सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी शादी पर आखिरकार विराम लगा दिया, जो कागजों में तो थी लेकिन ज़िंदगी में कब की खत्म हो चुकी थी। वर्ष 2000 में शादी और 2001 से अलग रह रहे शिलॉन्ग के इस दंपति को करीब ढाई दशक की मुकदमेबाज़ी के बाद कानूनी आज़ादी मिली। पीठ ने अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि सामान्य क़ानून जो नहीं कर पाया, वह अब करना ज़रूरी हो गया है-एक मृत रिश्ते को समाप्त करना।
पृष्ठभूमि
यह मामला नयन भौमिक और अपर्णा चक्रवर्ती से जुड़ा है, जो दोनों ही भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) में डेवलपमेंट ऑफिसर थे। अगस्त 2000 में उनकी शादी हुई थी और वे शादी से पहले कई वर्षों से एक-दूसरे को पेशेवर रूप से जानते थे। लेकिन दांपत्य जीवन की शुरुआत के साथ ही विवाद उभरने लगे।
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पत्नी का आरोप था कि पति और ससुराल वाले उस पर नौकरी छोड़ने का दबाव बना रहे थे, जबकि उस पर अपनी बुज़ुर्ग मां और अन्य आश्रितों की जिम्मेदारी थी। नवंबर 2001 में वह मायके चली गईं।
साल 2003 में पति ने परित्याग के आधार पर तलाक़ की अर्जी दी, लेकिन वह समय से पहले होने के कारण खारिज हो गई। इसके बाद 2007 में दायर दूसरी याचिका पर शिलॉन्ग की ट्रायल कोर्ट ने 2010 में शादी भंग कर दी।
हालांकि, 2011 में गुवाहाटी हाईकोर्ट (शिलॉन्ग बेंच) ने उस फैसले को पलटते हुए कहा कि पत्नी की ओर से स्थायी रूप से पति को छोड़ने का इरादा साबित नहीं हुआ है। हाईकोर्ट ने यहां तक कहा कि पति “अपने ही गलत आचरण का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है।”
इसके बाद पति सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।
अदालत की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को केवल परित्याग के संकुचित सवाल तक सीमित न रखते हुए व्यापक दृष्टि से देखा। पीठ ने नोट किया कि दोनों पक्ष 24 वर्षों से अलग रह रहे हैं, शादी से कोई संतान नहीं है और अदालतों के प्रयासों के बावजूद सुलह की कोई संभावना नहीं बन सकी।
पीठ ने कहा, “स्वीकार की गई स्थिति यह है कि पक्षकारों के बीच वैवाहिक मुकदमेबाज़ी 22 वर्षों से अधिक समय से चल रही है,” और जोड़ा कि इतनी लंबी जुदाई अपने आप में दोनों के लिए क्रूरता है।
न्यायाधीशों ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालतें यह तय करने के लिए नहीं बैठ सकतीं कि पति या पत्नी में से किसका दृष्टिकोण सही है। “उनके अपने-अपने दृढ़ विचार और एक-दूसरे के साथ सामंजस्य न बिठा पाना,” अदालत ने कहा, “एक-दूसरे के प्रति क्रूरता के समान है।”
अदालत ने पहले के फैसलों का हवाला देते हुए यह भी रेखांकित किया कि पूरी तरह टूट चुकी शादी को जबरन बनाए रखना किसी के हित में नहीं है। पीठ के शब्दों में, ऐसी स्थिति “दुख, पीड़ा और मानसिक यातना” को ही बढ़ाती है।
इस दलील को भी खारिज किया गया कि जब एक पक्ष तलाक़ का विरोध कर रहा हो तो ‘अपूरणीय टूटन’ का आधार नहीं लिया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसकी शक्ति दोष या गलती के सिद्धांतों से बंधी नहीं है। जैसा कि पीठ ने कहा, “जब विवाह वास्तव में समाप्त हो चुका हो, तब किसी भी जीवनसाथी को साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।”
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निर्णय
यह कहते हुए कि “शादी में अब कोई पवित्रता शेष नहीं है और मेल-मिलाप की संभावना वास्तविक नहीं है,” सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए विवाह को भंग कर दिया।
अदालत ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के 2011 के फैसले को रद्द करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक़ के आदेश को बहाल कर दिया। इसी के साथ अपील स्वीकार कर ली गई और दो दशकों से अधिक समय तक अदालतों में चलती रही एक शादी का अंत हो गया।
Case Title: Nayan Bhowmick vs. Aparna Chakraborty
Case No.: Civil Appeal No. 5167 of 2012
Case Type: Matrimonial Appeal (Divorce under Hindu Marriage Act)
Decision Date: December 15, 2025










