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लखनऊ पीठ ने पुलिस से बंद की गई कारों पर सवाल उठाए, आवास पर छापे की वैधता पर स्पष्टीकरण मांगा और एफआईआर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया

Shivam Y.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने बिना स्पष्टीकरण के याचिकाकर्ता की कारों को लॉक करने के लिए पुलिस से सवाल किया, संवेदनशील मामले में एफआईआर तक पहुंच के लिए उचित प्रक्रिया और मार्गदर्शन का निर्देश दिया। - अभिहिता मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

लखनऊ पीठ ने पुलिस से बंद की गई कारों पर सवाल उठाए, आवास पर छापे की वैधता पर स्पष्टीकरण मांगा और एफआईआर उपलब्ध कराने का निर्देश दिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सोमवार को पुलिस कार्रवाई पर चिंता जताई, जिसमें एक नागरिक के घर में खड़ी तीन निजी कारों को बिना किसी जानकारी दिए लॉक कर दिया गया था। मामला तत्काल सुनवाई में इस कारण लिया गया क्योंकि याची अभिहिता मिश्रा ने स्थानीय पुलिस पर उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

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संक्षिप्त लेकिन गंभीर सुनवाई के दौरान राज्य पक्ष पुलिस छापे का उचित कारण बताने में संघर्ष करता दिखा।

पृष्ठभूमि

याचिका के अनुसार 2 नवम्बर 2025 की शाम करीब 5:26 बजे, पुलिस के नौ कर्मी “घुस आए” और परिवार की तीन सफेद कारों को लॉक कर दिया। न कोई कागज़, न अपराध की बात, न ही कोई स्पष्टीकरण दिया गया।

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याची ने दलील दी कि परिवार अचानक किसी अपराधी जैसा व्यवहार झेल रहा है और डर की स्थिति में है।

कोर्ट ने पहले ही सुषांत गोल्फ सिटी थाना प्रभारी को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर कारण बताने का आदेश दिया था।

सोमवार को थाना प्रभारी उपेन्द्र सिंह निर्देशों के साथ अदालत में उपस्थित हुए। पुलिस के अनुसार घटना 31 अक्टूबर 2025 की रात 11:50 बजे हुई थी, जब “अज्ञात लोग सफेद कार से” एक रेजिडेंशियल स्कूल में फायरिंग कर गए। सीसीटीवी की मदद से पुलिस उस जगह पहुंची, जहाँ तीन सफेद कारें मिलीं और सबूतों से छेड़छाड़ रोकने के लिए लॉक कर दी गईं।

शुरुआत में प्रबंधक ने डर के कारण रिपोर्ट नहीं लिखाई, लेकिन बाद में धारा 109(1) बीएनएस, 2023 के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई।

राज्य ने बताया कि केवल एक कार घटना से जुड़ी पाई गई है और बाकी दो को खोल दिया गया है। संदिग्ध कार थाने में ले जाई जा चुकी है।

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कोर्ट की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन और न्यायमूर्ति बबीता रानी ने स्पष्ट किया कि कार्रवाई करते समय भी अधिकारों का सम्मान होना जरूरी है।

“पीठ ने कहा, ‘याची और उसके परिवार को किसी भी प्रकार से परेशान न किया जाए।’”

याची की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया फैसले के अनुसार एफआईआर वेबसाइट पर अपलोड होनी चाहिए।

कोर्ट ने समझाया कि संवेदनशील प्रकृति के मामलों जैसे आतंकवाद, यौन अपराध, आदि में एफआईआर ऑनलाइन डालने की अनिवार्यता नहीं है।

लेकिन अधिकार फिर भी सुरक्षित हैं।

यदि पुलिस संवेदनशीलता का हवाला देकर कॉपी नहीं देती, तो सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस के समक्ष आवेदन किया जा सकता है, और तीन अधिकारियों की समिति तीन दिनों में निर्णय देगी।

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सरल शब्दों में: यदि याची “पीड़ित/प्रभावित व्यक्ति” की श्रेणी में आती हैं, तो एफआईआर की कॉपी मिल सकती है।

निर्णय

पीठ ने आदेश देते हुए कहा:

  • याची सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत एफआईआर की कॉपी के लिए आवेदन कर सकती हैं
  • सक्षम प्राधिकारी यह तय करेगा कि वे “पीड़ित/प्रभावित” की श्रेणी में आती हैं या नहीं
  • पुलिस बिना विधिक प्रक्रिया के याची के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगी

इन टिप्पणियों के साथ, याचिका को 10 नवम्बर 2025 को निपटाया गया।

Case Title:- Abhihita Misra vs State of U.P.

Case Number: 10536 of 2025

Advocates:

  • For Petitioner: Shashank Singh, Amit Jaiswal
  • For Respondents: Government Advocate (A.G.A.)

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