5 दिसंबर 2025 को उच्च न्यायालय जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख, श्रीनगर ने वसीम अहमद डार द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में उन्होंने पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत अपनी हिरासत को चुनौती दी थी। जस्टिस संजय धर ने इस वर्ष फरवरी में जिला मजिस्ट्रेट कुपवाड़ा द्वारा जारी आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि अधिकारियों के पास यह भरोसा करने के पर्याप्त आधार थे कि डार की ऑनलाइन गतिविधियाँ क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति को बिगाड़ सकती हैं।
अदालत कक्ष में दोनों पक्षों की दलीलों के दौरान हल्की-सी टेंशन भी महसूस हो रही थी, कि क्या इस मामले में सच में प्रिवेंटिव हिरासत ज़रूरी थी या नहीं।
पृष्ठभूमि
डार जो स्थानीय स्तर पर “लीपा” नाम से जाने जाते हैं को पुलिस द्वारा भेजे गए डोज़ियर के आधार पर प्रिवेंटिव कस्टडी में लिया गया। आरोप था कि वह फेसबुक पर कट्टरपंथी और “राष्ट्र-विरोधी” वीडियो व पोस्ट साझा कर युवाओं को उकसा रहे थे। अधिकारियों का कहना था कि उनकी गतिविधियाँ कानून-व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा थीं।
उनके वकील ने तर्क दिया कि हिरासत आदेश “ग़ैर-कानूनी और असंवैधानिक” है क्योंकि सभी सहायक दस्तावेज़ उन्हें उपलब्ध नहीं कराए गए, जिससे वे प्रभावी प्रतिनिधित्व करने के अधिकार से वंचित हो गए।
यह मामला HCP No.73/2024 के रूप में जस्टिस धर के समक्ष चला, जिसमें अल्तमाश राशिद ने याचिकाकर्ता का तथा फहीम निसार शाह, GA, ने सरकार का पक्ष रखा।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान बेंच ने पूरे डिटेंशन रिकॉर्ड की जाँच की, जिसमें दिखा कि डार को कुल 23 दस्तावेज़ दिए गए डिटेंशन वारंट, डोज़ियर, उनके फेसबुक पेज के स्क्रीनशॉट और हिरासत के आधारों का उर्दू अनुवाद भी शामिल था।
“पीठ ने कहा, ‘यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता को हिरासत के आधार बनाने वाली सामग्री पूरी उपलब्ध नहीं करवाई गई।’”
जज ने यह भी माना कि डिटेनिंग अथॉरिटी ने केवल पुलिस द्वारा तैयार डोज़ियर की नकल नहीं की बल्कि सामग्री पर अपना स्वतंत्र मत बनाया कि डार की कथित गतिविधियाँ “केंद्रशासित प्रदेश की सुरक्षा के लिए अत्यंत हानिकारक” हैं।
एक अन्य प्रमुख तर्क कि सामान्य आपराधिक कानून के तहत कार्रवाई क्यों नहीं की गई—को लेकर अदालत ने कहा कि डार के खिलाफ कोई FIR लंबित नहीं थी, न ही कोई जमानत स्थिति थी जिसकी रद्दीकरण की ज़रूरत हो। उपलब्ध इनपुट और सोशल मीडिया विश्लेषण के आधार पर प्रिवेंटिव डिटेंशन आवश्यक माना गया।
निर्णय
जस्टिस धर ने स्पष्ट किया कि यदि अधिकारियों को उचित रूप से विश्वास हो जाए कि किसी व्यक्ति की गतिविधियाँ सुरक्षा के लिए ख़तरा बन सकती हैं, तो बिना आपराधिक केस के भी प्रिवेंटिव डिटेंशन कानूनन संभव है।
“अदालत ने हिरासत आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाया,” और याचिका को खारिज कर दिया।
साथ ही उन्होंने निर्देश दिया कि हिरासत रिकॉर्ड को सरकारी वकील को वापस किया जाए।
Case Title:- Waseem Ahmad Dar vs. Union Territory of J&K & Others









