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जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पदोन्नति और पूर्वलाभ विवाद में 1979 बैच के पुलिस अधिकारियों की वरिष्ठता बहाल की, दशकों पुरानी कानूनी लड़ाई का अंत

Vivek G.

प्यारे लाल भट और अन्य बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य और अन्य, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 40 साल पुराने पुलिस वरिष्ठता विवाद का अंत किया, 1979 बैच के अधिकारियों के दावे बहाल किए।

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पदोन्नति और पूर्वलाभ विवाद में 1979 बैच के पुलिस अधिकारियों की वरिष्ठता बहाल की, दशकों पुरानी कानूनी लड़ाई का अंत

जम्मू की अदालत में उस दिन माहौल कुछ बोझिल और आत्ममंथन भरा था, जब डिवीजन बेंच ने लगभग चार दशकों से चल रहे इस मामले को आखिरकार निपटाया। अपीलकर्ताओं के लिए-जो अब सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी हैं-यह लड़ाई सिर्फ रैंक की नहीं थी। यह सम्मान, वरिष्ठता और इस विश्वास की थी कि व्यवस्था चाहे देर से ही सही, खुद को सुधारती है। 12 दिसंबर 2025 को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने 1979 में नियुक्त सब-इंस्पेक्टरों से जुड़े लंबे समय से लंबित लेटर्स पेटेंट अपील में अपना फैसला सुनाया।

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पृष्ठभूमि

इस विवाद की जड़ें 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक के मध्य में हैं। अपीलकर्ता अप्रैल 1979 में सीधे भर्ती होकर सब-इंस्पेक्टर बने थे। समस्या तब खड़ी हुई जब 1979 से पहले नियुक्त कुछ असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टरों को बाद में अप्रैल 1978 से प्रभावी पूर्वलाभ (रेट्रोस्पेक्टिव) पदोन्नति देकर सब-इंस्पेक्टर बना दिया गया। 1985 में जारी एक प्रशासनिक आदेश ने वरिष्ठता की पूरी सीढ़ी रातोंरात उलट दी।

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इन पूर्वलाभ से पदोन्नत अधिकारियों ने पहले इंस्पेक्टर और फिर डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (DySP) के पदों पर तरक्की कर ली। खुद को अन्याय का शिकार मानते हुए 1979 बैच के अधिकारियों ने 1986 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद रिट याचिकाओं, अपीलों, पलटफेर और 2007 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णायक हस्तक्षेप तक की लंबी कड़ी चली, जिसमें पूर्वलाभ पदोन्नति को अनुचित और कानूनी रूप से अस्थिर बताते हुए रद्द कर दिया गया।

लेकिन असली संघर्ष फैसले के अमल को लेकर शुरू हुआ। नए सरकारी आदेश, बदली हुई वरिष्ठता सूचियां और बाद के बैचों-खासतौर पर 1999 में DySP बने सीधे भर्ती अधिकारियों-की चुनौतियों ने मामले को जिंदा रखा। जब मौजूदा अपील पर सुनवाई हुई, तब तक सभी अपीलकर्ता सेवानिवृत्त हो चुके थे, कुछ तो एक दशक से भी अधिक पहले।

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अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति राजनेश ओसवाल और न्यायमूर्ति राहुल भारती की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच ने पूरे घटनाक्रम को देखते हुए कड़े शब्दों में टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि अपीलकर्ताओं ने “न्याय के लिए संघर्ष किया, न्याय पाया और फिर न्याय खो दिया,” और अंततः वे खुद को 1986 जैसी ही स्थिति में वापस पाते हैं।

2007 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए बेंच ने याद दिलाया कि शीर्ष अदालत पहले ही 1985 के पूर्वलाभ पदोन्नति आदेश को दुर्भावनापूर्ण (मालाफाइड) बता चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार ने “एक वर्ग के कर्मचारियों को खुलकर फायदा पहुंचाया ताकि दूसरे वर्ग के वास्तविक दावे को कुचला जा सके।” हाईकोर्ट ने साफ किया कि जब यह निष्कर्ष अंतिम हो चुका था, तो प्रशासन का दायित्व था कि वह उसे पूरी तरह लागू करे, न कि नए वरिष्ठता अभ्यासों के जरिए उसे कमजोर करे।

जजों ने 2007 के बाद जारी उन सरकारी कदमों पर खास नाराजगी जताई, जिनसे अपीलकर्ताओं की बहाल की गई वरिष्ठता फिर से अस्थिर हो गई। अदालत के अनुसार, बार-बार रैंक में फेरबदल से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मकसद ही खत्म हो गया और सेवानिवृत्ति के बाद भी अपीलकर्ता अंतहीन मुकदमेबाजी में फंसे रहे।

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निर्णय

लेटर पेटेंट अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने 2011 के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसने अपीलकर्ताओं की बहाल वरिष्ठता में हस्तक्षेप किया था। बेंच ने 2008 में जारी उन सरकारी आदेशों के प्रभाव को बरकरार रखा, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने के लिए जारी किए गए थे, और माना कि अपीलकर्ता अपनी सही वरिष्ठता और उससे जुड़े लाभों के हकदार हैं। इसके साथ ही, अदालत ने लगभग चालीस वर्षों से चले आ रहे इस विवाद पर पूर्ण विराम लगा दिया और मामले को न्यायिक सुधार के बिंदु पर ही समाप्त कर दिया।

Case Title: Pyare Lal Bhat and Others vs State of Jammu & Kashmir and Others

Case No.: LPASW No. 113/2012 (with CCP(D) No. 4/2020)

Case Type: Letters Patent Appeal (Service / Seniority Dispute)

Decision Date: 12 December 2025

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