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सुप्रीम कोर्ट ने POSH अधिनियम का क्षेत्राधिकार स्पष्ट किया, कहा-महिला अपने कार्यस्थल पर ही शिकायत दर्ज कर सकती है, भले ही आरोपी दूसरी विभाग में कार्यरत हो

Vivek G.

डॉ. सोहेल मलिक बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि महिलाएं अपने कार्यस्थल पर POSH शिकायतें दर्ज कर सकती हैं, भले ही आरोपी कहीं और काम करता हो, जिससे कार्यस्थल पर उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा मजबूत होती है।

सुप्रीम कोर्ट ने POSH अधिनियम का क्षेत्राधिकार स्पष्ट किया, कहा-महिला अपने कार्यस्थल पर ही शिकायत दर्ज कर सकती है, भले ही आरोपी दूसरी विभाग में कार्यरत हो

एक महत्वपूर्ण फैसले में, जो सरकारी संस्थानों में यौन उत्पीड़न शिकायतों के निपटारे के तरीकों को नए सिरे से प्रभावित कर सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह स्पष्ट कर दिया कि पीड़ित महिला के कार्यस्थल पर गठित आंतरिक शिकायत समिति (ICC) को शिकायत की जांच का पूरा अधिकार है-भले ही आरोपी कर्मचारी किसी अन्य विभाग में कार्यरत हो। यह फैसला IRS अधिकारी डॉ. सोहैल मलिक की अपील पर आया, जिन्होंने तर्क दिया था कि केवल उनके अपने विभाग की ICC ही उन्हें जांच सकती है।

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पृष्ठभूमि

विवाद तब शुरू हुआ जब एक वरिष्ठ IAS अधिकारी ने आरोप लगाया कि 15 मई 2023 को कृषिभवन में-जहां वह संयुक्त सचिव थीं-डॉ. मलिक ने उनका यौन उत्पीड़न किया। इसके बाद उन्होंने FIR दर्ज करवाई और POSH अधिनियम के तहत खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की ICC-यानी अपने कार्यस्थल-में शिकायत दायर की।

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मलिक ने इसे केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT), फिर दिल्ली उच्च न्यायालय और अंततः सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उनका मुख्य तर्क यह था कि शिकायतकर्ता के विभाग की ICC के पास उन्हें जांचने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह अलग सेवा और अलग कार्यालय से संबंधित हैं।

मलिक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने कोर्ट में कहा कि यदि विभागों के पार ऐसी जांच की अनुमति दी गई, तो “पूरी व्यवस्था बिखर जाएगी” और सेवा नियमों का ढांचा बिगड़ जाएगा। लेकिन केंद्र सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि इतनी संकीर्ण व्याख्या “POSH अधिनियम की आत्मा को ही नष्ट कर देगी।”

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कोर्ट की टिप्पणियाँ

जस्टिस जे.के. महेश्वरी की अगुवाई वाली पीठ ने POSH अधिनियम के उद्देश्य, शिकायत व्यवस्था की संरचना और “कार्यस्थल” की परिभाषा पर विस्तार से विचार किया। जज बार-बार एक ही मूल बात पर लौटते रहे: यह अधिनियम एक सामाजिक कल्याण कानून है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के लिए शिकायत दर्ज करने की बाधाओं को हटाना है।

एक मौके पर पीठ ने टिप्पणी की, “यदि हर बार पीड़ित महिला को आरोपी के कार्यालय का चक्कर लगाना पड़े, तो POSH अधिनियम का पूरा मकसद ही समाप्त हो जाएगा।” कोर्ट ने कहा कि अनजान विभागों में जाकर शिकायत करना कई महिलाओं के लिए डर और कलंक का कारण बन सकता है।

निर्णय में यह भी समझाया गया कि "कार्यस्थल" शब्द को जानबूझकर बहुत व्यापक रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें वे सभी स्थान शामिल हैं जहाँ कर्मचारी नौकरी के दौरान जाता है। ऐसे में यह कहना कि केवल आरोपी के कार्यालय की ICC ही शिकायत ले सकती है, कानून की भावना के विपरीत होगा।

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कोर्ट ने तथ्य-पड़ताल (fact-finding) और अनुशासनात्मक कार्यवाही में भी स्पष्ट अंतर किया। शिकायतकर्ता के कार्यस्थल की ICC केवल जांच करती है; किसी भी दंडात्मक कार्रवाई का अधिकार हमेशा आरोपी के नियोक्ता के पास रहता है।

पीठ ने कहा, “जांच करने और दंड देने के अधिकार अलग-अलग हैं,” और आरोपी के तर्क को खारिज कर दिया कि जांच उसी ICC द्वारा होनी चाहिए जो उसके विभाग में गठित है।

कोर्ट ने यौन उत्पीड़न से जुड़ी वास्तविक स्थितियों का भी ज़िक्र किया और कहा कि पीड़ित को किसी दूर या अपरिचित कार्यालय में शिकायत दर्ज करवाने के लिए मजबूर करना “अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक बाधाएँ” खड़ी कर सकता है।

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अंततः डॉ. मलिक की अपील खारिज कर दी और स्पष्ट किया कि:

  • ICC की कार्यवाही पीड़ित महिला के कार्यस्थल पर शुरू की जा सकती है, भले ही आरोपी किसी अन्य विभाग में हो;
  • ICC की रिपोर्ट तथ्य-पड़ताल का दस्तावेज़ है, जिस पर आगे कार्रवाई आरोपी के नियोक्ता को ही करनी होगी;
  • आरोपी आगे अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती दे सकता है, लेकिन ICC के क्षेत्राधिकार को नहीं।

इसी के साथ कोर्ट ने यह मार्ग साफ कर दिया कि सीलबंद रिपोर्ट अब संबंधित प्राधिकरण द्वारा विचार की जा सकती है, और विवाद को केवल क्षेत्राधिकार के स्तर पर ही समाप्त कर दिया।

Case Title: Dr. Sohail Malik vs. Union of India & Anr.

Case No.: Civil Appeal No. 404 of 2024

Case Type: Civil Appeal (POSH Act – Jurisdiction Challenge)

Decision Date: 2025 INSC 1415 (Supreme Court Judgment)

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