बनाने का निर्देश दिया गया और मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर, 2025 के लिए तय की गई।

Case Title: Blue Star Aluminium v. The Federal Bank Ltd. & Others

Case No.: WP(C) No. 43123 of 2025

Case Type: Writ Petition (Civil)

Decision Date: 10 December 2025

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