जम्मू स्थित जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की याचिका खारिज करते हुए उस डेली-रेटेड कर्मचारी को लंबे समय बाद राहत दी, जो 1980 के दशक के अंत से सेवा में है। यह मामला एक पुराने विवाद जैसा था, जो आखिरकार अपने तार्किक निष्कर्ष तक पहुँचा, और अदालत बार-बार की जा रही प्रशासनिक देरी और बहानों से स्पष्ट रूप से नाखुश दिखी।
पृष्ठभूमि
प्रतिवादी सोम राज को पहली बार जुलाई 1989 में डेली-वेज बेलदार के रूप में नियुक्त किया गया था। एक दुर्घटना में उनकी एक आँख चली गई, जिसके बाद उन्हें हटा दिया गया, लेकिन 8 अक्टूबर 1991 को उन्हें फिर से काम पर रखा गया। इसके बाद वे बिना किसी रुकावट के काम करते रहे।
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2002 में उन्होंने SRO 64 of 1994 के तहत नियमितीकरण की मांग को लेकर हाईकोर्ट का रुख किया था, जो सात साल की निरंतर सेवा के बाद डेली वेजर्स को नियमित करने का प्रावधान करता है। उस समय अदालत ने विभाग को उनका मामला देखने का निर्देश दिया था, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। हालात तब और बिगड़ गए जब 2018 में उनका वेतन पूरी तरह रोक दिया गया। मजबूर होकर सोम राज ने 2019 में फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाया, जो बाद में सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल, जम्मू में स्थानांतरित हो गया।
अदालत की टिप्पणियां
मुख्य न्यायाधीश अरुण पल्ली और न्यायमूर्ति रजनेश ओसवाल की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच ने सरकार के रुख पर कड़ी नाराज़गी जताई। यूटी का तर्क था कि सोम राज किसी औपचारिक चयन प्रक्रिया से नहीं गुजरे थे और न ही किसी स्वीकृत पद पर नियुक्त थे। इस पर बेंच ने दो टूक शब्दों में प्रतिक्रिया दी।
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अदालत ने कहा, “रिकॉर्ड से साफ है कि प्रतिवादी से तीन दशकों से अधिक समय तक काम लिया गया,” और जोड़ा कि 34 साल बाद ऐसा बचाव पेश करना “खोखला” और अस्वीकार्य है।
न्यायाधीशों ने यह भी रेखांकित किया कि SRO 64 of 1994 में ही नियमितीकरण के लिए पद सृजन की व्यवस्था मौजूद है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि सरकारें तकनीकी आपत्तियों की आड़ में डेली वेजर्स के लंबे समय तक शोषण नहीं ठहरा सकतीं। अदालत ने मस्टर रोल उपलब्ध न होने के आधार पर वेतन न देने की दलील भी खारिज कर दी, यह कहते हुए कि विभाग के अपने रिकॉर्ड निरंतर सेवा को दर्शाते हैं।
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फैसला
मार्च 2025 में ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने यूटी की याचिका खारिज कर दी। अदालत ने 8 अक्टूबर 1998 से-जब सोम राज ने सात साल की सेवा पूरी की-उनके नियमितीकरण की पुष्टि की और मई 2018 से लंबित सभी वेतन जारी करने के निर्देश दिए। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रिब्यूनल के फैसले में कोई अवैधता नहीं है और उसमें हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं बनता।
Case Title: UT of Jammu & Kashmir and Others vs. Som Raj
Case No.: WP(C) No. 3402/2025
Case Type: Writ Petition (Service matter – Regularisation of Daily Wager)
Decision Date: 11 December 2025









