एक कांस्टेबल को पुलिस भर्ती में नौकरी दिलाने का झांसा देकर पैसे लेने के आरोप में बर्खास्त किया गया था। उसे बड़ी राहत देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है कि कार्रवाई “किसी भी कानूनी सबूत पर आधारित नहीं” थी। जस्टिस फरजंद अली ने 4 दिसंबर को फैसला सुनाते हुए कहा कि समीक्षा प्राधिकारी ने “पूर्व निर्धारित मानसिकता” के साथ अत्यधिक सज़ा दी।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता शंकर राम, जिसने 2008 में पुलिस बल जॉइन किया था, पर आरोप थे कि 2009–10 में प्रशिक्षण के दौरान उसने पाली जिले में कैंटीन संचालक के बेटे से कांस्टेबल बनाने का वादा कर ₹50,000 लिए। 2016 में पहले केवल दो वार्षिक वेतनवृद्धि रोकने की छोटी सज़ा हुई थी। लेकिन यह सज़ा बार-बार बढ़ती गई पहले चार वेतनवृद्धि रोकने तक और फिर 2018 में समीक्षा अधिकार का उपयोग करके बर्खास्तगी तक पहुँचा दिया गया।
वकीलों ने दलील दी कि मामला सिर्फ प्रारंभिक जांच पर आधारित था। नियमित विभागीय जांच के दौरान मुख्य गवाह पलट गए थे और उन्होंने कहा कि वह पैसा केवल उधार था, जो वापस कर दिया गया है। उनका कहना था कि इतनी कठोर सज़ा एक निचले स्तर के सिपाही के लिए “आर्थिक मृत्यु” जैसी है।
अदालत की टिप्पणियां
जस्टिस अली ने माना कि अधिकारी एक गलत आधार पर सज़ा बढ़ाने के लिए लगातार हस्तक्षेप करते रहे। कोर्ट ने तीखी टिप्पणी की कि विभागीय स्तर पर किया गया 27 पृष्ठों का विस्तृत आदेश पहले से मौजूद था, फिर भी समीक्षा में इसे “गैर-तर्कसंगत” बताया गया।
सबूतों पर अदालत ने स्पष्ट कहा कि एक बार नियमित विभागीय जांच शुरू हो जाए तो प्रारंभिक जांच के आधार पर दंड देना गलत है:
“प्रारंभिक जांच की सामग्री को सज़ा का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता…”
न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि इसी आरोप की आपराधिक जांच में पुलिस ने इसे निजी उधार विवाद बताया और अंतिम रिपोर्ट को मजिस्ट्रेट ने स्वीकार कर लिया:
“संभावनाओं के आधार पर भी कोई सामग्री याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं पाई गई…”
कोर्ट ने टिप्पणी की कि प्रशिक्षणरत एक नए कांस्टेबल के लिए भर्ती प्रक्रिया में प्रभाव डालना “तर्क के विपरीत” है, खासकर जब शिकायतकर्ता स्वयं आरोप से मुकर गए।
निर्णय
अदालत ने समीक्षा प्राधिकारी के आदेश को मनमाना और अवैध बताते हुए 29.09.2017 और 15.05.2018 के आदेश रद्द कर दिए। बर्खास्तगी निरस्त कर कांस्टेबल को तुरंत सेवा में पुनःस्थापित करने का निर्देश दिया गया। सेवा अवधि को निरंतर माना जाएगा, हालांकि बकाया वेतन आगे की पुनःसमीक्षा के परिणाम पर निर्भर करेगा।
कोर्ट ने साफ निर्देश दिया कि आगे कोई दंड दिया जाए तो वह सिर्फ नियमित जांच के सबूतों पर आधारित हो और आपराधिक जांच के निष्कर्ष को भी ध्यान में रखा जाए।
Case Title:- Shankar Ram vs State of Rajasthan
Case Type & Number:- S.B. Civil Writ Petition No. 981/2019
Advocates:
- For petitioner: Mr. Vivek Firoda & team
- For respondents: Mr. Raj Singh Bhati










