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राजस्थान हाईकोर्ट ने ₹95 करोड़ GST चोरी मामले में जमानत से इनकार किया, ऑनलाइन गेमिंग मनी ट्रेल्स और आर्थिक अखंडता पर गंभीर खतरे का हवाला

Prince V.

मनोज कुमार पुत्र भगवानाराम बनाम राजस्थान राज्य और संबंधित मामला, राजस्थान हाईकोर्ट ने ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े ₹95 करोड़ के जीएसटी चोरी मामले में जमानत खारिज की, गंभीर आर्थिक प्रभाव और साक्ष्य से छेड़छाड़ का खतरा बताया।

राजस्थान हाईकोर्ट ने ₹95 करोड़ GST चोरी मामले में जमानत से इनकार किया, ऑनलाइन गेमिंग मनी ट्रेल्स और आर्थिक अखंडता पर गंभीर खतरे का हवाला

जयपुर पीठ में शुक्रवार को राजस्थान हाईकोर्ट ने ऑनलाइन मनी गेमिंग से जुड़े एक बड़े जीएसटी चोरी मामले में दो आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने आरोपों को गंभीर और अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह बताया। सुनवाई के दौरान मौजूद रहने पर साफ था कि अदालत केवल रकम से ही नहीं, बल्कि कथित तौर पर पैसे के बहाव के तरीके से भी चिंतित थी।

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न्यायमूर्ति समीर जैन ने यह आदेश पारित करते हुए सेंट्रल जेल, जयपुर में बंद मनोज कुमार और जगदीश की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं। मामला डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) की जांच से जुड़ा है।

पृष्ठभूमि

यह मामला DGGI द्वारा ऑनलाइन गेमिंग से होने वाली कथित जीएसटी चोरी की जांच से सामने आया। अभियोजन के अनुसार, कई प्राइवेट कंपनियों को पेमेंट एग्रीगेटर्स के साथ जोड़ा गया और बड़ी रकम UPI आईडी व वर्चुअल पेमेंट एड्रेस के जरिए बिना जीएसटी चुकाए प्राप्त की गई।

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शुरुआत में कथित कर चोरी की राशि लगभग ₹11 करोड़ बताई गई थी। हालांकि, जांच आगे बढ़ने और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड खंगालने के बाद यह आंकड़ा तेजी से बढ़ा। 10 नवंबर 2025 को दाखिल अंतिम शिकायत में कथित चोरी को लगभग ₹95.77 करोड़ तक संशोधित किया गया।

आरोपियों को सितंबर 2025 में गिरफ्तार किया गया था। निचली अदालत द्वारा जमानत याचिकाएं खारिज किए जाने के बाद उन्होंने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अदालत की टिप्पणियां

सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने दलील दी कि आवेदक केवल सुविधा प्रदाता हैं, वास्तविक सप्लायर नहीं, और CGST अधिनियम के तहत अधिकतम सजा पांच वर्ष है। यह भी कहा गया कि जांच पूरी हो चुकी है और आगे की न्यायिक हिरासत का कोई औचित्य नहीं है।

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हालांकि, अदालत इस तर्क से सहमत नहीं हुई। पीठ ने कहा कि CGST अधिनियम की धारा 132 के तहत ₹5 करोड़ से अधिक की कर चोरी को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध माना गया है। पीठ ने टिप्पणी की, “रिकॉर्ड के प्रथम दृष्टया अवलोकन से यह स्पष्ट है कि बड़े पैमाने पर लेनदेन और ₹5 करोड़ से कहीं अधिक की कर चोरी के आरोप हैं।”

न्यायमूर्ति जैन ने जांच के दौरान दर्ज बयानों, इलेक्ट्रॉनिक सामग्री की बरामदगी और लेनदेन की विशाल मात्रा का उल्लेख किया। आदेश में कथित विदेशी संपर्कों से जुड़ी संचार जानकारी का भी जिक्र है, जिससे साक्ष्यों से छेड़छाड़ और फरार होने की आशंका जताई गई। अदालत ने कहा, “धोखाधड़ी सब कुछ दूषित कर देती है,” और यह भी जोड़ा कि लेनदेन छिपाने का प्रयास आरोपियों के खिलाफ गया।

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निर्णय

कथित कर चोरी की विशाल राशि, ऑनलाइन गेमिंग लेनदेन की प्रकृति और जांच पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव को देखते हुए हाईकोर्ट ने माना कि यह जमानत देने का उपयुक्त मामला नहीं है। पीठ ने कहा कि इस स्तर पर आरोपियों ने कोई असाधारण परिस्थिति नहीं दिखाई है जो उनकी रिहाई को उचित ठहराए।

इसी आधार पर दोनों जमानत याचिकाएं खारिज कर दी गईं। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां केवल जमानत के प्रश्न तक सीमित हैं और मामले के गुण-दोष पर कोई राय नहीं मानी जाएंगी।

Case Title: Manoj Kumar S/o Bhagwanaram vs State of Rajasthan & Connected Matter

Case No.: S.B. Criminal Miscellaneous Bail Application No. 13655/2025 (Connected with S.B. Criminal Misc. Bail Application No. 13782/2025)

Case Type: Criminal Miscellaneous Bail Application (GST Evasion / Economic Offence)

Decision Date: 06 December 2025

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